शनिवार, 29 नवंबर 2014

Vaishno Maa By Sanjay Mehta Ludhiana










काँगड़ा वाली तू ही , ब्रजेश्वरी तेरा नाम
भक्तो के दुःख हारनी , पावन तेरा धाम
हे अम्बे पावन तेरा नाम

नैनो के जिस के बरसे , ममता अमृत धार
नैन देवी है वही , उन का सच्चा द्वार
हे अम्बे

मनन करे जो मनसा का मन के मिटे विकार
दे उज्जला प्रेम का , मेटे सब अन्धकार
हे अम्बे मेटे सब अन्धकार

मनोवांछित फल मिलता है बगला मुखी के द्वार
माँ दुर्गा तेरे रूप को , माने सब संसार
हे अम्बे , जय जय दुर्गे

शीतला शीतल करे, नाम रटे जो कोई
नासे सारे क्रोध को , हृद्या शीतल होए
जय जय अम्बे माँ

सिद्धेश्वरी राजेश्वरी कामाख्या पार्वती
श्याम गोरी और उकनी तू ही है माँ सती
जय जय अम्बे माँ

चंदा देवी उर्बाधा , वीरपुर मालिनी नाम
खुलती जहाँ तकदीर है , पावन तेरा नाम
हे माता पावन तेरा धाम

जिस घर में वास करे , लक्ष्मी रानी मात
उस घर में आनंद हो , सदा दिवाली रात
जय जय अम्बे माँ

कैला देवी कराली , लीला अपरम्पार
जिन के पावन धाम पर , हो रही जय जय कार
हे मैया तेरी जय जय कार

मंगलमयी है दुर्गा माता , सब की सुने पुकार
करुणा का तेरे द्वार पे, सदा खुला द्वार
अम्बे जय

हिंगलाज भयहारनी रमा उमा माँ शक्ति
मन मंदिर में बसा के कर लो इन की भक्ति
जय जय अम्बे माँ

तारा माँ जगतारिणी भव सागर से पार
विन्धेश्वरी भुवनेश्वरी सब को बांटे प्यार
हे अम्बे

करे सवारी वृषभ की रुद्राणी मेरी माँ
अपने आँचल की अम्बे , सब को देती छाव
हे माता

पद्मावती , मुक्तेश्वरी, माता बड़ी महान
करती सब की सहाये है , कहे रु

मिले शक्ति निर्बल को जहाँ वो है माँ का धाम
कामधेनु से तुल्य है शिव शक्ति का नाम

त्रिपुर रूपिणी भगवती जिन का खजाना ज्ञान
मैया मेरी वरदानी है देती है वरदान
जय दुर्गे जय माँ

कामना पूरी करे कामाक्षी , देती है सदा मान
याचक जिस के देवता स्वर्ण मैया क्ष

रोहिणी और सुभद्रा दूर करे अज्ञान
छल कपट ना छोड़ती तोड़े है अभिमान
जय अम्बे

अष्टभुजी मंगलकर्णी पावन जिस का द्वार
महर्षि और संत जपते जिन को बारम्बार

मधु कैटभ और रक्तबीज का तूने किया संहार
धूम्रलोचन का वध कर के हरा भूमि का भार

विम्राम्भा की शरण जो जाते , रखती उन की लाज
सकल पदार्थ वो पाये बन जाए बिगड़े काज

पांचो चोर उन्हें छले , साफ़ रखे ना मन
माँ के चरणो में कर दे तन मन सब अर्पण

कौशकी देवी मझधार से पार लगाये नाव
अम्बिका माँ पूजिए चल के नंगे पाँव

भैरवी देवी का करो मन से तुम वंदन
खुशिओं से महके सदा भक्तो घर आँगन

नंदिनी नारायणी , महादेवी कहलाये
हर संकट से मुक्त हो इन का जो ध्यान लगाये

मनमोहिनी माँ मूर्ति करती प्रेम बरसात
करुणा सब पे करती है दुर्गा भोली मात

मीठी लोरी ममता की गूंजे आठो याम
अमृत बरसो vaani में , माँ को जो आये नाम

कन कन अंदर माँ बेस , जगह ना खाली कोई
सारे ही ब्रह्माण्ड में जिन का उज्जला होए

करुणा करे करुणामयी माता करुणानिधान
सृष्टि की पालन हार उन की उच्ची शान

जीवन मृत्यु यश अपयश सब है माँ के हाथ
वो कैसे घबरायेगा माँ हो जिस के साथ

तेरी शरण में आ गया यह संजय मेहता
ऐसा वार मोहे दीजिये करता राहु गुणगान












हनुमानजी भीमसेनजी : Sanjay mehta Ludhiana









एक बार हनुमानजी गन्धमादन के एक भाग में अपनी पूँछ फैलाकर स्वच्छन्द पड़े थे। उसी समय बलगर्वित भीमसेन को आते देख वे मन में हँसते हुए उनसे बोलते - 'अनघ ! बुढ़ापे के कारण मै स्वयं उठने में असमर्थ हूँ , कृपया आप ही मेरी इस पूँछ को हटाकर आगे बढ़ जाइए ' भीमसेन अवज्ञा के साथ हँसते हुए बायें हाथ से उन महाकपि की पूँछ हटाने लगे , पर वह टस-से-मस न हुई. तब वे अपने दोनों हाथो से जोर लगाने लगे, फिर भी इंदरधनुष के समान उठी हुई वह पूँछ उनके द्वारा टस-से-मस न हुई। इस अनपेक्षित पराभव के कारण भीमसेन ने उन्हें पहचानकर लज्जावंत-मुख हो उन कपिशार्दूल से क्षमा मांगी
अब कहिये जय श्री हनुमान जय श्री राम जय माता दी जी