रविवार, 14 दिसंबर 2014

कर्मो का कानून अटल : Sanjay Mehta Ludhiana









कर्मो का कानून अटल


रामायण में आता है की बाली ने तपस्या करके वर लिया था की जो भी लड़ने के लिए उसके सामने आये , उसका आधा बल बाली में आ जाए। इसी कारण जब भी सुग्रीव उससे लड़ाई करने जाता , पराजित होकर लौटता , श्री राम जी इस भेद को जानते थे, जब सुग्रीव बाली के खिलाफ मदद लेने उनके पास आया तो (अपना बल सुरक्षित रखने के लिए ) उन्होंने पेड़ो की ओट में खड़े होकर बाली पर तीर चलाया और उसे मार डाला। मरते समय बाली ने श्री राम जी से कहा "में बेगुनाह था, आपका कुछ नहीं बिगाड़ा था। अब इसका बदला आपको अगले जन्म में देना पड़ेगा। "
सो अगले जन्म में श्री राम जी श्री कृष्ण जी बने और बाली भील बना। जब कृष्ण महाराज महाभारत के युद्ध के बाद एक दिन जंगल में पैर पर पैर रख कर सो रहे थे , तो भील ने दूर से समझा की कोई हिरन है , क्युकि उनके पैर में पद्म का चिन्ह था जो धुप में चमक कर हिरन की आँख जैसा लग रहा था। उसने तीर-कमान उठाया और निशाना बांधकर तीर छोड़ा जो श्री कृष्ण जी को लगा। जब भील अपना शिकार उठाने के लिए पास आया तो उसे अपनी भयंकर भूल का पता चला। दोनों हाथ जोड़कर वह कृष्ण जी से अपने घोर पाप की क्षमा मांगने लगा। तब श्री कृष्ण जी ने उसे पिछले जन्म की घटना सुनाई और समझाया की इसमें उसका कोई दोष नहीं है , यह तो होना ही था . उन्हें अपने कर्मो का कर्जा चुकाना ही था।
सो कर्मो का कानून अटल है। कोई भी इससे बच नहीं सकता , अवतार भी नहीं अब कहिये जय श्री कृष्णा जय माता दी जी









शनिवार, 13 दिसंबर 2014

पपीहे का प्रण : Papeehe ka Prn : By Sanjay Mehta Ludhiana









कबीर साहिब एक दिन गंगा के किनारे घूम रहे थे। उन्हों ने देखा एक पपीहा प्यास से बेहाल होकर नदी में गिर गया है। पपीहा स्वांति नक्षत्र में बरसने वाली वर्षा की बूंदो के अलावा और कोई पानी नहीं पीता। उसके चारो और कितना ही पानी मजूद क्यों ना हो , उसे कितनी ही जोर से प्यास क्यों न लगी हो , वह मरना मजूर करेगा , परन्तु और किसी पानी से अपनी प्यास नहीं बुझायेगा।
कबीर साहिब नदी में गिरे हुए उस पक्षी की और देखते रहे। सख्त गर्मी पड़ रही थी , पर नदी के पानी की एक बूँद भी नहीं पी। उसे देखकर कबीर साहिब ने कहा :
जब मै इस छोटे -से पपीहे की वर्षा के निर्मल जल के प्रति भक्ति और निष्ठां देखता हूँ की प्यास से मर रहा है। लेकिन जान बचाने के लिए नदी का पानी नहीं पीता , तो मुझे मेरे ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति तुच्छ लगने लगती है
पपीहे का पन देख के , धीरज रही न रंच।
मरते दम जल का पड़ा, तोउ न बोडी चंच। ।
अगर हर भक्त को अपने इष्ट के प्रति पपीहे जैसी तीव्र लगन और प्रेम हो तो वह बहुत जल्दी ऊँचे रूहानी मंडलों में पहुंच जाये। अब कहिये जय माता दी जय देवी माँ








शनिवार, 29 नवंबर 2014

Vaishno Maa By Sanjay Mehta Ludhiana










काँगड़ा वाली तू ही , ब्रजेश्वरी तेरा नाम
भक्तो के दुःख हारनी , पावन तेरा धाम
हे अम्बे पावन तेरा नाम

नैनो के जिस के बरसे , ममता अमृत धार
नैन देवी है वही , उन का सच्चा द्वार
हे अम्बे

मनन करे जो मनसा का मन के मिटे विकार
दे उज्जला प्रेम का , मेटे सब अन्धकार
हे अम्बे मेटे सब अन्धकार

मनोवांछित फल मिलता है बगला मुखी के द्वार
माँ दुर्गा तेरे रूप को , माने सब संसार
हे अम्बे , जय जय दुर्गे

शीतला शीतल करे, नाम रटे जो कोई
नासे सारे क्रोध को , हृद्या शीतल होए
जय जय अम्बे माँ

सिद्धेश्वरी राजेश्वरी कामाख्या पार्वती
श्याम गोरी और उकनी तू ही है माँ सती
जय जय अम्बे माँ

चंदा देवी उर्बाधा , वीरपुर मालिनी नाम
खुलती जहाँ तकदीर है , पावन तेरा नाम
हे माता पावन तेरा धाम

जिस घर में वास करे , लक्ष्मी रानी मात
उस घर में आनंद हो , सदा दिवाली रात
जय जय अम्बे माँ

कैला देवी कराली , लीला अपरम्पार
जिन के पावन धाम पर , हो रही जय जय कार
हे मैया तेरी जय जय कार

मंगलमयी है दुर्गा माता , सब की सुने पुकार
करुणा का तेरे द्वार पे, सदा खुला द्वार
अम्बे जय

हिंगलाज भयहारनी रमा उमा माँ शक्ति
मन मंदिर में बसा के कर लो इन की भक्ति
जय जय अम्बे माँ

तारा माँ जगतारिणी भव सागर से पार
विन्धेश्वरी भुवनेश्वरी सब को बांटे प्यार
हे अम्बे

करे सवारी वृषभ की रुद्राणी मेरी माँ
अपने आँचल की अम्बे , सब को देती छाव
हे माता

पद्मावती , मुक्तेश्वरी, माता बड़ी महान
करती सब की सहाये है , कहे रु

मिले शक्ति निर्बल को जहाँ वो है माँ का धाम
कामधेनु से तुल्य है शिव शक्ति का नाम

त्रिपुर रूपिणी भगवती जिन का खजाना ज्ञान
मैया मेरी वरदानी है देती है वरदान
जय दुर्गे जय माँ

कामना पूरी करे कामाक्षी , देती है सदा मान
याचक जिस के देवता स्वर्ण मैया क्ष

रोहिणी और सुभद्रा दूर करे अज्ञान
छल कपट ना छोड़ती तोड़े है अभिमान
जय अम्बे

अष्टभुजी मंगलकर्णी पावन जिस का द्वार
महर्षि और संत जपते जिन को बारम्बार

मधु कैटभ और रक्तबीज का तूने किया संहार
धूम्रलोचन का वध कर के हरा भूमि का भार

विम्राम्भा की शरण जो जाते , रखती उन की लाज
सकल पदार्थ वो पाये बन जाए बिगड़े काज

पांचो चोर उन्हें छले , साफ़ रखे ना मन
माँ के चरणो में कर दे तन मन सब अर्पण

कौशकी देवी मझधार से पार लगाये नाव
अम्बिका माँ पूजिए चल के नंगे पाँव

भैरवी देवी का करो मन से तुम वंदन
खुशिओं से महके सदा भक्तो घर आँगन

नंदिनी नारायणी , महादेवी कहलाये
हर संकट से मुक्त हो इन का जो ध्यान लगाये

मनमोहिनी माँ मूर्ति करती प्रेम बरसात
करुणा सब पे करती है दुर्गा भोली मात

मीठी लोरी ममता की गूंजे आठो याम
अमृत बरसो vaani में , माँ को जो आये नाम

कन कन अंदर माँ बेस , जगह ना खाली कोई
सारे ही ब्रह्माण्ड में जिन का उज्जला होए

करुणा करे करुणामयी माता करुणानिधान
सृष्टि की पालन हार उन की उच्ची शान

जीवन मृत्यु यश अपयश सब है माँ के हाथ
वो कैसे घबरायेगा माँ हो जिस के साथ

तेरी शरण में आ गया यह संजय मेहता
ऐसा वार मोहे दीजिये करता राहु गुणगान












हनुमानजी भीमसेनजी : Sanjay mehta Ludhiana









एक बार हनुमानजी गन्धमादन के एक भाग में अपनी पूँछ फैलाकर स्वच्छन्द पड़े थे। उसी समय बलगर्वित भीमसेन को आते देख वे मन में हँसते हुए उनसे बोलते - 'अनघ ! बुढ़ापे के कारण मै स्वयं उठने में असमर्थ हूँ , कृपया आप ही मेरी इस पूँछ को हटाकर आगे बढ़ जाइए ' भीमसेन अवज्ञा के साथ हँसते हुए बायें हाथ से उन महाकपि की पूँछ हटाने लगे , पर वह टस-से-मस न हुई. तब वे अपने दोनों हाथो से जोर लगाने लगे, फिर भी इंदरधनुष के समान उठी हुई वह पूँछ उनके द्वारा टस-से-मस न हुई। इस अनपेक्षित पराभव के कारण भीमसेन ने उन्हें पहचानकर लज्जावंत-मुख हो उन कपिशार्दूल से क्षमा मांगी
अब कहिये जय श्री हनुमान जय श्री राम जय माता दी जी








गुरुवार, 10 जुलाई 2014

सबकुछ परमात्मा ही करता है (कहानी): Sanjay Mehta Ludhiana









सबकुछ परमात्मा ही करता है (कहानी)



काशी में बस जाने के बाद कबीर साहिब ने वहां सत्संग करना शुरू किया , उनका उपदेश था की मनुष्य को अपने अंदर ही परमात्मा की तलाश करनी चाहिये। उनकी यह शिक्षा कटटर पंडितो और मौलवियों , दोनों के विचारो से बहुत भिन्न थी। इसलिए दोनों उनके कटटर विरोधी हो गए , परन्तु कबीर साहिब ने उनकी और ध्यान नहीं दिया। जो जिज्ञासु सत्य की खोज में उनके पास आते , उन्हें वे बेखटके अपना उपदेश सुनाते। धीरे धीरे उनके शिष्यों की गिनती बढ़ती गई और कबीर का नाम दूर -दूर तक फ़ैल गया

जब पंडितों और मौलवीओ ने देखा की उनके विरोध का कबीर पर कुछ असर नहीं हुआ है तो उन्हों ने कबीर जी को नीचे दिखने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने काशी और उसके आसपास यह खबर फैला दी के कबीर जी बहुत धनवान है और अमुक दिन एक धार्मिक पर्व पर बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे है जिसमे भोज का भी आयोजन है। जो भी उसमे शामिल होना चाहे उनका स्वागत है

