सोमवार, 30 जून 2014

Bhakt or Bhagwan : Sanjay Mehta Ludhiana









एक भक्त था वह बिहारी जी को बहुत मानता था,बड़े प्रेम और भाव से
उनकी सेवा किया करता था.

एक दिन भगवान से कहने लगा – में आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझे
आपकी अनुभूति नहीं हुई.
मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये
की मुझे ये अनुभव हो की आप हो.

भगवान ने कहा ठीक है.
तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो,जब तुम रेत पर चलोगे
तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देगे, दो तुम्हारे पैर होगे और
दो पैरो के निशान मेरे होगे.इस तरह तुम्हे मेरी अनुभूति होगी.
अगले दिन वह सैर पर गया,जब वह रे़त पर चलने लगा तो उसे अपने
पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ,अब रोज ऐसा होने लगा.

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया, वह सड़क पर आ
गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया.
देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत मे सब साथ छोड देते है.
अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये.उसे
बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त मे भगवन ने साथ छोड दिया.धीरे-धीरे
सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसके पास वापस आने लगे.
एक दिन जब वह सैर पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई देने
लगे.उससे अब रहा नही गया, वह बोला-

भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर मुझे
इस बात का गम नहीं था क्योकि इस दुनिया में ऐसा ही होता है, पर आप ने
भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था, ऐसा क्यों किया?

भगवान ने कहा – तुमने ये कैसे सोच लिया की में तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा,
तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वे तुम्हारे
पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे,

उस समय में तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब
तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है. इसलिए
तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे है.










माँ (परमगुरु, परब्रम्ह, परमात्मा, ब्रह्माण्डस्वरूपी ) : Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










पानी के बिना नदी ,
अतिथि के बिना आँगन ,
स्नेह के बिना सम्बन्धी ,
पैसे के बिना ज़ेब , """"""और"""""
माँ (परमगुरु, परब्रम्ह, परमात्मा, ब्रह्माण्डस्वरूपी) के बिना जीवन बेकार है !
मां की याद ऐसे आती है जैसे आती है महक बाग के किसी कोने से

कोने में खिले किसी फूल से जैसे आती है माटी-गंध
आषाढ़ की पहली बारिश में आंगन की भीगी हुई काली मिट्टी से- ठीक ऐसे ही आती है मां की याद

कभी कभी जब कुछ भी नहीं होता करने को सोचता हूं कितने सपने लगते होंगे एक ताजमहल बनाने के लिये....लोग कहते हैं जिनके पास जितने सपने हैं उतने ही सपनों से बनाया जा सकता है ताजमहल...लोग तो यहां तक कहते हैं सिर्फ एक ही सपना काफी है ताजमहल बनाने के लिये !

मां के पास सपने ढेरों थे मगर दुर्भाग्य ताजमहल एक भी नहीं ऐसा क्यों ! ?
माँ तो बस माँ ही होती है .
बच्चो को भरपेट खिलाती खुद भूखी ही सोती है
बच्चों की चंचल अठखेली देख देख खुश होती है
बचपन के हर सुन्दर पल को बना याद संजोती है
देख तरक्की बच्चों की वो आस के मोती पोती है
बच्चों की खुशहाली में वो अपना जीवन खोती है
बच्चों की बदली नज़रों से नहीं शिकायत होती है
जब-जब झुकता सर होठों पर कोई दुआ ही होती है

धूप कड़ी सहकर भी माँ तुम, कभी न हारी यौवन में,
धरम तुम्हारा खूब निभाया, तुमने अपने जीवन में !
सहम रही ममता पलकों में, नज़र तुम्हारी झुकी-झुकी,
तड़प रही है धड़कन भी अब, साँस तुम्हारी रुकी-रुकी ।
न्योता दिया बुढ़ापे ने अब तुमको अपने आँगन में !

गूँज रही कानों में मेरे वही तुम्हारी मुक्त हँसी,
आज कराहों में भी तो है छुपी हुई मुस्कान बसी !
हाय जिंदगी सजी-सजाई, बीती कितनी उलझन में !

टूट गए कुछ सपने तो क्या, रात अभी भी बाकी है,
और नए कुछ सज जाएँगे, प्रात अभी भी बाकी है ।
ढलती संध्या में भर लो तुम जोश नया अपने तन में !

पूछता है जब कोई कि
इस दुनिआ में मोहब्बत है कहाँ..?
मुस्कुरा देता हूँ मै,
और याद आ जाती है माँ










प्यारी माँ : Pyari Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










प्यारी माँ


तू कैसी है ?क्या मुझको याद करती है
तूने पूछा था कैसा हूँ मै ..मै अच्छा हूँ

तेरी ही सोच के जैसा हूँ
यहा सब सो गए हैं मै अकेला बैठा हूँ
सोचता हूँ क्या करती होगी तू
काम करते करते बालों का जूडा बनाती होगी या फिर
बिखरे समान को समेटती होगी
पर माँ अब समान फैलाता होगा कौन
मै तो यंहा बैठा हूँ मौन

सुनो माँ तुमने सिखाया था सच बोलो सदा
आज जो सच बोला तो क्लास के बाहर खड़ा था
तुमने जैसा कहा है वैसा ही करता हूँ
ख़ुद से पहले ध्यान दूसरों का रखता हूँ
पर देखो न माँ सब से पीछे रह गया हूँ
सब कुछ आता है मुझको फ़िर भी
टीचर की निगाह से गिर गया हूँ

किसी पे हाथ न उठाना तुम ने कहा था
पर जानती हो माँ आज उन्होंने बहुत मारा है मुझे
जवाब मै भी दे सकता था पर मारना तो बुरी बात है न माँ
यंहा सभी मुझे बुजदिल समझते हैं
मै कमजोर नही हूँ मै तो तेरा बहादुर बेटा हूँ न माँ

अब तुम ही कहो क्या मै कुछ ग़लत कर रहा हूँ
तेरा कहा ही तो कर रहा हूँ, तू तो ग़लत हो सकती नही
फिर सब कुछ क्यों ग़लत हो रहा है बताओ न माँ
क्या इनको ये बातें मालूम नही

माँ एक बार यहां आओ न
जो कुछ मुझे बताया इन्हे भी समझाओ न

एक बात बताओ क्या आज भी तू कहेगी कि तुझे मुझपे गर्व है
माँ बोलो न..क्या मै तेरी सोच के जैसा हूँ और तेरा राजा बेटा हूं









माँ : Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










घर में अकेली माँ ही बस सबसे बड़ी पाठशाला है।
जिसने जगत को पहले-पल ज्ञान का दिया उजाला है।

माँ से हमने जीना सीखा, माँ में हमको ईश्वर दीखा,
हम तो हैं माला के मनके, माँ मनकों की माला है।

माँ आँखों का मीठा सपना, माँ साँसों में बहता झरना,
माँ है एक बरगद की छाया जिसने हमको पाला है।

माँ कितनी तकलीफ़ें झेल, बाँटे सुख, सबके दुख ले ले।
दया-धर्म सब रूप हैं माँ के, और हर रूप निराला है।









रविवार, 22 जून 2014

मालिनी सुखिया और कृष्णा जी : संजय मेहता










मालिन रोज परमात्मा को मनाती रहती थी, नाथ, दर्शन दीजिये . तीन वर्ष पुरे हो गए। अब तो कृष्ण विरह असहाए हो गया है। उसका मन भी शुद्ध हो गया है। आज उसने निश्चय किया है , जब तक कन्हैया का दर्शन ना कर पाऊँ , तब तक नंदबाबा के आँगन से नहीं हटूंगी जीव जब वियोगाग्नि में छटपटाने लगता है , भगवान आ मिलते है

कटि पर सोने की करधनी, ह्रदय में बाजूबंद , गले में कंठी , पग में पैजनिया और मस्तक पर मोरपंख से विभूषित मेरा कन्हैया छुमक- छुमक करता हुआ आँगन में आया (कितने सुन्दर लग रहे है संजय के प्रभु )

दर्शनातुर मालिन के सामने आकर, हाथ फैला कर लाला फल मांगने लगा. बालकन्हैया से मालिन भी बाते करने के लिए आतुर थी

मालिनी ने सोचा की यदि लाला के हाथ में फल रख देगी तो तुरंत ही वह भीतर लौट जायेगा . सो वह उसको बातो से रोकने लगी , मै फल देने नहीं , बेचने आई हु लला , फल ले और मुझे अनाज दे। फिर उसे दुःख भी हुआ की अनाज माँगा ही क्यों . कन्हैया बड़ा दयालु और प्रेमी है। वह मेरी गोद में आएगा तो मै उसे प्यार करुँगी

बाल कृष्ण दौड़ता हुआ तो मुठी भर चावल ले आया और मालिन की टोकरी में रख दिए . अब तो फल दो मालिन ने कहा , मेरी गोद में तो बैठ बेटा, मै तुमसे दुःख सुख की बाते करना चाहती हु, तो कन्हैया उछल कर उसकी गोद में जा बैठा। मालिन की इच्छा परिपूर्ण हुई ब्रह्मसम्बन्ध सम्पन्न हुआ , हजारो वर्षो का विरही जीव आज ईश्वर से जा मिला जय हो।

फल मिलते है लाला भागा हुआ घर में चला गया , मालिन ने प्रभु से प्राथना की की कही अपने कन्हैया को अपनी ही नजर ना लग जायें। अपनी टोकरी लेकर सुखिया घर वापस आई , टोकरी सर से उतारी तो देखा की वह तो रत्नो से भरी पड़ी है। उसे सुख आश्चर्य हुआ , सोचने लगी कि मेरे जन्म - जन्मांतर का द्ररिद्रया दूर हो गया। ईश्वर को फल दोगे तो तुम्हे रत्न देंगे। परमात्मा जब देते है तो छप्पर फाड़ कर देते है। मनुष्या देते समय कुछ संकोच रखता है , किन्तु प्रभु तो कई गुना बढ़ाकर देते है। अब कहिये जय श्री कृष्णा। जय माता दी जी










शुक्रवार, 6 जून 2014

सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ : Sab Se Sunder hai hmari jai ambe maa : Sanjay Mehta Ludhiana








सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !
जय अम्बे माँ -2 !



नदिया है सुन्दर, समंदर है सुन्दर
धरती के ऊपर का अम्बर है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

चंदा है सुन्दर सितारे है सुन्दर
बागो में खिलाती बहारें है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

हार है सुन्दर, सिंगर है सुन्दर
बारह महीनो के तैयोहार है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

गीत है सुन्दर संगीत है सुन्दर
‘’लाटा की मैया से प्रीत है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

जय अम्बे माँ, जय अम्बे माँ


http://youtu.be/y8c2zHU4vpY














बुधवार, 4 जून 2014

मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती: Man Mera Mandir Aankhe diya Baati : Sanjay Mehta Ludhiana








मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती,
होंठो की हैं थालिया, बोल फूल पाती।
रोम रोम जीभा तेरा नाम पुकारती,
आरती ओ मैया तेरी आरती,
ज्योतां वालिये माँ तेरी आरती॥

हे महालक्ष्मी हे गौरी, तू अपने आप है चोहरी,
तेरी कीमत तू ही जाने, तू बुरा भला पहचाने।
यह कहते दिन और राती, तेरी लिखीं ना जाए बातें,
कोई माने जा ना माने हम भक्त तेरे दीवाने,
तेरे पाँव सारी दुनिया पखारती॥

हे गुणवंती सतवंती, हे पत्त्वंती रसवंती,
मेरी सुनना यह विनंती, मेरी चोला रंग बसंती।
हे दुःख भंजन सुख दाती, हमें सुख देना दिन राती,
जो तेरी महिमा गाये, मुहं मांगी मुरादे पाए,
हर आँख तेरी और निहारती॥

हे महाकाल महाशक्ति, हमें देदे ऐसी भक्ति,
हे जगजननी महामाया, है तू ही धुप और छाया।
तू अमर अजर अविनाशी, तू अनमिट पूरनमाशी,
सब करके दूर अँधेरे हमें बक्शो नए सवेरे।
तू तो भक्तो की बिगड़ी संवारती॥