शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

श्री रघुनाथ मंदिर : Sanjay Mehta Ludhiana










श्री रघुनाथ मंदिर : यह वैष्णो देवी यात्रा का सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं दर्शनीय मंदिर है राम यंत्र के आधार पर निर्मित इस मंदिर में लगभग सभी देवतओं के पन्द्रह विशाल मंदिर है महाराज रणवीर सिंह द्वारा बनवाया गया पुरे भारत में बेजोड़ मंदिर जम्मू में बस अड्डे के समीप ही स्थित है। कुछ यात्री वैष्णो देवी जाने से पहले तथा कई वापसी में भी यहाँ दर्शन करने आते है।इस मंदिर के परकोटे में 6 बड़े हाल है।जिनमे अनगिनत शालिग्राम संग्रहित है। मंदिर के पूजारियो के अनुसार नदी से निकले गए इस शालीग्रामों के गिनती 12.50 लाख है
जय माता दी जी

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Sanjay Mehta










गुरुवार, 29 नवंबर 2012

शाकुम्भरी देवी का स्वरूप कैसा है? By Sanjay Mehta Ludhiana









शाकुम्भरी देवी का स्वरूप कैसा है?


शाकुम्भरी देवी के स्वरूप का विस्त्रत वर्णन श्री दुर्गा सप्तशती के अंत में "मूर्ति-रहस्य" के अंतर्गत मिलता है - उसके अनुसार - श्री शाकुम्भरी देवी के शरीर का रंग नीला है।। उसकी आँखे नील - कमल के समान है।। वे कमल पर बैठती है उनकी एक मुट्ठी में कमल का एक फूल रहता है जो कि भंवरो से घिरा रहता है। दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है। फुल, पल्लव, कंदमूल आदि अनेको फलों से युक्त, इच्छित अनेक रसों से परिपूर्ण एवं भूख-प्यास -मृत्यु-बुढ़ापा को दूर करने वाले अनेकानेक शाक-समूह से उनकी मुट्ठियाँ परिपूर्ण है (अर्थात यह सभी उनके हाथ में है ) वे परमेश्वरी अत्यंत तेजस्वी धनुष को धारण करती है। वे ही देवी शाकुम्भरी है। शताक्षी है, और दुर्गा नाम से भी वे ही कही जाती है। वे ही महान आपित्तियो और महाशोक को दूर करने वाली एवं दुष्टों का दमन करने वाली है। श्री शाकुम्भरी देवी की स्तुति, ध्यान, पूजा और नमस्कार करने वाला मनुष्य शीघ्र ही अन्न, जल और अमृतरूपी अक्षय फल भोगता है।।
अब कहिये जय माता दी
फिर से कहिये जय माता दी

