रविवार, 22 जून 2014

मालिनी सुखिया और कृष्णा जी : संजय मेहता










मालिन रोज परमात्मा को मनाती रहती थी, नाथ, दर्शन दीजिये . तीन वर्ष पुरे हो गए। अब तो कृष्ण विरह असहाए हो गया है। उसका मन भी शुद्ध हो गया है। आज उसने निश्चय किया है , जब तक कन्हैया का दर्शन ना कर पाऊँ , तब तक नंदबाबा के आँगन से नहीं हटूंगी जीव जब वियोगाग्नि में छटपटाने लगता है , भगवान आ मिलते है

कटि पर सोने की करधनी, ह्रदय में बाजूबंद , गले में कंठी , पग में पैजनिया और मस्तक पर मोरपंख से विभूषित मेरा कन्हैया छुमक- छुमक करता हुआ आँगन में आया (कितने सुन्दर लग रहे है संजय के प्रभु )

दर्शनातुर मालिन के सामने आकर, हाथ फैला कर लाला फल मांगने लगा. बालकन्हैया से मालिन भी बाते करने के लिए आतुर थी

मालिनी ने सोचा की यदि लाला के हाथ में फल रख देगी तो तुरंत ही वह भीतर लौट जायेगा . सो वह उसको बातो से रोकने लगी , मै फल देने नहीं , बेचने आई हु लला , फल ले और मुझे अनाज दे। फिर उसे दुःख भी हुआ की अनाज माँगा ही क्यों . कन्हैया बड़ा दयालु और प्रेमी है। वह मेरी गोद में आएगा तो मै उसे प्यार करुँगी

बाल कृष्ण दौड़ता हुआ तो मुठी भर चावल ले आया और मालिन की टोकरी में रख दिए . अब तो फल दो मालिन ने कहा , मेरी गोद में तो बैठ बेटा, मै तुमसे दुःख सुख की बाते करना चाहती हु, तो कन्हैया उछल कर उसकी गोद में जा बैठा। मालिन की इच्छा परिपूर्ण हुई ब्रह्मसम्बन्ध सम्पन्न हुआ , हजारो वर्षो का विरही जीव आज ईश्वर से जा मिला जय हो।

फल मिलते है लाला भागा हुआ घर में चला गया , मालिन ने प्रभु से प्राथना की की कही अपने कन्हैया को अपनी ही नजर ना लग जायें। अपनी टोकरी लेकर सुखिया घर वापस आई , टोकरी सर से उतारी तो देखा की वह तो रत्नो से भरी पड़ी है। उसे सुख आश्चर्य हुआ , सोचने लगी कि मेरे जन्म - जन्मांतर का द्ररिद्रया दूर हो गया। ईश्वर को फल दोगे तो तुम्हे रत्न देंगे। परमात्मा जब देते है तो छप्पर फाड़ कर देते है। मनुष्या देते समय कुछ संकोच रखता है , किन्तु प्रभु तो कई गुना बढ़ाकर देते है। अब कहिये जय श्री कृष्णा। जय माता दी जी










कोई टिप्पणी नहीं: