गुरुवार, 28 मई 2015

श्री देव्यापराधक्षमापनस्तोत्र : संजय मेहता , लुधियाना







(१)
न मंत्रोको जाना नहि यतन आती स्तुति नहीं ,
न आता है माता तव स्मरण आह्वान स्तुति ही,
न मुद्राएँ आती जननि नहि आता विलपना,
हमें आता तेरा अनुसरण ही क्लेशहर जो

(२)

न आती पूजा की विधि न धन आलस्ययुक्त मै ,
रहा कर्तव्योंसे  विमुख चरणोंमें   रति नहीं ,
क्षमा दो हे माता अयि  सकल उद्धारिणी शिवा!
कुपुत्रोंको देखा कबहुँक कुमाता नहीं सुनी।



(३)
धरित्री माता सरल शिशु तेरे बहुत है ,
उन्हींमें  तो मै  भी सरल शिशु तेरा जननि  हूँ,
अत: हे कल्याणी समुचित नहीं मोहिं  तजना,
कुपुत्रोंको देखा कबहुँक कुमाता नहीं सुनी।


(४)
जगन्माता अम्बे तव  चरणसेवा नहिं  रची,
तुम्हारी पूजामें नहिं प्रचुर द्र्वयादिक दिया,
अहो! तो भी माता तुम अमित स्नेहार्द्र रहतीं,
कुपुत्रोंको देखा कबहुँक कुमाता नहीं सुनी।


(५)
सुरोंकी सेवाएँ  विविध विधिकी , है सब तजी
पचासीसे भी हे जननि  वय बीती अधिक है,
नहीं होती तेरी मुझपर कृपा तो अब भला ,
निरलम्बी लंबोदर -जननि  जाएँ हम कहाँ?


(६)
मनोहरी वाणी अधम जन चांडाल लहते,
दरिद्री  होते है अभय  बहु द्रव्यादिक भरे,
अपर्णे  कर्णोंमें यह फल जनोंके प्रविशता ,
अहो! तो भी आती जपविधि किसे है जननि हे!


(७)
चिताभस्मालेपी  गर्ल अशनि दिक्पट  धरे,
जटाधारी कंठ भुजगपति माला पशुपति,
कपाली पाते है यह जग जगन्नाथपदवी ,
शिवे! तेरी पाणिग्रहण परिपाटी फल यही।

(८)
न है मोक्षाकांक्षा नहिं  विभववाञ्छा ह्रदयमें
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छा अब नहीं,
यही यांचा मेरी निज तनयाको रक्षित करो,
मृडानी  रुद्राणी शिव शिव भवानी जपति  जो।

(९)
नाना प्रकार उपचार किए नहीं है ,
रुखा न चिंतन किया वचसा कभी भी,
श्याम! अनाथ मुझको लख जो कृपा हो,
तो है यही उचित अंब! तुम्हें  सदा ही।


(१०)
आपत्तिसे व्यथित हो तुमको भजूँ  मैं  ,
करो कृपा हे करुणार्णवे! शिवे!!
मेरे शठत्वपर आप न ध्यान देना,
क्षुधा तृषार्ता जननि  पुकारते।

(११)
जगदंब  विचित्र यह क्या, परिपूर्ण करुणा यदि करो,
अपराध करे तनय तो , जननि  नहिं  अनादर करे।

(१२)
अघहारी तो सम नहीं, मो सम पापी नाहिं।
जननि  यह जिय जानिकै , जो भावै  करू  सोय। 










मंगलवार, 12 मई 2015

रोम रोम में श्री राम : Sanjay Mehta Ludhiana







रोम रोम में


जिस वस्तु में  श्री राम - नहीं , वह वस्तु तो कौड़ी की भी नहीं।  उसके रखने से लाभ? श्री हनुमान जी ने भरे दरबार में यह बात कही
स्वयं जानकी मैया ने बहुमूल्य मणियों की माला हनुमान जी के गले में डाल  थी.  राज्याभिषेक- समरोह का यह उपहार था - सबसे मूल्यवान उपहार।  अयोध्या के रत्नभंडार में भी वैसी मणियाँ नहीं थी।  सभी उन मणियों के प्रकाश एवं सौंदर्य से मुग्ध थे . मर्यादापुर्षुत्तम को श्री हनुमान जी सबसे प्रिया है।  सर्वश्रेष्ठ सेवक है पवनकुमार , यह सर्वमान्य सत्य है।  उन श्री आंजनेय को सर्वश्रेष्ठ उपहार प्राप्त हुआ - यह ना आश्चर्य की बात थी, ना ईर्ष्या की
असूया की बात तो तब हो गयी।  जब श्री हनुमान जी अलग बैठकर उस हार की महमूल्यवान मणियों को अपने दाँतो से पटापट फोड़ने लगे। 
एक दरबारी जौहरी  ने टोका तो उन्हें बड़ा विचित्र उत्तर मिला।
आपने शरीर में श्री राम - नाम लिखा है ? जौहरी  ने कुढ़कर पूछा था।  किन्तु मुंह की खानी पड़ी उसे।  हनुमान जी ने अपने वज्रनख से अपनी छाती  का चमड़ा उधेड़कर दिखा दिया , श्री राम ह्रदय में विराजते थे और रोम रोम में श्री राम लिखा था उन श्री राम दूत के
"जिस वस्तु में श्री-राम नाम नहीं,  वह वस्तु तो दो कौड़ी की है, उसे रखने से लाभ? " श्री हनुमान की यह वाणी - उन केसरीकुमार का शरीर श्री राम नाम से ही निर्मित हुआ।  उनके रोम रोम में श्री राम नाम अंकित है।
उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध - सब श्री राम नाम से बने है , उनके कण कण में श्री राम नाम है , जिस वस्तु में श्री राम नाम ना हो वह वस्तु उन पवनपुत्र के पास रह कैसे सकती है
श्री राम नाममय है श्री हनुमान जी का श्री विग्रह -- संजय  मेहता