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Sanjay Mehta








सोमवार, 26 नवंबर 2012

बालस्वरूप कृष्ण भगवन By Sanjay Mehta Ludhiana








यशोदा मैया का वात्सल्य भाव था मेरा लाल मेरा बच्चा है उसे चोरी करने की आदत पड़ रही है, यह अच्छा नहीं है।।। अभी दही-माखन की चोरी कर रहा है, बड़ा होने पर फिर पैसे की चोरी करेगा तो? उन्होंने लाला से कहा - लाला! आज मै तुझे सजा दूँगी। ऊखल पर चढ़ कर चोरी की थी, उससे यशोदा माँ ने निश्चेय किया कि लाला को मै ऊखल से बाँध दूँगी। यशोदा मैया लाला को बाँधने गयी। वे तो बालकृष्ण को बच्चा ही मान रही थी। गोकुल में तो कृष्ण बालक बन कर ही रहे श्री कृष्ण परमात्मा है। यशोदा मैया श्री बाल कृष्ण को लाल रस्सी से बाँधने का यत्न कर ही रही है, पर ऐश्वर्या शक्ति मानती है की श्री कृष्ण मेरे पति है, मेरे पति को कोई बाँध रहा है। मुझसे देखा नहीं जाता। सहन नहीं हो सकता
इससे ऐश्वर्या शक्ति रस्सी में प्रविष्ट होती है। वह रस्सी को छोटी कर देती है। जिस रस्सी से यशोदा मैया श्री कृष्ण को बाँधने जाती है, वह रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ती है। यशोदा मैया तीसरी रस्सी लेकर उसमे गाँठ लगाकर बाँध देती है, गोपी यशोदा मैया को समझाने लगती है - माँ आज तुम्हे क्या हो गया है? याद है, जब तुम्हारे पुत्र नहीं था, तब तुम रोती थी। तुमने अनेक देवों की मनौती मानी थी। तब कही यह पुत्र मिला है, सारे गाँव को यह प्राणों से भी अधिक प्यारा है। मेरे घर आकर वह अनेक बार उधम मचाता है। पर कभी भी उसे बाँधने का विचार मैंने नहीं किया है।। माँ! तुम्हे जरा भी दया नहीं आती क्या? यशोदा मैया आज आवेश में है
वे कहती है -- आप अपने घर जाइए मेरा लड़का है, मुझे जैसा उचित लगेगा, मै वैसा करुँगी। आपको चिंता , करने की जरूरत नहीं है, उसे बुरी आदते पड़ गई है। वह किसी की सुनता नहीं है, आज घर की सब रस्सी एकत्र करके भी मै इसे बांधुंगी . यशोदा जी रस्सी एकत्र करके लाला को बाँधने का प्रयत्न करती है, पर रस्सी दो अंगुल छोटी ही पड़ती है
श्री बाल कृष्ण मन में मुस्करा रहे है। मंद सिम्त उनके चेहरे पर है ..यशोदा मैया चिढती है, पांच साल का लड़का मुझ पर हंस रही है। कुछ हो, मै इसे अवश्य बांधुंगी। श्री बाल कृष्ण माँ को मना रहे है। 'माँ! अब मै कभी चोरी नहीं करूँगा। आज तू मुझे छोड़ दे।।
यशोदा माता कहती है - नहीं छोड्गी , मै तुम्हे बांधुंगी। यशोदा माता का दुराग्रह है, वैष्णव जब प्रेम से परमात्मा को बांधते है, तब यह माया के बंधन से छूटता है, यह जीव प्रेम से परमात्मा को जब तक नहीं बांधता तब तक माया इसे नहीं छोडती। तब तक माया जीव को बाँध कर रखती है। यशोदा जी को आज लाला को बांधना ही है।।
काल भी जिससे घबराता है, वह लाला आज डर रहा है, वह माता से कह रहा है माँ मुझे छोड़ दे। माँ कहती है - मै नहीं छोड्गी .. मै तुम्हे सजा दूँगी। लाला ने सोचा कि आँख में आंसू आ जाये और रोने लगु तो माँ को दया आ जाएगी और वह छोड़ देगी लाला ने रोने का यत्न किया। पर आँख से आंसू निकल ही नहीं रहे है। लाला आँखे मलने लगा। काजल आँख में लगा है, वही काजल कपोल पर आ गया। यशोदा माता देख रही है , आज मेरा बाल कृष्ण कैसा दीख रहा है। आज बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है मेरा कान्हा।। भीतर प्रेम उमड़ रहा है, पर माता बहार थोडा नाटक करती है। लाला से कहती है - तू बहुत ऊधम मचाता है। बहुत नटखट हो गया है। आज मै तुझे बांधुंगी , तुझे सजा दूँगी।
तू झूठा है, तेरा रोना भी झूठा है। मै तुझे जानती हु, मै तेरी माँ हु। संजय मेहता कहता है - आपका वह बालस्वरूप अभी भी मेरी दृष्टि से दूर नहीं हो रहा भगवान् . आपका बालस्वरूप अति सुंदर है


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रविवार, 18 नवंबर 2012

जय श्री राधे - लुका-छिपी का खेल : Sanjay Mehta Ludhiana









अरी सखी ! तू जानती है यह कौन जा रहा है? प्रलयकाल में सभी को पेट में रखकर शेषशय्या में शयन करने वाले आदि नारायण परमात्मा यही है।। प्रलयकाल में जीव माया के अंधकार में छिपा हुआ रहता है, सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान एक - एक जीव को खोज कर बाहर निकलते है और प्रत्येक के कर्म के अनुसार प्रत्येक को जन्म देते है, पर फिर प्रभु जगत में छिप जाते है। भगवान जीव से कहते है -- एक बार जब तुम छिप गए , तब मैंने तुम्हे ढूंढ कर बाहर निकाला । अब मै छिप जाता हु, तुम मुझे दूंढ लो। संसार की रचना करके परमात्मा जगत में छिप गए है, परमात्मा को ढूंढने का प्रयत्न करिये। लाला को लुका-छिपी का खेल बहुत पसंद है। श्री बालकृष्णलाल गोकुल में लुका-छिपी का खेल, खेल रहे है, बच्चे जब छिप जाते है, तब कन्हैया उन्हें खोजने जाते है और जब कभी कन्हैया छिप जाते है तब बच्चे उसे खोजने जाते है, यह जीव और इश्वर का खेल है ..
बोलिए जय श्री कृष्णा
जय माता दी जी
जय श्री राधे

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शनिवार, 17 नवंबर 2012

Jai Mata Di G : Sanjay Mehta Ludhiana












"हे जगज्जननी ! तुम्ही सनातन शक्ति हो माँ तुम्ही विश्व के अनन्त की मूलस्त्रोत हो, व्यक्त अनेक नामरुपो में तुम्हारी ही शक्ति अभिव्यक्त हो रही है माँ, तुम्हारी अविध्यशक्ति से मोहित होकर हम तुम्हे भूल जाते है और संसार के तुच्छ पदार्थो में सुख का अनुभव करने लगते है। परन्तु जब हम तुम्हारी पूजा करते है और तुम्हारी शरण आते है तब तुम हमें अज्ञान से एवं संसार की आसक्तियो से मुक्त कर देती हो और अपने बच्चो को शाश्वत सुख प्रदान करती हो माँ।
जय माता दी जी
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मंगलवार, 13 नवंबर 2012

!!!!!!!~श्री सूक्तम्~!!!!!!! By Sanjay Mehta Ludhiana







आप सभी सदस्यों को जय माता दी जी ग्रूप जय माता दी जी पेज की ओर से दीपावली की बहुत - बहुत बधाई
महालक्ष्मी मां की कृपा आप सभी पर बनी रहे जय माता दी जी


!!!!!!!~श्री सूक्तम्~!!!!!!!

ॐ ॥ हिर॑ण्यवर्णां॒ हरि॑णीं सु॒वर्ण॑रज॒तस्र॑जाम् । च॒न्द्रां हि॒रण्म॑यीं ल॒क्ष्मीं जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥

तां म॒ आव॑ह॒ जात॑वेदो ल॒क्ष्मीमन॑पगा॒मिनी॓म् ।
यस्यां॒ हिर॑ण्यं वि॒न्देयं॒ गामश्वं॒ पुरु॑षान॒हम् ॥

अ॒श्व॒पू॒र्वां र॑थम॒ध्यां ह॒स्तिना॓द-प्र॒बोधि॑नीम् ।
श्रियं॑ दे॒वीमुप॑ह्वये॒ श्रीर्मा दे॒वीर्जु॑षताम् ॥

कां॒ सो॓स्मि॒तां हिर॑ण्यप्रा॒कारा॑मा॒र्द्रां ज्वलं॑तीं तृ॒प्तां त॒र्पयं॑तीम् ।
प॒द्मे॒ स्थि॒तां प॒द्मव॑र्णां॒ तामि॒होप॑ह्वये॒ श्रियम् ॥

च॒न्द्रां प्र॑भा॒सां य॒शसा॒ ज्वलं॑तीं॒ श्रियं॑ लो॒के दे॒वजु॑ष्टामुदा॒राम् ।
तां प॒द्मिनी॑मीं॒ शर॑णम॒हं प्रप॑द्ये‌உल॒क्ष्मीर्मे॑ नश्यतां॒ त्वां वृ॑णे ॥

आ॒दि॒त्यव॑र्णे तप॒सो‌உधि॑जा॒तो वन॒स्पति॒स्तव॑ वृ॒क्षो‌உथ बि॒ल्वः ।
तस्य॒ फला॑नि॒ तप॒सानु॑दन्तु मा॒यान्त॑रा॒याश्च॑ बा॒ह्या अ॑ल॒क्ष्मीः ॥

उपैतु॒ मां दे॒वस॒खः की॒र्तिश्च॒ मणि॑ना स॒ह ।
प्रा॒दु॒र्भू॒तो‌உस्मि॑ राष्ट्रे॒‌உस्मिन् की॒र्तिमृ॑द्धिं द॒दादु॑ मे ॥

क्षुत्पि॑पा॒साम॑लां ज्ये॒ष्ठाम॑ल॒क्षीं ना॑शया॒म्यहम् ।
अभू॑ति॒मस॑मृद्धिं॒ च सर्वां॒ निर्णु॑द मे॒ गृहात् ॥

ग॒न्ध॒द्वा॒रां दु॑राध॒र्षां॒ नि॒त्यपु॑ष्टां करी॒षिणी॓म् ।
ई॒श्वरीग्ं॑ सर्व॑भूता॒नां॒ तामि॒होप॑ह्वये॒ श्रियम् ॥

मन॑सः॒ काम॒माकूतिं वा॒चः स॒त्यम॑शीमहि ।
प॒शू॒नां रू॒पमन्य॑स्य मयि॒ श्रीः श्र॑यतां॒ यशः॑ ॥

क॒र्दमे॑न प्र॑जाभू॒ता॒ म॒यि॒ सम्भ॑व क॒र्दम ।
श्रियं॑ वा॒सय॑ मे कु॒ले मा॒तरं॑ पद्म॒मालि॑नीम् ॥

आपः॑ सृ॒जन्तु॑ स्नि॒ग्दा॒नि॒ चि॒क्ली॒त व॑स मे॒ गृहे ।
नि च॑ दे॒वीं मा॒तरं॒ श्रियं॑ वा॒सय॑ मे कु॒ले ॥

आ॒र्द्रां पु॒ष्करि॑णीं पु॒ष्टिं॒ सु॒व॒र्णाम् हे॑ममा॒लिनीम् ।
सू॒र्यां हि॒रण्म॑यीं ल॒क्ष्मीं जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥

आ॒र्द्रां यः॒ करि॑णीं य॒ष्टिं पि॒ङ्ग॒लाम् प॑द्ममा॒लिनीम् ।
च॒न्द्रां हि॒रण्म॑यीं ल॒क्ष्मीं॒ जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥

तां म॒ आव॑ह॒ जात॑वेदो ल॒क्षीमन॑पगा॒मिनी॓म् ।
यस्यां॒ हिर॑ण्यं॒ प्रभू॑तं॒ गावो॑ दा॒स्यो‌உश्वा॓न्, वि॒न्देयं॒ पुरु॑षान॒हम् ॥

ॐ म॒हा॒दे॒व्यै च॑ वि॒द्महे॑ विष्णुप॒त्नी च॑ धीमहि । तन्नो॑ लक्ष्मीः प्रचो॒दया॓त् ॥

श्री-र्वर्च॑स्व॒-मायु॑ष्य॒-मारो॓ग्य॒मावी॑धा॒त् पव॑मानं मही॒यते॓ । धा॒न्यं ध॒नं प॒शुं ब॒हुपु॑त्रला॒भं श॒तसं॓वत्स॒रं दी॒र्घमायुः॑ ॥

ॐ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॑ ॥


जय भोले नाथ.
जय श्री कृष्णा
जय माँ दुर्गे



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शनिवार, 10 नवंबर 2012

Shyama Shyam By Sanjay Mehta Ludhiana Jai Mata Di G











सवा सौ वर्ष हुए जगन्नाथपुरी के पास एक जमींदार थे लोग उन्हें 'कर्ताजी ' कहकर पुकारा करते थे। उन्होंने एक पंडित जी से वैष्णव धर्म की दीक्षा ली। पंडितजी उपर से तो वैष्णव बने हुए थे। परन्तु वास्तव में श्यामा (काली) के उपासक थे .. वस्तुत: उनकी दृष्टि में श्याम और श्यामा में कोई भेद नहीं था

इधर कुछ लोगों ने कर्ता जी उनकी शिकायत करनी आरम्भ कर दी। परन्तु कर्ताजी अपने गुरूजी से इस विषय में कोई प्रश्न करने का साहस नहीं हुआ उस देश के लोग अपने गुरु का बहुत अधिक गौरव मानते है पंडित जी रात्रि के समय काली माँ की उपासना किया करते थे।
अत: कुछ लोगों ने कर्ताजी को निश्चेय कराने के लिए उन्हें रात्री को - जिस समय पंडित जी पूजा मे बैठते थे। ले जाने का आयोजन किया। एक दिन जिस समय पंडित जी माता जी की पूजा कर रहे थे वे अकस्मात कर्ताजी को लेकर आ धमके कर्ताजी को आया देख पंडित जी कुछ सहमे और उन्होंने जगदम्बा से प्रार्थना की कि "माँ! यदि तेरे चरणों में मेरा अनन्य प्रेम है तो तू श्यामा से श्याम हो जा"
पंडित जी की प्रार्थना से वह मूर्ति कर्ता जे के सहित अन्य सब दर्शको को श्री कृष्ण रूप ही दिखलायी दी। इस प्रकार अपने भक्त की प्रार्थना स्वीकार कर भगवती ने भगवान् के साथ अपना अभेद सिद्ध कर दिया

बोलिया जय माता दी
जय श्यामा काली माँ की
बोलिए श्याम बांसुरी वाले की जय

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शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

Jai maa Naina Devi By Sanjay Mehta Ludhiana










"हे शिवे, अधखिले नीलकमल के समान कन्तिवाले अपने विशाल नेत्रों से तुम्हारे सुरमुनिदुर्लभ चरणों से बहुत दूर पड़े हुए मुझ दीनपर भी अपनी कृपापियूष की वर्षा करो माँ। तुम्हारे ऐसा करने से मै तो कृतार्थ हो जाऊंगा और तुम्हारा कुछ बिगड़ेगा भी नहीं माँ।।। क्युकी तुम्हारी कृपा का भंडार अटूट है, मुझ पर कुछ छींटे डाल देने से उसका दिवाला नहीं निकलेगा . फिर तुम इतनी कंजूसी किसलिए करती हो माँ, क्यों नहीं मुझे एक बार ही सदा के लिए निहाल कर देती। चंद्रमा अपनी शीतल किरणों से सभी जगह समानरूप से अमृतवर्षा करता है। उसकी दृष्टि में एक वीरान जंगल और किसी राजाधिराज की गगान्चुम्बिनी अट्टालिका में कोई अंतर नहीं है। फिर तुम्ही मुझ दीनपर क्यों नहीं ढरती , मुझसे इतना अलगाव क्यों कर रखा है माँ? क्या इस प्रकार वैभव तुम्हे शोभा देता है? नहीं, नहीं, कदापि नहीं माँ, अब कृपया शीघ्र इस दीन को अपनाकर अपने शीतल चरणतल में आश्रय दो माँ, जिससे यह सदा के लिए तुम्हारा क्रीतदास बन जाये , तुम्हे छोड़कर दूसरी और कभी भूलकर भी ना ताके

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मंगलवार, 6 नवंबर 2012

सब की झोली भरने वाली By Sanjay Mehta Ludhiana












ओ मेरी माँ शेरोवाली , तेरी जग में शान निराली
तू ही दुर्गा , तू ही काली, सब की झोली भरने वाली ,
मेरी भी किस्मत जगा दे , माता बिगड़ी को बना दे.
भगतो की तू ही रखवाली , सब की विपदा तूने टाली
झोली भर के जाए सारे.. जो भी दर पे आये सवाली.
मेरा भी संताप मिटा दे.. बेडा मेरा पार लगा दे..
अपने चरणों में जगह दे... मुझ को भी दर्श दिखा दे..
तुमने सब को खूब दिया है, सब को भव से पार किया है..
मेरी भी किस्मत जगा दे . माता बिगड़ी को बना दे


जय माता दी जी
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सोमवार, 5 नवंबर 2012

गलिओं में मेरी आजा, दिलदार यार प्यारे By Sanjay Mehta Ludhiana







गलिओं में मेरी आजा, दिलदार यार प्यारे
मुखड़ा जरा दिखाजा, दिलदार यार प्यारे
कब से भटक रहा हु, एक दर्श तो दिखा जा
प्यासे है नैना मेरे, मेरी प्यास बुझा जा
दीवाना कर के छोड़ा , दिलदार यार प्यारे

रो रो के तुम से कहता , दिल का यह हाल मोहन
यह सांस आखरी है, सच मान प्यारे मोहन
अब तो गले लगा ले , दिलदार यार प्यारे
गलिओं में मेरी आजा दिलदार यार प्यारे

सूरत ने गजब ढाया जुल्फों ने सितम ढाया
इस के बाद तूने नहीं अपना मुझे बनाया
दिल में मेरे समा जा, दिलदार यार प्यारे
गलिओं में मेरी आजा, दिलदार यार प्यारे



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Lakshmi Maa Jai Mata Di G By Sanjay Mehta Ludhiana









"हे शैलेन्द्रतनये , शास्त्र एवं संत यह कहते है कि तुम्हारे पलक मारते ही यह संसार प्रलय के गर्भ में लीन हो जाता है और पलक खोलते ही यह फिर प्रकट हो जाता है, संसार का बनना और बिगड़ना तुम्हारे लिए एक पलक का खेल है माँ। तुम्हारे एक बार पलक उघाड़ने से यह संसार खड़ा हो गया है वह एकबारगी नष्ट ना हो जाए मालूम होता है,इसलिए तुम कभी पलक गिराती ही नहीं, सदा निनिर्मेश दृष्टि से अपने भक्तो की और निहारती रहती हो माँ दुर्गे

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रविवार, 4 नवंबर 2012

Jai Mata Di G : Sanjay Mehta Ludhiana











"हे शर्णार्थियो को शरण देनेवाली, तुम्हे छोड़कर जितने दुसरे देवता है वे अपने हाथो से ही अभय और वरदान का काम लेते है, इसी से तो उन्होंने अपने हाथो में अभय और वरद मुद्रा धारण कर रखी है। तुम्ही एक ऐसी हो जो इन दोनों ही मुद्राओ के धारण करने का स्वांग नहीं रचती, रचने भी क्यों लगी तुम्हे इसकी आवश्यकता ही क्या है? तुम्हारे दोनों चरण ही आश्रितों को सब प्रकार के भयों से मुक्त करने तथा उन्हें इच्छित फल से अधिक देने में समर्थ है, तुम्हारे हाथ सदा शत्रुसंहार के काम में ही लगे रहते है, भक्तो के लिए तो तुम्हारे चरण ही पर्याप्त है माँ

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शनिवार, 3 नवंबर 2012

जय श्री राम By Sanjay Mehta Ludhiana









मीराबाई को लोगों ने बहुत त्रस्त किया सहने की भी सीमा होती है मीराबाई ने बहुत सहन किया।। एक बार बहुत व्याकुल हो गयीं , तब चित्रकूट में तुलसीदास जी महाराज को उन्होंने पत्र लिखा।।। आशय था कि मै तीन वर्ष की थी, तब से गिरधर गोपाल के प्रति अनुरक्त हु। मेरी इच्छा न होने पर मेरा विवाह हुआ।। मै एक राजा की रानी हु। राजमहल का विलासी जीवन मुझे पसंद नहीं है। मै पति को परमात्मा मानती हु। व्यवहार की मर्यादा से भक्ति करती हु फिर भी लोगों से त्रास पाती हु। मै क्या करू?
तुलसीदास जी महाराज ने उत्तर दिया -'बेटी, सुवर्ण की परख कसौटी पर होती है, पीतल की कसौटी पर नहीं होती। मन को समझाना की कन्हैया तुम्हे कसौटी पर परख रहे है। धैर्य धारण कर लो। जिन्हें श्री सीताराम प्रिय नहीं लगते, जिन्हें श्री कृष्ण से प्रेम नही है, जो माँ के भक्त नहीं उसे दूर से ही वंदन करो, वैष्णव बैर नहीं रखते, उपेक्षा करते है ---
जाके प्रिय न राम वैदेही।
तजिए ताहि कोटि वैरी सम, यद्यपि परम स्नेही।।
जिन्हें श्रीसीताराम प्रिय नहीं है, जिन्हें श्रीराम से प्रेम नहीं है, उनका संग छोड़ दो, मीराबाई ने पत्र पढ़ा .. उन्होंने मेवाड़ छोड़ दिया। वे श्रीधाम वृन्दावन में जाकर रहने लग गई। इतिहास कहता है कि मीराबाई के मेवाड़ त्याग के बाद मेवाड़ बहुत दुखी हुआ . यवनों का मेवाड़ पर आक्रमण हुआ, जबतक मीराबाई विराजमान थी, तब तक देश सुखी था ।
बोलिए जय श्री राम . जय सीताराम . जय माँ दुर्गे जय माँ वैष्णवी। जय माँ राजरानी
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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

करवा चौथ By Sanjay Mehta Ludhiana







‎---------:करवा चौथ:---------

बहुत समय पहले वीरवती नाम की एक सुन्दर लड़की थी। वो अपने सात भाईयों की इकलौती बहन थी। उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवा चौथ के मौके पर वो अपने मायके आ गई। उसने भी करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वह बेताबी से चांद के उगने का इन्तजार करने लगी। उसके सातों भाई उसकी ये हालत देखकर परेशान हो गये। वे अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करते थे। उन्होंने वीरवती का व्रत समाप्त करने की योजना बनाई और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी। वीरवती ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर खाना खा लिया। रानी ने जैसे ही खाना खाया वैसे ही समाचार मिला कि उसके पति की तबियत बहुत खराब हो गई है।

रानी तुरंत अपने राजा के पास भागी। रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिले। पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है क्योंकि उसने नकली चांद देखकर अपना व्रत तोड़ दिया था। रानी ने तुरंत क्षमा मांगी। पार्वती देवी ने कहा, ''तुम्हारा पति फिर से जिन्दा हो जायेगा लेकिन इसके लिये तुम्हें करवा चौथ का व्रत कठोरता से संपन्न करना होगा। तभी तुम्हारा पति फिर से जीवित होगा।'' उसके बाद रानी वीरवती ने करवा चौथ का व्रत पूरी विधि से संपन्न किया और अपने पति को दुबारा प्राप्त किया।

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