मंगलवार, 12 मई 2015

रोम रोम में श्री राम : Sanjay Mehta Ludhiana







रोम रोम में


जिस वस्तु में  श्री राम - नहीं , वह वस्तु तो कौड़ी की भी नहीं।  उसके रखने से लाभ? श्री हनुमान जी ने भरे दरबार में यह बात कही
स्वयं जानकी मैया ने बहुमूल्य मणियों की माला हनुमान जी के गले में डाल  थी.  राज्याभिषेक- समरोह का यह उपहार था - सबसे मूल्यवान उपहार।  अयोध्या के रत्नभंडार में भी वैसी मणियाँ नहीं थी।  सभी उन मणियों के प्रकाश एवं सौंदर्य से मुग्ध थे . मर्यादापुर्षुत्तम को श्री हनुमान जी सबसे प्रिया है।  सर्वश्रेष्ठ सेवक है पवनकुमार , यह सर्वमान्य सत्य है।  उन श्री आंजनेय को सर्वश्रेष्ठ उपहार प्राप्त हुआ - यह ना आश्चर्य की बात थी, ना ईर्ष्या की
असूया की बात तो तब हो गयी।  जब श्री हनुमान जी अलग बैठकर उस हार की महमूल्यवान मणियों को अपने दाँतो से पटापट फोड़ने लगे। 
एक दरबारी जौहरी  ने टोका तो उन्हें बड़ा विचित्र उत्तर मिला।
आपने शरीर में श्री राम - नाम लिखा है ? जौहरी  ने कुढ़कर पूछा था।  किन्तु मुंह की खानी पड़ी उसे।  हनुमान जी ने अपने वज्रनख से अपनी छाती  का चमड़ा उधेड़कर दिखा दिया , श्री राम ह्रदय में विराजते थे और रोम रोम में श्री राम लिखा था उन श्री राम दूत के
"जिस वस्तु में श्री-राम नाम नहीं,  वह वस्तु तो दो कौड़ी की है, उसे रखने से लाभ? " श्री हनुमान की यह वाणी - उन केसरीकुमार का शरीर श्री राम नाम से ही निर्मित हुआ।  उनके रोम रोम में श्री राम नाम अंकित है।
उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध - सब श्री राम नाम से बने है , उनके कण कण में श्री राम नाम है , जिस वस्तु में श्री राम नाम ना हो वह वस्तु उन पवनपुत्र के पास रह कैसे सकती है
श्री राम नाममय है श्री हनुमान जी का श्री विग्रह -- संजय  मेहता









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