जब कथित भोज का दिन पास आया तो क्या गरीब और क्या अमीर, हजारों लोग कबीर की कुटिया की और चल पड़े। एक मामूली जुलाहे के पास इतने लोगों को भोजन कराने के लिए ना तो धन था और ना खाने का समान। इस मुश्किल से बचने के लिए कबीर साहिब शहर से बाहर बहुत दूर चले गए और एक पेड़ की छाया में चुपचाप बैठ गए

परन्तु जैसे ही कबीर जी घर से निकले , स्वयं परमात्मा ने कबीर जी के रूप में प्रकट होकर भोजन की व्यवस्था की और हजारों लोगों को स्वयं भोजन कराया। भोज के लिए आनेवाला हर एक व्यक्ति यह कहते हुए लौटा , "धन्य है कबीर जी , धन्य है कबीर जी "

जैसे ही साँझ ढली और अँधेरा छाने लगा , कबीर अपने घर को लौटे। जो कुछ दिन में घटा था उसका हाल सुना. ख़ुशी से भर कबीर जी कह उठे

"ना कछु किया ना करि सका, ना करने जोग सरीर।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर।।
जय माता दी जी










मंगलवार, 1 जुलाई 2014

ईश्वर की तरफ से शिकायत: Ishwar ki Taraf Se Shikayat








मेरे प्रिय...

सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात करोगे।
तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे। लेकिन तुम
फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!

फिर मैंने सोचा कि तुम नहा के मुझे याद करोगे। पर तुम इस उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!! फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर
दौड़ रहे थे...तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।

मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात ही नहीं की...एक मौका ऐसा भी आया जब तुम बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया। दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर- उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये। जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे। तुमनें अपनी पत्नी, बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर सो गये।

मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं... तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताऊँ...तुम्हारी कुछ सुनूं...तुम्हे कुछ सुनाऊँ। कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।

मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ। हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद करोगे। पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ।

खैर कोई बात नहीं...हो सकता है कल तुम्हें मेरी याद आ जाये!!! ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम में आस्था है।
आखिरकार मेरा दूसरा नाम...प्यार और विश्वास ही तो है।
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तुम्हारा
इश्वर








सोमवार, 30 जून 2014

Bhakt or Bhagwan : Sanjay Mehta Ludhiana









एक भक्त था वह बिहारी जी को बहुत मानता था,बड़े प्रेम और भाव से
उनकी सेवा किया करता था.

एक दिन भगवान से कहने लगा – में आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझे
आपकी अनुभूति नहीं हुई.
मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये
की मुझे ये अनुभव हो की आप हो.

भगवान ने कहा ठीक है.
तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो,जब तुम रेत पर चलोगे
तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देगे, दो तुम्हारे पैर होगे और
दो पैरो के निशान मेरे होगे.इस तरह तुम्हे मेरी अनुभूति होगी.
अगले दिन वह सैर पर गया,जब वह रे़त पर चलने लगा तो उसे अपने
पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ,अब रोज ऐसा होने लगा.

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया, वह सड़क पर आ
गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया.
देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत मे सब साथ छोड देते है.
अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये.उसे
बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त मे भगवन ने साथ छोड दिया.धीरे-धीरे
सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसके पास वापस आने लगे.
एक दिन जब वह सैर पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई देने
लगे.उससे अब रहा नही गया, वह बोला-

भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर मुझे
इस बात का गम नहीं था क्योकि इस दुनिया में ऐसा ही होता है, पर आप ने
भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था, ऐसा क्यों किया?

भगवान ने कहा – तुमने ये कैसे सोच लिया की में तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा,
तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वे तुम्हारे
पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे,

उस समय में तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब
तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है. इसलिए
तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे है.










माँ (परमगुरु, परब्रम्ह, परमात्मा, ब्रह्माण्डस्वरूपी ) : Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










पानी के बिना नदी ,
अतिथि के बिना आँगन ,
स्नेह के बिना सम्बन्धी ,
पैसे के बिना ज़ेब , """"""और"""""
माँ (परमगुरु, परब्रम्ह, परमात्मा, ब्रह्माण्डस्वरूपी) के बिना जीवन बेकार है !
मां की याद ऐसे आती है जैसे आती है महक बाग के किसी कोने से

कोने में खिले किसी फूल से जैसे आती है माटी-गंध
आषाढ़ की पहली बारिश में आंगन की भीगी हुई काली मिट्टी से- ठीक ऐसे ही आती है मां की याद

कभी कभी जब कुछ भी नहीं होता करने को सोचता हूं कितने सपने लगते होंगे एक ताजमहल बनाने के लिये....लोग कहते हैं जिनके पास जितने सपने हैं उतने ही सपनों से बनाया जा सकता है ताजमहल...लोग तो यहां तक कहते हैं सिर्फ एक ही सपना काफी है ताजमहल बनाने के लिये !

मां के पास सपने ढेरों थे मगर दुर्भाग्य ताजमहल एक भी नहीं ऐसा क्यों ! ?
माँ तो बस माँ ही होती है .
बच्चो को भरपेट खिलाती खुद भूखी ही सोती है
बच्चों की चंचल अठखेली देख देख खुश होती है
बचपन के हर सुन्दर पल को बना याद संजोती है
देख तरक्की बच्चों की वो आस के मोती पोती है
बच्चों की खुशहाली में वो अपना जीवन खोती है
बच्चों की बदली नज़रों से नहीं शिकायत होती है
जब-जब झुकता सर होठों पर कोई दुआ ही होती है

धूप कड़ी सहकर भी माँ तुम, कभी न हारी यौवन में,
धरम तुम्हारा खूब निभाया, तुमने अपने जीवन में !
सहम रही ममता पलकों में, नज़र तुम्हारी झुकी-झुकी,
तड़प रही है धड़कन भी अब, साँस तुम्हारी रुकी-रुकी ।
न्योता दिया बुढ़ापे ने अब तुमको अपने आँगन में !

गूँज रही कानों में मेरे वही तुम्हारी मुक्त हँसी,
आज कराहों में भी तो है छुपी हुई मुस्कान बसी !
हाय जिंदगी सजी-सजाई, बीती कितनी उलझन में !

टूट गए कुछ सपने तो क्या, रात अभी भी बाकी है,
और नए कुछ सज जाएँगे, प्रात अभी भी बाकी है ।
ढलती संध्या में भर लो तुम जोश नया अपने तन में !

पूछता है जब कोई कि
इस दुनिआ में मोहब्बत है कहाँ..?
मुस्कुरा देता हूँ मै,
और याद आ जाती है माँ










प्यारी माँ : Pyari Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










प्यारी माँ


तू कैसी है ?क्या मुझको याद करती है
तूने पूछा था कैसा हूँ मै ..मै अच्छा हूँ

तेरी ही सोच के जैसा हूँ
यहा सब सो गए हैं मै अकेला बैठा हूँ
सोचता हूँ क्या करती होगी तू
काम करते करते बालों का जूडा बनाती होगी या फिर
बिखरे समान को समेटती होगी
पर माँ अब समान फैलाता होगा कौन
मै तो यंहा बैठा हूँ मौन

सुनो माँ तुमने सिखाया था सच बोलो सदा
आज जो सच बोला तो क्लास के बाहर खड़ा था
तुमने जैसा कहा है वैसा ही करता हूँ
ख़ुद से पहले ध्यान दूसरों का रखता हूँ
पर देखो न माँ सब से पीछे रह गया हूँ
सब कुछ आता है मुझको फ़िर भी
टीचर की निगाह से गिर गया हूँ

किसी पे हाथ न उठाना तुम ने कहा था
पर जानती हो माँ आज उन्होंने बहुत मारा है मुझे
जवाब मै भी दे सकता था पर मारना तो बुरी बात है न माँ
यंहा सभी मुझे बुजदिल समझते हैं
मै कमजोर नही हूँ मै तो तेरा बहादुर बेटा हूँ न माँ

अब तुम ही कहो क्या मै कुछ ग़लत कर रहा हूँ
तेरा कहा ही तो कर रहा हूँ, तू तो ग़लत हो सकती नही
फिर सब कुछ क्यों ग़लत हो रहा है बताओ न माँ
क्या इनको ये बातें मालूम नही

माँ एक बार यहां आओ न
जो कुछ मुझे बताया इन्हे भी समझाओ न

एक बात बताओ क्या आज भी तू कहेगी कि तुझे मुझपे गर्व है
माँ बोलो न..क्या मै तेरी सोच के जैसा हूँ और तेरा राजा बेटा हूं









माँ : Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










घर में अकेली माँ ही बस सबसे बड़ी पाठशाला है।
जिसने जगत को पहले-पल ज्ञान का दिया उजाला है।

माँ से हमने जीना सीखा, माँ में हमको ईश्वर दीखा,
हम तो हैं माला के मनके, माँ मनकों की माला है।

माँ आँखों का मीठा सपना, माँ साँसों में बहता झरना,
माँ है एक बरगद की छाया जिसने हमको पाला है।

माँ कितनी तकलीफ़ें झेल, बाँटे सुख, सबके दुख ले ले।
दया-धर्म सब रूप हैं माँ के, और हर रूप निराला है।









रविवार, 22 जून 2014

मालिनी सुखिया और कृष्णा जी : संजय मेहता










मालिन रोज परमात्मा को मनाती रहती थी, नाथ, दर्शन दीजिये . तीन वर्ष पुरे हो गए। अब तो कृष्ण विरह असहाए हो गया है। उसका मन भी शुद्ध हो गया है। आज उसने निश्चय किया है , जब तक कन्हैया का दर्शन ना कर पाऊँ , तब तक नंदबाबा के आँगन से नहीं हटूंगी जीव जब वियोगाग्नि में छटपटाने लगता है , भगवान आ मिलते है

कटि पर सोने की करधनी, ह्रदय में बाजूबंद , गले में कंठी , पग में पैजनिया और मस्तक पर मोरपंख से विभूषित मेरा कन्हैया छुमक- छुमक करता हुआ आँगन में आया (कितने सुन्दर लग रहे है संजय के प्रभु )

दर्शनातुर मालिन के सामने आकर, हाथ फैला कर लाला फल मांगने लगा. बालकन्हैया से मालिन भी बाते करने के लिए आतुर थी

मालिनी ने सोचा की यदि लाला के हाथ में फल रख देगी तो तुरंत ही वह भीतर लौट जायेगा . सो वह उसको बातो से रोकने लगी , मै फल देने नहीं , बेचने आई हु लला , फल ले और मुझे अनाज दे। फिर उसे दुःख भी हुआ की अनाज माँगा ही क्यों . कन्हैया बड़ा दयालु और प्रेमी है। वह मेरी गोद में आएगा तो मै उसे प्यार करुँगी

बाल कृष्ण दौड़ता हुआ तो मुठी भर चावल ले आया और मालिन की टोकरी में रख दिए . अब तो फल दो मालिन ने कहा , मेरी गोद में तो बैठ बेटा, मै तुमसे दुःख सुख की बाते करना चाहती हु, तो कन्हैया उछल कर उसकी गोद में जा बैठा। मालिन की इच्छा परिपूर्ण हुई ब्रह्मसम्बन्ध सम्पन्न हुआ , हजारो वर्षो का विरही जीव आज ईश्वर से जा मिला जय हो।

फल मिलते है लाला भागा हुआ घर में चला गया , मालिन ने प्रभु से प्राथना की की कही अपने कन्हैया को अपनी ही नजर ना लग जायें। अपनी टोकरी लेकर सुखिया घर वापस आई , टोकरी सर से उतारी तो देखा की वह तो रत्नो से भरी पड़ी है। उसे सुख आश्चर्य हुआ , सोचने लगी कि मेरे जन्म - जन्मांतर का द्ररिद्रया दूर हो गया। ईश्वर को फल दोगे तो तुम्हे रत्न देंगे। परमात्मा जब देते है तो छप्पर फाड़ कर देते है। मनुष्या देते समय कुछ संकोच रखता है , किन्तु प्रभु तो कई गुना बढ़ाकर देते है। अब कहिये जय श्री कृष्णा। जय माता दी जी










शुक्रवार, 6 जून 2014

सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ : Sab Se Sunder hai hmari jai ambe maa : Sanjay Mehta Ludhiana








सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !
जय अम्बे माँ -2 !



नदिया है सुन्दर, समंदर है सुन्दर
धरती के ऊपर का अम्बर है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

चंदा है सुन्दर सितारे है सुन्दर
बागो में खिलाती बहारें है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

हार है सुन्दर, सिंगर है सुन्दर
बारह महीनो के तैयोहार है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

गीत है सुन्दर संगीत है सुन्दर
‘’लाटा की मैया से प्रीत है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

जय अम्बे माँ, जय अम्बे माँ


http://youtu.be/y8c2zHU4vpY














बुधवार, 4 जून 2014

मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती: Man Mera Mandir Aankhe diya Baati : Sanjay Mehta Ludhiana








मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती,
होंठो की हैं थालिया, बोल फूल पाती।
रोम रोम जीभा तेरा नाम पुकारती,
आरती ओ मैया तेरी आरती,
ज्योतां वालिये माँ तेरी आरती॥

हे महालक्ष्मी हे गौरी, तू अपने आप है चोहरी,
तेरी कीमत तू ही जाने, तू बुरा भला पहचाने।
यह कहते दिन और राती, तेरी लिखीं ना जाए बातें,
कोई माने जा ना माने हम भक्त तेरे दीवाने,
तेरे पाँव सारी दुनिया पखारती॥

हे गुणवंती सतवंती, हे पत्त्वंती रसवंती,
मेरी सुनना यह विनंती, मेरी चोला रंग बसंती।
हे दुःख भंजन सुख दाती, हमें सुख देना दिन राती,
जो तेरी महिमा गाये, मुहं मांगी मुरादे पाए,
हर आँख तेरी और निहारती॥

हे महाकाल महाशक्ति, हमें देदे ऐसी भक्ति,
हे जगजननी महामाया, है तू ही धुप और छाया।
तू अमर अजर अविनाशी, तू अनमिट पूरनमाशी,
सब करके दूर अँधेरे हमें बक्शो नए सवेरे।
तू तो भक्तो की बिगड़ी संवारती॥












सोमवार, 19 मई 2014

माता जी का विराट स्वरूप कैसा है ? Mata G Ka Viraat Swroop Kaisa Hai ? : Sanjay Mehta Ludhiana







माता जी का विराट स्वरूप कैसा है ?



आँखे मूंदकर मनन कीजिये कि हजारों कमल - पुष्प एकदम खिल उठे ! सोचिये कि एक हजार सूर्य एक ही आकाश - मंडल में एक साथ उदय हो गए !! ऐसा ही उसका रूप , ऐसा ही उसका तेज। सूर्य और चन्द्र उसके दोनों नेत्र है। नक्षत्र आभूषण है , हरी - भरी धरा का सिंहासन और नीला आकाश उस पर छत्र छाया है , सिन्दूरी लाल सुए रंग के फूलें में उसका रूप झलकता है। अस्ताचल को जाते हुए रक्तवर्ण सूर्य में भी वही दीप्तिमान है। हिमपात के कारण सफेद चादर से ढके हुए पर्वतो में विराजमान है। श्वेत हंस वाहन पर श्वेत -वस्त्र धारण किये सरस्वती के रूप में शोभायमान है। स्त्रियों की लज्जा में , योद्धाओं के आक्रोश में और विकराल काल-ज्वाला की लपटों रूपी जिह्वा में दमक रही है। अम्बा के रूप में माँ का स्नेह उड़ेल देती है। त्रिपुर सुंदरी के रूप में अद्विदित्य सम्मोहन है और महाकाली के रूप में नरमुण्डों की माला पहने भयानक नृत्य करती है। यध्यपि वह निर्गुण है तथापि समय - समय पर दुष्टो के नाश के लिए अवतार धारण करती है। संजय मेहता का जीवन बस जय माता दी जय माता दी कहते हुए बीते यह मैया जी से आशीर्वाद चाहिए। अब कहिये जय माता दी








शनिवार, 17 मई 2014

शिव अमृतवाणी / Shiv Amritwaani By Sanjay Mehta Ludhiana








शिव अमृत की पावन धारा
धो देती हर कष्ट हमारा
शिव का काज सदा सुखदायी
शिव के बिन है कौन सहायी




शिव की निसदिन की जो भक्ति
देंगे शिव हर भय से मुक्ति
माथे धरो शिव नाम की धुली
टूट जायेगी यम कि सूली




शिव का साधक दुःख ना माने
शिव को हरपल सम्मुख जाने
सौंप दी जिसने शिव को डोर
लूटे ना उसको पांचो चोर



शिव सागर में जो जन डूबे
संकट से वो हंस के जूझे
शिव है जिनके संगी साथी
उन्हें ना विपदा कभी सताती



शिव भक्तन का पकडे हाथ
शिव संतन के सदा ही साथ
शिव ने है बृह्माण्ड रचाया
तीनो लोक है शिव कि माया






जिन पे शिव की करुणा होती
वो कंकड़ बन जाते मोती
शिव संग तान प्रेम की जोड़ो
शिव के चरण कभी ना छोडो


शिव में मनवा मन को रंग ले
शिव मस्तक की रेखा बदले
शिव हर जन की नस-नस जाने
बुरा भला वो सब पहचाने
जय माता दी जी


अजर अमर है शिव अविनाशी
शिव पूजन से कटे चौरासी
यहाँ वहाँ शिव सर्व व्यापक
शिव की दया के बनिये याचक
जय माता दी जी


शिव को दीजो सच्ची निष्ठां
होने न देना शिव को रुष्टा
शिव है श्रद्धा के ही भूखे
भोग लगे चाहे रूखे-सूखे
जय माता दी जी



भावना शिव को बस में करती ,
प्रीत से ही तो प्रीत है बढ़ती।
शिव कहते है मन से जागो
प्रेम करो अभिमान त्यागो।
जय माता दी जी




दुनिया का मोह त्याग के शिव में रहिये लीन ।
सुख-दुःख हानि-लाभ तो शिव के ही है अधीन।
जय माता दी जी




भस्म रमैया पार्वती वल्ल्भ
शिव फलदायक शिव है दुर्लभ
महा कौतुकी है शिव शंकर
त्रिशूल धारी शिव अभयंकर
जय माता दी जी




शिव की रचना धरती अम्बर ,
देवो के स्वामी शिव है दिगंबर
काल दहन शिव रूण्डन पोषित
होने न देते धर्म को दूषित
जय माता दी जी


दुर्गापति शिव गिरिजानाथ
देते है सुखों की प्रभात
सृष्टिकर्ता त्रिपुरधारी
शिव की महिमा कही ना जाती
जय माता दी जी


दिव्या तेज के रवि है शंकर
पूजे हम सब तभी है शंकर
शिव सम और कोई और दानी
शिव की भक्ति है कल्याणी
जय माता दी जी




सबके मनोरथ सिद्ध कर देते
सबकी चिंता शिव हर लेते
बम भोला अवधूत सवरूपा
शिव दर्शन है अति अनुपा
जय माता दी जी



अनुकम्पा का शिव है झरना
हरने वाले सबकी तृष्णा
भूतो के अधिपति है शंकर
निर्मल मन शुभ मति है शंकर
जय माता दी जी



काम के शत्रु विष के नाशक
शिव महायोगी भय विनाशक
रूद्र रूप शिव महा तेजस्वी
शिव के जैसा कौन तपस्वी
जय माता दी जी



शिव है जग के सृजन हारे
बंधु सखा शिव इष्ट हमारे
गौ ब्राह्मण के वे हितकारी
कोई न शिव सा पर उपकारी
जय माता दी जी



शिव करुणा के स्रोत है शिव से करियो प्रीत
शिव ही परम पुनीत है शिव साचे मन मीत ।
जय माता दी जी




शिव सर्पो के भूषणधारी
पाप के भक्षण शिव त्रिपुरारी
जटाजूट शिव चंद्रशेखर
विश्व के रक्षक कला कलेश्वर
जय माता दी जी



शिव की वंदना करने वाला
धन वैभव पा जाये निराला
कष्ट निवारक शिव की पूजा
शिव सा दयालु और ना दूजा
जय माता दी जी


पंचमुखी जब रूप दिखावे
दानव दल में भय छा जावे
डम-डम डमरू जब भी बोले
चोर निशाचर का मन डोले
👏 जय माता दी जी 👏
💦 आप सब को होली मुबारक हो जी 👐



घोट घाट जब भंग चढ़ावे
क्या है लीला समझ ना आवे
शिव है योगी शिव सन्यासी
शिव ही है कैलास के वासी
जय माता दी जी
🍃 🌺 🌻


शिव का दास सदा निर्भीक
शिव के धाम बड़े रमणीक
शिव भृकुटि से भैरव जन्मे
शिव की मूरत राखो मन में
🙏जय माता दी जी 🙏
🌺🌻🌹🌷🌸



शिव का अर्चन मंगलकारी
मुक्ति साधन भव भयहारी
भक्त वत्सल दीन द्याला
ज्ञान सुधा है शिव कृपाला
🌾जय माता दी जी 🌾
🐚🐠🐟🐬 Jai Mata Di G -- Sanjay Mehta -- #sanjaymehtaa �🐋🐇🐉




शिव नाम की नौका है न्यारी
जिसने सबकी चिंता टारी
जीवन सिंधु सहज जो तरना
शिव का हरपल नाम सुमिरना
👳👮👷💂👼 🙏 जय माता दी जी 🙏👳👮👷💂👼
Jai Mata Di G -- Sanjay Mehta -- #sanjaymehtaa




तारकासुर को मारने वाले
शिव है भक्तो के रखवाले
शिव की लीला के गुण गाना
शिव को भूल के ना बिसराना
ૐ ψ ॐ🍎🍏🍊🍋🍒 🔔 जय माता दी जी 🔔🍎🍏🍊🍋🍒 ૐ ψ ૐ
Jai Mata Di G -- Sanjay Mehta -- #sanjaymehtaa




अन्धकासुर से देव बचाये
शिव ने अद्भुत खेल दिखाये
शिव चरणो से लिपटे रहिये
मुख से शिव शिव जय शिव कहिये
🍐🍌🍈🍑🍉🍇🍅जय माता दी जी 🍐🍌🍈🍑🍉🍇🍅
Jai Mata Di G -- Sanjay Mehta -- #sanjaymehtaa




भस्मासुर को वर दे डाला
शिव है कैसा भोला भाला
शिव तीर्थो का दर्शन कीजो
मन चाहे वर शिव से लीजो
🍃🍁🌺🌻🌹🌷💐जय माता दी जी 🍃🍁🌺🌻🌹🌷💐




शिव शंकर के जाप से मिट जाते सब रोग
शिव का अनुग्रह होते ही पीड़ा ना देते शोक



ब्र्हमा विष्णु शिव अनुगामी
शिव है दीन - हीन के स्वामी
निर्बल के बलरूप है शम्भु
प्यासे को जलरूप है शम्भु
🌾😜💜💛💙🌻🌹🙏जय माता दी जी 🙏🌾😜💜💛💙🌻🌹
Jai Mata Di G -- Sanjay Mehta -- #sanjaymehtaa




रावण शिव का भक्त निराला
शिव ने दी दश शीश कि माला
गर्व से जब कैलाश उठाया
शिव ने अंगूठे से था दबाया
जय माता दी जी




दुःख निवारण नाम है शिव का
रत्न है वो बिन दाम शिव का
शिव है सबके भाग्यविधाता
शिव का सुमिरन है फलदाता
जय माता दी जी
🐚🌺💜🌹🌷🌻😜👺🙏

महादेव शिव औघड़दानी
बायें अंग में सजे भवानी
शिव शक्ति का मेल निराला
शिव का हर एक खेल निराला
जय माता दी जी



शम्भर नामी भक्त को तारा
चन्द्रसेन का शोक निवारा
पिंगला ने जब शिव को ध्याया
देह छूटी और मोक्ष पाया
जय माता दी जी


गोकर्ण की चन चूका अनारी
भव सागर से पार उतारी
अनसुइया ने किया आराधन
टूटे चिन्ता के सब बंधन
जय माता दी जी



बेल पत्तो से पूजा करे चण्डाली
शिव की अनुकम्पा हुई निराली
मार्कण्डेय की भक्ति है शिव
दुर्वासा की शक्ति है शिव
जय माता दी जी



राम प्रभु ने शिव आराधा
सेतु की हर टल गई बाधा
धनुषबाण था पाया शिव से
बल का सागर तब आया शिव से
जय माता दी जी
जय शिव शक्ति





श्री कृष्ण ने जब था ध्याया
दश पुत्रों का वर था पाया
हम सेवक तो स्वामी शिव है
अनहद अन्तर्यामी शिव है
जय माता दी जी



दीन दयालु शिव मेरे, शिव के रहियो दास
घट - घट की शिव जानते , शिव पर रख विश्वास
जय माता दी जी



परशुराम ने शिव गुण गाया
कीन्हा तप और फरसा पाया
निर्गुण भी शिव निराकार
शिव है सृष्टि के आधार
जय माता दी जी
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शिव ही होते मूर्तिमान
शिव ही करते जग कल्याण
शिव में व्यापक दुनिया सारी
शिव की सिद्धि है भयहारी
जय माता दी जी



शिव ही बाहर शिव ही अन्दर
शिव ही रचना सात समुन्द्र
शिव है हर इक के मन के भीतर
शिव है हर एक कण - कण के भीतर
जय माता दी जी



तन में बैठा शिव ही बोले
दिल की धड़कन में शिव डोले
'हम' कठपुतली शिव ही नचाता
नयनों को पर नजर ना आता
जय माता दी जी




माटी के रंगदार खिलौने
साँवल सुन्दर और सलोने
शिव हो जोड़े शिव हो तोड़े
शिव तो किसी को खुला ना छोड़े
जय माता दी जी



आत्मा शिव परमात्मा शिव है
दयाभाव धर्मात्मा शिव है
शिव ही दीपक शिव ही बाती
शिव जो नहीं तो सब कुछ माटी
जय माता दी जी



सब देवो में ज्येष्ठ शिव है
सकल गुणो में श्रेष्ठ शिव है
जब ये ताण्डव करने लगता
बृह्माण्ड सारा डरने लगता
जय माता दी जी



तीसरा चक्षु जब जब खोले
त्राहि त्राहि यह जग बोले
शिव को तुम प्रसन्न ही रखना
आस्था लग्न बनाये रखना
जय माता दी जी


विष्णु ने की शिव की पूजा
कमल चढाऊँ मन में सुझा
एक कमल जो कम था पाया
अपना सुंदर नयन चढ़ाया
जय माता दी जी



साक्षात तब शिव थे आये
कमल नयन विष्णु कहलाये
इन्द्रधनुष के रंगो में शिव
संतो के सत्संगों में शिव
जय माता दी जी


महाकाल के भक्त को मार ना सकता काल
द्वार खड़े यमराज को शिव है देते टाल
जय माता दी जी



यज्ञ सूदन महा रौद्र शिव है
आनन्द मूरत नटवर शिव है
शिव ही है श्मशान के वासी
शिव काटें मृत्युलोक की फांसी
जय माता दी जी


व्याघ्र चरम कमर में सोहे
शिव भक्तों के मन को मोहे
नन्दी गण पर करे सवारी
आदिनाथ शिव गंगाधारी
जय माता दी जी



काल में भी तो काल है शंकर
विषधारी जगपाल है शंकर
महासती के पति है शंकर
दीन सखा शुभ मति है शंकर
जय माता दी जी .





लाखो शशि के सम मुख वाले
भंग धतूरे के मतवाले
काल भैरव भूतो के स्वामी
शिव से कांपे सब फलगामी
जय माता दी जी



शिव है कपाली शिव भस्मांगी
शिव की दया हर जीव ने मांगी
मंगलकर्ता मंगलहारी
देव शिरोमणि महासुखकारी
जय माता दी जी



जल तथा विल्व करे जो अर्पण
श्रद्धा भाव से करे समर्पण
शिव सदा उनकी करते रक्षा
सत्यकर्म की देते शिक्षा
जय माता दी जी



वासुकि नाग कण्ठ की शोभा
आशुतोष है शिव महादेवा
विश्वमूर्ति करुणानिधान
महा मृत्युंजय शिव भगवान
जय माता दी जी




शिव धारे रुद्राक्ष की माला
नीलेश्वर शिव डमरू वाला
पाप का शोधक मुक्ति साधन
शिव करते निर्दयी का मर्दन
जय माता दी जी



शिव सुमरिन के नीर से धूल जाते है पाप
पवन चले शिव नाम की उड़ते दुख संताप
जय माता दी जी



पंचाक्षर का मंत्र शिव है
साक्षात सर्वेश्वर शिव है
शिव को नमन करे जग सारा
शिव का है ये सकल पसारा
जय माता दी जी




क्षीर सागर को मथने वाले
ऋद्धि सीधी सुख देने वाले
अहंकार के शिव है विनाशक
धर्म-दीप ज्योति प्रकाशक
जय माता दी जी


शिव बिछुवन के कुण्डलधारी
शिव की माया सृष्टि सारी
महानन्दा ने किया शिव चिन्तन
रुद्राक्ष माला किन्ही धारण
जय माता दी जी



भवसिन्धु से शिव ने तारा
शिव अनुकम्पा अपरम्पारा
त्रि-जगत के यश है शिवजी
दिव्य तेज गौरीश है शिवजी
जय माता दी जी



महाभार को सहने वाले
वैर रहित दया करने वाले
गुण स्वरूप है शिव अनूपा
अम्बानाथ है शिव तपरूपा
जय माता दी जी



शिव चण्डीश परम सुख ज्योति
शिव करुणा के उज्ज्वल मोती
पुण्यात्मा शिव योगेश्वर
महादयालु शिव शरणेश्वर
जय माता दी जी



शिव चरणन पे मस्तक धरिये
श्रद्धा भाव से अर्चन करिये
मन को शिवाला रूप बना लो
रोम रोम में शिव को रमा लो
जय माता दी जी



दशों दिशाओं मे शिव दृष्टि
सब पर शिव की कृपा दृष्टि
शिव को सदा ही सम्मुख जानो
कण-कण बीच बसे ही मानो
जय माता दी जी



शिव को सौंपो जीवन नैया
शिव है संकट टाल खिवैया
अंजलि बाँध करे जो वंदन
भय जंजाल के टूटे बन्धन
जय माता दी जी



जिनकी रक्षा शिव करे , मारे न उसको कोय
आग की नदिया से बचे , बाल ना बांका होय
जय माता दी जी




शिव दाता भोला भण्डारी
शिव कैलाशी कला बिहारी
सगुण ब्रह्म कल्याण कर्ता
विघ्न विनाशक बाधा हर्ता
जय माता दी जी



शिव स्वरूपिणी सृष्टि सारी
शिव से पृथ्वी है उजियारी
गगन दीप भी माया शिव की
कामधेनु है छाया शिव की
जय माता दी जी




गंगा में शिव , शिव मे गंगा
शिव के तारे तुरत कुसंगा
शिव के कर में सजे त्रिशूला
शिव के बिना ये जग निर्मूला
जय माता दी जी .




स्वर्णमयी शिव जटा निराळी
शिव शम्भू की छटा निराली
जो जन शिव की महिमा गाये
शिव से फल मनवांछित पाये
जय माता दी जी


शिव पग पँकज सवर्ग समाना
शिव पाये जो तजे अभिमाना
शिव का भक्त ना दुःख मे डोलें
शिव का जादू सिर चढ बोले
जय माता दी जी



परमानन्द अनन्त स्वरूपा
शिव की शरण पड़े सब कूपा
शिव की जपियो हर पल माळा
शिव की नजर मे तीनो क़ाला
जय माता दी जी



अन्तर घट मे इसे बसा लो
दिव्य जोत से जोत मिला लो
नम: शिवाय जपे जो स्वासा
पूरीं हो हर मन की आसा
जय माता दी जी



परमपिता परमात्मा पूरण सच्चिदानन्द
शिव के दर्शन से मिले सुखदायक आनन्द
जय माता दी जी



शिव से बेमुख कभी ना होना
शिव सुमिरन के मोती पिरोना
जिसने भजन है शिव के सीखे
उसको शिव हर जगह ही दिखे
जय माता दी जी



प्रीत में शिव है शिव में प्रीती
शिव सम्मुख न चले अनीति
शिव नाम की मधुर सुगन्धी
जिसने मस्त कियो रे नन्दी
जय माता दी जी


शिव निर्मल 'निर्दोष' 'संजय' निराले
शिव ही अपना विरद संभाले
परम पुरुष शिव ज्ञान पुनीता
भक्तो ने शिव प्रेम से जीता

ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये