शुक्रवार, 14 मार्च 2014

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

Kalyug Baitha Maar Kundli : Sanjay Mehta Ludhiana : कलयुग बैठा मार कुंडली जाऊ तो मै कहाँ जाऊ












कलयुग बैठा मार कुंडली जाऊ तो मै कहाँ जाऊ
अब हर घर में रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊ

दशरथ कौश्ल्या जैसे मात - पिता अब भी मिल जाए
पर राम सा पुत्र मिले ना जो आज्ञा ले वन में जाए
भरत लखन से भाई को मै , ढूंढ कहा से लाऊ मै
अब हर घर में रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊ

जिसे समझते हो अपना तुम , जड़े खोदता आज वही
रामायण की बाते जैसे लगती है सपना कोई
तब थी दासी एक मंथरा आज वही घर घर पाऊ
अब हर घर में रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊ


आज दास का धर्म बना है मालिक से तकरार करे
सेवा भाव तो दूर रहा वो वक़त पड़े तो वार करे
हनुमान सा दास आज मै ढूंढ कहा से लाउ मै
अब हर घर में रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊ

रोंध रहे बगिया को देखो ,खुद ही उस के रखवाले
अपने घर की नीव खोदते, देखे मैंने घरवाले
तब था घर का इक ही भेदी , आज वही घर घर पाऊ
अब हर घर में रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊ

कलयुग बैठा मार कुंडली जाऊ तो मै कहाँ जाऊ
अब हर घर में रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊ
जय माता दी जी -- संजय मेहता