एक बार हनुमानजी गन्धमादन के एक भाग में अपनी पूँछ फैलाकर स्वच्छन्द पड़े थे। उसी समय बलगर्वित भीमसेन को आते देख वे मन में हँसते हुए उनसे बोलते - 'अनघ ! बुढ़ापे के कारण मै स्वयं उठने में असमर्थ हूँ , कृपया आप ही मेरी इस पूँछ को हटाकर आगे बढ़ जाइए ' भीमसेन अवज्ञा के साथ हँसते हुए बायें हाथ से उन महाकपि की पूँछ हटाने लगे , पर वह टस-से-मस न हुई. तब वे अपने दोनों हाथो से जोर लगाने लगे, फिर भी इंदरधनुष के समान उठी हुई वह पूँछ उनके द्वारा टस-से-मस न हुई। इस अनपेक्षित पराभव के कारण भीमसेन ने उन्हें पहचानकर लज्जावंत-मुख हो उन कपिशार्दूल से क्षमा मांगी
अब कहिये जय श्री हनुमान जय श्री राम जय माता दी जी
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