गुरुवार, 10 जुलाई 2014

सबकुछ परमात्मा ही करता है (कहानी): Sanjay Mehta Ludhiana









सबकुछ परमात्मा ही करता है (कहानी)



काशी में बस जाने के बाद कबीर साहिब ने वहां सत्संग करना शुरू किया , उनका उपदेश था की मनुष्य को अपने अंदर ही परमात्मा की तलाश करनी चाहिये। उनकी यह शिक्षा कटटर पंडितो और मौलवियों , दोनों के विचारो से बहुत भिन्न थी। इसलिए दोनों उनके कटटर विरोधी हो गए , परन्तु कबीर साहिब ने उनकी और ध्यान नहीं दिया। जो जिज्ञासु सत्य की खोज में उनके पास आते , उन्हें वे बेखटके अपना उपदेश सुनाते। धीरे धीरे उनके शिष्यों की गिनती बढ़ती गई और कबीर का नाम दूर -दूर तक फ़ैल गया

जब पंडितों और मौलवीओ ने देखा की उनके विरोध का कबीर पर कुछ असर नहीं हुआ है तो उन्हों ने कबीर जी को नीचे दिखने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने काशी और उसके आसपास यह खबर फैला दी के कबीर जी बहुत धनवान है और अमुक दिन एक धार्मिक पर्व पर बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे है जिसमे भोज का भी आयोजन है। जो भी उसमे शामिल होना चाहे उनका स्वागत है

जब कथित भोज का दिन पास आया तो क्या गरीब और क्या अमीर, हजारों लोग कबीर की कुटिया की और चल पड़े। एक मामूली जुलाहे के पास इतने लोगों को भोजन कराने के लिए ना तो धन था और ना खाने का समान। इस मुश्किल से बचने के लिए कबीर साहिब शहर से बाहर बहुत दूर चले गए और एक पेड़ की छाया में चुपचाप बैठ गए

परन्तु जैसे ही कबीर जी घर से निकले , स्वयं परमात्मा ने कबीर जी के रूप में प्रकट होकर भोजन की व्यवस्था की और हजारों लोगों को स्वयं भोजन कराया। भोज के लिए आनेवाला हर एक व्यक्ति यह कहते हुए लौटा , "धन्य है कबीर जी , धन्य है कबीर जी "

जैसे ही साँझ ढली और अँधेरा छाने लगा , कबीर अपने घर को लौटे। जो कुछ दिन में घटा था उसका हाल सुना. ख़ुशी से भर कबीर जी कह उठे

"ना कछु किया ना करि सका, ना करने जोग सरीर।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर।।
जय माता दी जी










कोई टिप्पणी नहीं: