बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

माँ की इच्छा By Sanjay Mehta Ludhiana










वाराणसी में एक सज्जन थे, उनके गुरु एक सिद्ध पुरुष थे। जिनके आश्चर्यजनक "तमाशे" हमने स्वयं भी देखे-सुने है।। आज का पढ़ा लिखा व्यक्ति ऐसी घटनाओं को "तमाशा" ही कहता है। उनके पास जब कोई अपना बड़ा संकट लेकर आता था वे पसीज जाते, तब इतना ही कहते -"जाओ! माँ की इच्छा होगी वे करेंगी" और वह काम हो जाता

एक बार एक स्त्री अपने मरणासंन बालक को उठाकर उनके सामने रखकर रोने लगी, उनकी कातरता देखकर वह उद्विगं हो उठे और कह बैठे - "जाओ , यह ठीक हो जायेगा" वह स्त्री प्रसन्न -वदन अपने स्वस्थ बालक को लेकर चली गई पर महात्मा जी बहुत व्याकुल होकर तडपने लगे।। छटपटाने लगे।। उन्होंने कहा - "सदैव माँ की इच्छा से काम होता था। आज मै इतना अभिमानी हो गया की मेरी इच्छा से काम होने लगा मुझे धिक्कार है। अब मेरा कल्याण इसी में है कि मै संसार छोड़ दू।।।
बस , दो दिन के भीतर ही उनका शरीर शांत हो गया।।
जय माता दी जी
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Sanjay Mehta







गजानंद सरकार By Sanjay Mehta Ludhiana


सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

श्री दुर्गा कवच by Sanjay Mehta Ludhiana







श्री दुर्गा कवच


ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी !
दया करके ब्रह्माजी बोले तभी !!
के जो गुप्त मंत्र है संसार में !
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में !!
हर इक का कर सकता जो उपकार है !
जिसे जपने से बेडा ही पार है !!
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का !
जो हर काम पूरे करे सवाल का !!
सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ !
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ !!
कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना !
जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता !!
नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये !
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
पहली शैलपुत्री कहलावे !
दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे !!
तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम !
चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम !!
पांचवी देवी अस्कंद माता !
छटी कात्यायनी विख्याता !!
सातवी कालरात्रि महामाया !
आठवी महागौरी जग जाया !!
नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने !
नव दुर्गा के नाम बखाने !!
महासंकट में बन में रण में !
रुप होई उपजे निज तन में !!
महाविपत्ति में व्योवहार में !
मान चाहे जो राज दरबार में !!
शक्ति कवच को सुने सुनाये !
मन कामना सिद्धी नर पाए !!
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार !
बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
हंस सवारी वारही की !
मोर चढी दुर्गा कुमारी !!
लक्ष्मी देवी कमल असीना !
ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा !!
ईश्वरी सदा बैल सवारी !
भक्तन की करती रखवारी !!
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला !
हल मूसल कर कमल के फ़ूला !!
दैत्य नाश करने के कारन !
रुप अनेक किन्हें धारण !!
बार बार मैं सीस नवाऊं !
जगदम्बे के गुण को गाऊँ !!
कष्ट निवारण बलशाली माँ !
दुष्ट संहारण महाकाली माँ !!
कोटी कोटी माता प्रणाम !
पूरण की जो मेरे काम !!
दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ !
चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
अग्नि से अग्नि देवता !
पूरब दिशा में येंदरी !!
दक्षिण में वाराही मेरी !
नैविधी में खडग धारिणी !!
वायु से माँ मृग वाहिनी !
पश्चिम में देवी वारुणी !!
उत्तर में माँ कौमारी जी!
ईशान में शूल धारिणी !!
ब्रहामानी माता अर्श पर !
माँ वैष्णवी इस फर्श पर !!
चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो !
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
सन्मुख मेरे देवी जया !
पाछे हो माता विजैया !!
अजीता खड़ी बाएं मेरे !
अपराजिता दायें मेरे !!
नवज्योतिनी माँ शिवांगी !
माँ उमा देवी सिर की ही !!
मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी कि यशर्वथिनी !
भ्रुकुटी के मध्य त्रेनेत्रायम् घंटा दोनो नासिका !!
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी !
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो !!
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
ऊपर वाणी के होठों की !
माँ चन्द्रकी अमृत करी !!
जीभा की माता सरस्वती !
दांतों की कुमारी सती !!
इस कठ की माँ चंदिका !
और चित्रघंटा घंटी की !!
कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की !
माँ मंगला इस बनी की !!
ग्रीवा की भद्रकाली माँ !
रक्षा करे बलशाली माँ !!
दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारनी !
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जग तारनी !!
शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी !
जंघा स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जग वासिनी !!
हृदय उदार और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की !
गुम्हेश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की !!
घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी !
टकखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासनी !!
रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर !
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर !!
बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान !
सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान !!
धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन !
तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण !!
आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार !
ब्रह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार !!
विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल !
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल !!
भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश !
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश !!
यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये !
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए !!
है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान !
लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान !!
मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए !
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर मे आये !!
ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य !
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया !!
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा !
जगत की भलाई को मैंने बताया !!
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित !
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया !!
चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो !
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया !!
जो संसार में अपने मंगल को चाहे !
तो हरदम कवच यही गाता चला जा !!
बियाबान जंगल दिशाओं दशों में !
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा !!
तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में !
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा !!
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे !
चमन पाव आगे बढ़ता चला जा !!
तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा !
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए !!
यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा !
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें !!
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक !
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये !!
इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर !
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए !!
इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे !
कृपा से आधी भवानी की, बल और बुद्धि बढे !!
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम !
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम !!
कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ !
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण !!
!! जय माता दी !!
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Sanjay Mehta








शरद पूर्णिमा वर्त कथा By Sanjay Mehta Ludhiana










दौरा करती हैं लक्ष्मी शरद पूर्णिमा के दिन



दीपावली के ठीक 15 दिन पहले शरद पूर्णिमा आती है। इस समय तक दशहरा समाप्त हो जाता है। मस्ती करने वालों का पूरा ध्यान दीवाली की मिठाइयों और पटाखों पर चला जाता है। मूलत: यह त्योहार फसलों से संबंधित है।
कहा जाता है कि इस रात धन और उन्नति की देवी लक्ष्मी सारे घरों का दौरा करती है और साथ ही सारे बच्चों, बूढ़ों और जवान को अच्छी किस्मत के लिए गुडलक कहती है।
इस विशेष रात को कोजागिरी भी कहा जाता है। इस रात को बर्फ और केसरियायुक्त दूध पिया जाता है। इस पूरे चंद्रमा वाली रात को नवन्ना पूर्णिमा कहा जाता है। ऐसा आभास होता है कि नए भोजन के स्वागत के लिए चांदनी रात अपना दामन पसारे हुए है।
इस अवसर पर भगवान को नया उपजाया हुआ चावल भेंट करते हैं और पूर्ण रूप से खिले चांद के सामने लैम्प जलाते हैं।
शरद पूर्णिमा किसानों की जिंदगियों में दो तरह का महत्वपूर्ण संदेश लाती है। पहला जो कड़ी मेहनत करेगा भगवान उसे अवश्य फल प्रदान करेगा और दूसरा यह कि प्रभु मनुष्य के द्वारा की जा रही सारी गतिविधियों पर नजर रखता है।
बहुत सारे दुर्गा मंदिरों में शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर गीत संगीत से मां दुर्गा को जगाया जाता है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा नौ दिनों तक महिषासुर से लड़कर थकने के बाद सो गई थीं।


शरद पूर्णिमा वर्त कथा
आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा की कथा कुछ इस प्रकार से है- एक साहूकार के दो पुत्रियां थी. दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत ही किया करती थी. परिणामस्वरूप साहूकार के छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से अपने संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है. फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं.
साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न किया. फलस्वरूप उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया. तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ा पर लिटाकर ऊपर से पकड़ा ढ़क दिया. फिर अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आई और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. बड़ी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. इस घटना के उपरान्त ही नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढ़िंढ़ोरा पिटवा दिया.
शरद पूर्णिमा व्रत विधि
इस दिन प्रात:काल में व्रत कर अपने इष्ट देव का पूजन करना चाहिए. इस पूर्णिमा को रात में ऎरावत हाथी पर चढे हुए इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा कर दीपावली की तरह रोशनी कि जाती है. इस दिन कम से कम 100 दीपक और अधिक से अधिक एक लाख तक हों.
इस तरह दीपक जलाकर अगले दिन इन्द्र देव का पूजन किया जाता है. ब्राह्माणों को शक्कर में घी मिला हुआ, ओर खीर का भोजन करायें. धोती, गमच्छा, आदि वस्त्र और दीपक (अगर सम्भव हों, तो सोने का) तथा दक्षिणा दान करें. लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. यह माना जाता है, कि इस रात को इन्द्र और लक्ष्मी जी यह देखते है, कि कौन जाग रहा है, इसलिये इस दिन जागरण करने वाले की धन -संपति में वृ्द्धि होती है.
इस व्रत को मुख्य रुप से स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. उपवास करने वाली स्त्रियां इस दिन लकडी की चौकी पर सातिया बनाकर पानी का लोटा भरकर रखती है. एक गिलास में गेहूं भरकर उसके ऊपर रुपया रखा जाता है. और गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कहानी सुनी जाती है.
गिलास और रुपया कथा कहने वाली स्त्रियों को पैर छुकर दिये जाते है. कहानी सुने हुए पानी का रात को चन्द्रमा को अर्ध्य देना चाहिए. और इसके बाद ही भोजन करना चाहिए. मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है. विशेष रुप से इस दिन तरबूज के दो टुकडे करके रखे जाते है. साथ ही कोई भी एक ऋतु का फल रखा और खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखा जाता है. ऎसा कहा जाता है, कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृ्त बरसता है.
शरद पूर्णिमा की खीर~~~


खीर तो होती है
चावल दूध की
मेवे नीर की
सही कह रहा हूं
दूध के सा*थ
सिर्फ घुलता है नीर।

पनीर डाल नहीं सकते
वैसे इस सृष्टि पर
कहीं कहीं नीर
पनीर से कम नहीं।

और पनीर न हो खराब
नीर में नीर नीर होता है
या किया जाता है
नीर क्षीर विवेक।

खीर भी न तो
होती है चांदनी की
न शरद की
न पूर्णिमा की।

पर मैंने जाना है
पूर्णिमा को
पूर्णिमा के दिन
बनाते हुए खीर
फिर ले जाते हुए
छत पर बचाते हुए
पर दिखाते हुए
पूर्णिमा को।

जितनी उपयोगी
शरद पूर्णिमा की
चांदनी में नहाई खीर
उतनी मेवे ठूंस ठूंस
कर बनाकर भी
नहीं बनती उपयोगी।

आखिर शरद भी है
पूर्णिमा भी है
और खीर भी है।

मन अधीर भी है
सुबह हो तो मिले
किसी पहर चल दूंगा
पर नींद तो खुले
सपनों से फुरसत तो मिले
पर सपनों में मिल रही
हो खीर, तो स्*वाद
असल ही आता है।
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Sanjay Mehta










रविवार, 28 अक्तूबर 2012

अब चाहे अपना ले या ठुकरा माँ मै तो आया शरण तुम्हारी By Sanjay Mehta Ludhiana








अब चाहे अपना ले या ठुकरा माँ मै तो आया शरण तुम्हारी
अब चाहे तारो या मारो , यह तेरी मर्ज़ी जगतारणहारी
मै तो आया शरण तुम्हारी, सुन ले माँ फरियाद हमारी
दर से जाऊ ना कुछ भी हो, माँ हे गिरीराजकुमारी
अब चाहे अपना ले या ठुकरा माँ मै तो आया शरण तुम्हारी

मन के मंदिर में मूरत सजाई, भोली सूरत तेरी मन को भाई
मेरी नस नस में तू ही समाई, जहा देखू पड़े तू दिखाई
मन के मंदिर में मूरत सजाई, भोली सूरत तेरी मन को भाई
तेरी लागी लगन, नाचू हो के मगन, कर भी दो एक नजर
मैया इस दीन पर, बीते सारी उम्र, तेरे ही द्वार पे
थोडा सा प्यार दे, मैया हे शारधे , जय हो
बस इक सांचा द्वार तेरा माँ झूठी है दुनिया सारी


अब चाहे अपना ले या ठुकरा माँ मै तो आया शरण तुम्हारी
अब चाहे तारो या मारो , यह तेरी मर्ज़ी जगतारणहारी
मै तो आया शरण तुम्हारी, सुन ले माँ फरियाद हमारी
दर से जाऊ ना कुछ भी हो, माँ हे गिरीराजकुमारी
अब चाहे अपना ले या ठुकरा माँ मै तो आया शरण तुम्हारी


तेरे हाथो में डोरी थमा दी, तेरे चरणों में अर्जी लगा दी
तुझ से क्या है छिपा जो छिपाऊ, बात मन की तुझे बता दी -2
बिनती सुनले मेरी, कर ना मैया देरी, कर माँ कुछ तो रहम
तुझ को मेरी कसम, जैसा भी हु मै माँ , तेरा ही हु मै माँ ,
हाथ जोड़े खड़ा तेरे दर पे पड़ा
तू सारे जग की दाती, माँ मै तेरे दर का दीन भिखारी -2
अब चाहे तारो या मारो , यह तेरी मर्ज़ी जगतारणहारी


अब चाहे अपना ले या ठुकरा माँ मै तो आया शरण तुम्हारी
अब चाहे तारो या मारो , यह तेरी मर्ज़ी जगतारणहारी
मै तो आया शरण तुम्हारी, सुन ले माँ फरियाद हमारी
दर से जाऊ ना कुछ भी हो, माँ हे गिरीराजकुमारी
अब चाहे अपना ले या ठुकरा माँ मै तो आया शरण तुम्हारी



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Sanjay Mehta







शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

जय भवानी जय अम्बे By Sanjay Mehta Ludhiana










मेनू चाहिदा सहारा तेरे नाम दा , होर कोई ना सहारा बिन तेरे, जय भवानी जय अम्बे जय भवानी जय अम्बे

* तेरे चोले नु लावा मै टिक्किया -2 , तैनू पूज्दिया कन्या निक्किया -2 .जय भवानी जय अम्बे जय भवानी जय अम्बे

* तेरे चोले नु लावा माँ केसर -2 तैनू पूजदे ने पंज परमेश्वर -2 जय भवानी जय अम्बे जय भवानी जय अम्बे

* तेरे चोले नु लावा माँ मै हीरे-2, तैनू पूजदे छोटे वड्डे वीरे -2 जय भवानी जय अम्बे जय भवानी जय अम्बे

* तेरे चोले नु लावा मै किनारी -2 , तेनु पूजदी दुनिया माँ सारी -2 जय भवानी जय अम्बे जय भवानी जय अम्बे

* तेरे चोले नु लावा मै पतासे-2, तैनू पूजदे ने जम्मू वाले राजे -2 जय भवानी जय अम्बे जय भवानी जय अम्बे

जैकारा माँ शेरावाली दा

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Sanjay Mehta








मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

नव रात्रि व्रत कथा By Sanjay Mehta Ludhiana








नव रात्रि व्रत कथा





प्रातः काल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गा जी का ध्यान करके यह कथा पढ़नी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष फलदायक है। श्री जगदम्बा की कृपा से सब विघ्न दूर होते हैं। कथा के अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा माता तेरी सदा ही जय हो’ का उच्चारण करें।



कथा प्रारम्भ



बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण। आप अत्यन्त बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में श्रेष्ठ हो। हे प्रभु! कृपा कर मेरा वचन सुनो। नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? हे भगवान! इस व्रत का फल क्या है? किस प्रकार करना उचित है? और पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहो?



बृहस्पति जी का ऐसा प्रश्न सुनकर ब्रह्मा जी कहने लगे कि हे बृहस्पते! प्राणियों का हित करने की इच्छा से तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं, यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख मिल सकता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है और कारागार हुआ मनुष्य बन्धन से छूट जाता है। मनुष्य की तमाम आपत्तियां दूर हो जाती हैं और उसके घर में सम्पूर्ण सम्पत्तियां आकर उपस्थित हो जाती हैं। बन्ध्या को इस व्रत के करने से पुत्र उत्पन्न होता है। समस्त पापों को दूर करने वाले इस व्रत के करने से ऐसा कौन सा मनोबल है जो सिद्ध नहीं हो सकता। जो मनुष्य अलभ्य मनुष्य देह को पाकर भी नवरात्र का व्रत नहीं करता वह माता-पिता से हीन हो जाता है अर्थात् उसके माता-पिता मर जाते हैं और अनेक दुखों को भोगता है। उसके शरीर में कुष्ठ हो जाता है और अंग से हीन हो जाता है | उसके सन्तानोत्पत्ति नहीं होती है। इस प्रकार वह मूर्ख अनेक दुख भोगता है। इस व्रत को न करने वला निर्दयी मनुष्य धन और धान्य से रहित हो, भूख और प्यास के मारे पृथ्वी पर घूमता है और गूंगा हो जाता है। जो स्त्री इस व्रत को नहीं करतीं वह पति हीन होकर नाना प्रकार के दुखों को भोगती हैं। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और उस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा करे।



हे बृहस्पते! जिसने पहले इस व्रत को किया है उसका पवित्र इतिहास मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण! मनुष्यों का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।



ब्रह्मा जी बोले- पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त, मानो ब्रह्मा की सबसे पहली रचना हो, ऐसी सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर पुत्री उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्लपक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम करता था। उस समय वह भी नियम से वहां उपस्थित होती थी। एक दिन वह सुमति अपनी सखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ठी और दरिद्री मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।



इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी कि हे पिताजी! मैं आपकी कन्या हूं। मैं आपके सब तरह से आधीन हूं। जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ, जैसी तुम्हारी इच्छा हो, मेरा विवाह कर सकते हो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है मेरा तो इस पर पूर्ण विश्वास है।



मनुष्य जाने कितने मनोरथों का चिन्तन करता है, पर होता वही है जो भाग्य में विधाता ने लिखा है |जो जैसा करता है, उसको फल भी उस कर्म के अनुसार मिलता है, क्यों कि कर्म करना मनुष्य के आधीन है। पर फल दैव के आधीन है। जैसे अग्नि में पड़े तृणाति अग्नि को अधिक प्रदीप्त कर देते हैं उसी तरह अपनी कन्या के ऐसे निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ- जाओ जल्दी जाओ, अपने कर्म का फल भोगो। देखें केवल भाग्य भरोसे पर रहकर तुम क्या करती हो?



इस प्रकार से कहे हुए पिता के कटु वचनों को सुनकर सुमति मन में विचार करने लगी कि - अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह सुमति अपने पति के साथ वन चली गई और भयावने कुशयुक्त उस स्थान पर उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की। उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहने लगीं कि हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुम पर प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो वरदान मांग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली हूं। इस प्रकार भगवती दुर्गा का वचन सुनकर ब्राह्मणी कहने लगी कि आप कौन हैं जो मुझ पर प्रसन्न हुई हैं, वह सब मेरे लिए कहो और अपनी कृपा दृष्टि से मुझ दीन दासी को कृतार्थ करो। ऐसा ब्राह्मणी का वचन सुनकर देवी कहने लगी कि मैं आदिशक्ति हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या और सरस्वती हूं मैं प्रसन्न होने पर प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।



तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतान्त सुनाती हूं सुनो! तुम पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तेरे को और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्रों के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल ही पिया। इसलिए नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर तुम्हें मनवांछित वस्तु दे रही हूं। तुम्हारी जो इच्छा हो वह वरदान मांग लो।



इस प्रकार दुर्गा के कहे हुए वचन सुनकर ब्राह्मणी बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे! आपको प्रणाम करती हूं। कृपा करके मेरे पति के कुष्ठ को दूर करो। देवी कहने लगी कि उन दिनों में जो तुमने व्रत किया था उस व्रत के एक दिन का पुण्य अपने पति का कुष्ठ दूर करने के लिए अर्पण करो | मेरे प्रभाव से तेरा पति कुष्ठ से रहित और सोने के समान शरीर वाला हो जायेगा।



ब्रह्मा जी बोले इस प्रकार देवी का वचन सुनकर वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से ठीक है, ऐसे बोली। तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ठहीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया जिसकी कान्ति के सामने चन्द्रमा की कान्ति भी क्षीण हो जाती है | वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देखकर देवी को अति पराक्रम वाली समझ कर स्तुति करने लगी कि हे दुर्गे! आप दुर्गत को दूर करने वाली, तीनों जगत की सन्ताप हरने वाली, समस्त दुखों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न होने पर मनवांछित वस्तु को देने वाली और दुष्ट मनुष्य का नाश करने वाली हो। तुम ही सारे जगत की माता और पिता हो। हे अम्बे! मुझ अपराध रहित अबला की मेरे पिता ने कुष्ठी के साथ विवाह कर मुझे घर से निकाल दिया। घर से निकाली हुई मैं पृथ्वी पर घूमने लगी। आपने ही मेरा इस आपत्ति रूपी समुद्र से उद्धार किया है। हे देवी! आपको प्रणाम करती हूं। मुझ दीन की रक्षा कीजिए।



ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पते! इसी प्रकार उस सुमति ने मन से देवी की बहुत स्तुति की, उससे हुई स्तुति सुनकर देवी को बहुत सन्तोष हुआ और ब्राह्मणी से कहने लगी कि हे ब्राह्मणी! तुम्हे उदालय नाम का अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीघ्र होगा। ऐसे कहकर वह देवी उस ब्राह्मणी से फिर कहने लगी कि हे ब्राह्मणी और जो कुछ तेरी इच्छा हो वही मनवांछित वस्तु मांग सकती है ऐसा भवगती दुर्गा का वचन सुनकर सुमति बोली कि हे भगवती दुर्गे अगर आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्रि व्रत विधि बतलाइये। हे दयावन्ती! जिस विधि से नवरात्र व्रत करने से आप प्रसन्न होती हैं उस विधि और उसके फल को मेरे लिए विस्तार से वर्णन कीजिए।



इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुनकर देवी दुर्गा कहने लगी ,हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हारे लिए सम्पूर्ण पापों को दूर करने वाली नवरात्र व्रत विधि को बतलाती हूं जिसको सुनने से तमाम पापों से छूटकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।चैत्र और आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधि पूर्वक व्रत करे | यदि दिन भर का व्रत न कर सके तो एक समय भोजन करे। पढ़े लिखे ब्राह्मणों से पूछकर कलश स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचे। महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती इनकी मूर्तियां बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करे और पुष्पों से विधि पूर्वक अर्ध्य दें। बिजौरा के फूल से अर्ध्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से कीर्ति, दाख (किसमिस) से कार्य की सिद्धि होती है। आंवले से सुख और केले से आभूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अर्ध्य देकर यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, विल्व, नारियल, दाख और कदम्ब, इनसे हवन करें | गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। खीर व चम्पा के पुष्पों से धन और पत्तों से तेज और सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति और केले से पुत्र होता है। कमल से राज सम्मान और दाखों से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। खांड , घी, नारियल, जौ और तिल से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता से प्रणाम करे और व्रत की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इसमें तनिक भी संशय नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है, उसका करोड़ों गुना मिलता है। इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ मंदिर अथवा घर में ही विधि के अनुसार करें।



ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अंतर्ध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूर्वक करता है वह इस लोक में सुख पाकर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता हे। हे बृहस्पते! यह दुर्लभ व्रत का माहात्म्य मैंने तुम्हारे लिए बतलाया है।



बृहस्पति जी कहने लगे- हे ब्रह्मा जी ! आपने मुझ पर अति कृपा की, जो अमृत के समान इस नवरात्र व्रत का माहात्म्य सुनाया। हे प्रभु! आपके बिना और कौन इस माहात्म्य को सुना सकता है? ऐसे बृहस्पति जी के वचन सुनकर ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! तुमने सब प्राणियों का हित करने वाले इस अलौकिक व्रत को पूछा है इसलिए तुम धन्य हो। यह भगवती शक्ति सम्पूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है।
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गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

तृतीय दुर्गा : श्री चंद्रघंटा.. चतुर्थ दुर्गा : श्री कूष्मांडा By Sanjay Mehta Ludhiana












तृतीय दुर्गा : श्री चंद्रघंटा

श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

चतुर्थ दुर्गा : श्री कूष्मांडा

श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।
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बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

रूप सिलौना मैया ब्रेह्म्चारिणी नवरात्रों में बहार बन आये By Sanjay mehta Ludhiana









रूप सिलौना मैया ब्रेह्म्चारिणी नवरात्रों में बहार बन आये।
करे सिजदे मंदिरों में जाकर तन-मन फूलो सा खिल जाए।।
सजाए प्रथम आरती की थाली ज्योत जलाए अभिलाषाओ की।
कहे व्यथा जो मन में तुम्हारे रहे ना बात निराशाओं की।।
करे चरणों में नमन बार बार मंजिल पथ का हो प्रदर्शन।
मिल जाये भंडार ज्ञान का कदम कदम चर्चो की गुंजन।।
श्रधा-पुष्प करे जो अर्पण-विपदा पल में टल जाये ।

रूप सिलौना मैया ब्रेह्म्चारिणी नवरात्रों में बहार बन आये।
करे सिजदे मंदिरों में जाकर तन-मन फूलो सा खिल जाए ।।

हजारो वर्ष किया निराहार तप-तीनो लोकों में हाहाकार मचा।
क्षीण काया देख हुई दुखी माता-कहे कैसा ये हाल रचा ।।
देवता, ऋषि, मुनि, सिद्धगण -हए तपस्या पर बहुत प्रसन्न ।
हुई सराहना, ब्रेह्म्चारिणी की महक उठी देह, ज्यू चन्दन।।
कमंडल , जपमाला, रूप सादगी-दर्शन करते ही मिल जाये ।
रूप सिलौना मैया ब्रेह्म्चारिणी नवरात्रों में बहार बन आये।
करे सिजदे मंदिरों में जाकर तन-मन फूलो सा खिल जाए ।।

"सभी भक्त" तेरे दर पे शीश झुकाए खड़े ।
रहमत मिल जाये जिसे तेरी-मिल जाए सुख बड़े बड़े ।।
तेरी पूजा, आराधना अर्चना से भक्तो को शक्ति मिले अपार।
हे ब्रेह्म्चारिणी!!! भटके जग को लगाओ भवसागर पार ।।
दो चरणों की भक्ति इनती देख देख लब सिल जाए ।
रूप सिलौना मैया ब्रेह्म्चारिणी नवरात्रों में बहार बन आये।
करे सिजदे मंदिरों में जाकर तन-मन फूलो सा खिल जाए ।।

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मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

मैया शैलपुत्री!!!!!! धरती पे आओ .... By Sanjay mehta Ludhiana









मैया शैलपुत्री!!!!!! धरती पे आओ ....
नव दुर्गाओ में प्रथम रूप मैया "शैलपुत्री" कहलाता है
नवरात्रों के पहले दिन इसी स्वरूप को पूजा जाता है।
नव दुर्गाओं में प्रथम रूप पूजा जाता है।।।
लाल झंडे लहराए मंदिरों पर - गूंजे घंटो की खनकार!!!
सच्ची श्रधा जिसके मन में --- देती माँ दर्शन साकार।।
मनोकामनाए हो पूर्ण साधक की खुशिया आँगन में आये
मिट जाये मन का अँधियारा- सुख-समृद्धि , धन-वैभव पाए!!!...
शैलपुत्री का सच्चा उपासक - सदा भाग्य पर इतराता है।।।
नव दुर्गाओं में प्रथम रूप पूजा जाता है।।।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री-सवारी बैल की जिसे भाए !
दाहिने हाथ में त्रिशूल जिसके-कमल-पुष्प दूजे में लहराए!!
अर्धागिनी कहलाये भोले की -स्वर्ण मुकुट मस्तक विराजे!
चारो दिशाओ में दिव्या प्रकाश-स्वर्ग रूप से पर्वत साजे!!
"शैलपुत्री" का रूप मनमोहना - माँ के भक्तो को भाता है।।।
नव दुर्गाओं में प्रथम रूप पूजा जाता है।।।
"सभी भक्त" तेरी - सुबह शाम अर्चना करते है।।
गुणगान मैया लबो पे तेरा- तुझपे ही दम भरते है।।
मैया शैलपुत्री!!! धरती पे आओ - बिखरे जग का उद्धार करो।।
विपदाओं से घिरा हर इंसा- दानव - दैत्यों का संहार करो।।।
सुख-सम्पदा मिल जाए उसे - भक्ति का राग जगाता है।।
नव दुर्गाओं में प्रथम रूप पूजा जाता है।।।

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शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

द्वारकानाथ By Sanjay Mehta Ludhiana








कुछ लोग यह समझ कर भक्ति कर रहे है कि भक्ति करने से भगवान धन देंगे।।। पर भक्ति का फल धन नहीं है, भगवान की भक्ति भगवान के लिए ही कीजिये। भगवान साधन नहीं वे तो साध्य है, भगवन से कुछ और मांगिये धन मांगने पर भगवान साधन होंगे और लौकिक सुख धन साध्य।।। कुछ लोग मंदिर में जाकर भगवान से मांगते है "हे प्रभु! सभी मनोकामनाए पूर्ण करना" प्रभु कहते है "आज तक मैंने तुम्हारी सभी मनोकामनाए पूर्ण की पर उनका कभी अंत ही नहीं आ रहा।। एक कामना पूर्ण होने पर दूसरी खड़ी हो जाती है।।। कई लोग मंदिर में मांगने ही जाते है, इससे भगवन को संकोच होता है, क्षोभ होता है, इससे ठाकुरजी धरती पर नजर रख कर विराजते है, किसी को दृष्टि मिलकर देखते ही नहीं।। पंढरपुर में विट्ठलनाथ जी की नजर नाक की नोंक पर स्थित है, द्वारकानाथ की नजर धरती पर है।। प्रभु का कोई लाडला आ जाये तो प्रभु से अनेकानेक विनती करे तो प्रभु नजर उठाते है। मंदिर में जो समर्पित करने आते है और मांगने नहीं आते, उन्ही की और प्रभु देखते है।
अब बोलिए जय माता दी .. फिर से बोलिए जय माता दी जी
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गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

प्यारे प्यारे चंदा मामा अजब है शान तुम्हारी By Sanjay Mehta Ludhiana










प्यारे प्यारे चंदा मामा अजब है शान तुम्हारी।।।।
कभी तो मेरे अंगना में माँ को ले आ इक वारी ...
जगदम्बे जगजननी मैया जग की पालनहारी
कभी तो मेरे अंगना में माँ को ले आ इक वारी ...
मेरी मैया को ले के आ।। शेरावाली को ले के आ
शेरावाली को ले के आ।।। मेहरावाली को ले के आ
प्यारे प्यारे चंदा मामा अजब है शान तुम्हारी।।।।

कोई तो कहता है मुझसे माँ चाँद के रथ पे आती है
कोई कहे माँ शेर सवारी कर के दर्श दिखाती है
बड़ी ही भोली बड़ी ही पावन लगती मुझ को प्यारी
कभी तो मेरे अंगना में माँ को ले आ इक वारी .
मेरी मैया को ले के आ।। शेरावाली को ले के आ
शेरावाली को ले के आ।।। मेहरावाली को ले के आ
प्यारे प्यारे चंदा मामा अजब है शान तुम्हारी।।।।

रूठ जाउंगी चंदा मामा जो माँ को ना लाये
मै ना तुमसे बात करूँ जो मेरे घर ना आये
मैंने सुना वरदायिनी मैया बड़ी है उपकारी
कभी तो मेरे अंगना में माँ को ले आ इक वारी .
मेरी मैया को ले के आ।। शेरावाली को ले के आ
शेरावाली को ले के आ।।। मेहरावाली को ले के आ
प्यारे प्यारे चंदा मामा अजब है शान तुम्हारी।।।।


श्याम का दीपक जलते है तुम उठ जाते आकाश में
लोरी सुनते सुनते मै सो जाती ही विश्वास में
शायद चंदा मामा माँ को कहेगा बाते सारी
कभी तो मेरे अंगना में माँ को ले आ इक वारी .
मेरी मैया को ले के आ।। शेरावाली को ले के आ
शेरावाली को ले के आ।।। मेहरावाली को ले के आ
प्यारे प्यारे चंदा मामा अजब है शान तुम्हारी।।।।

प्यारे प्यारे चंदा मामा अजब है शान तुम्हारी।।।।
कभी तो मेरे अंगना में माँ को ले आ इक वारी ...
जगदम्बे जगजननी मैया जग की पालनहारी
कभी तो मेरे अंगना में माँ को ले आ इक वारी ...
मेरी मैया को ले के आ।। शेरावाली को ले के आ
शेरावाली को ले के आ।।। मेहरावाली को ले के आ
प्यारे प्यारे चंदा मामा अजब है शान तुम्हारी।।।।
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गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

Kanhaiya Tujhe Aana Padega By Sanjay mehta Ludhiana










Kanhaiya Tujhe Aana Padega

कन्हैया तुझे आना पड़ेगा


lordkrishan

कन्हैया कन्हैया तुझे आना पड़ेगा आना पड़ेगा.

वचन गीता वाला निभाना पड़ेगा..

गोकुल में आया मथुरा में आ

छवि प्यारी प्यारी कहीं तो दिखा.

अरे सावरे देख आ के ज़रा

सूनी सूनी पड़ी है तेरी द्वारिका..

कन्हैया कन्हैया तुझे आना पड़ेगा आना पड़ेगा.

वचन गीता वाला निभाना पड़ेगा..


जमुना के पानी में हलचल नहीं.

मधुबन में पहला सा जलथल नहीं.

वही कुंज गलियाँ वही गोपिआँ.

छलकती मगर कोई गागर नहीं

कन्हैया कन्हैया तुझे आना पड़ेगा आना पड़ेगा.

वचन गीता वाला निभाना पड़ेगा..


कोई तेरी गईया का वाली नही

अमानत ये तेरी सम्हाली नही

कई कंस भारत में पैदा हुये

कपट से कोई घर भी खाली नही

कन्हैया कन्हैया तुझे आना पड़ेगा आना पड़ेगा.

वचन गीता वाला निभाना पड़ेगा..






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बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

दुर्गा माँ की स्तुति By Sanjay Mehta Ludhiana








दुर्गा माँ की स्तुति

जगत को धारण करनेवाली देवी को नमस्कार है, भगवती दुर्गा सम्पूर्ण कामनाए पूर्ण कर देती है. उन्हें बार-बार नमस्कार है. कल्याणमयी माता! शिवा, शांति और विद्या - ये सभी तुम्हारे नाम है. जीव को मुक्ति देना तुम्हारा स्वभाव है. तुम जगत में व्याप्त हो और सारे संसार का सर्जन तुम्हारे हाथ का खेल है. तुम्हे बार-बार नमस्कार है. भगवती जगन्माता! मै संजय मेहता अपनी बुद्धि से विचार करनेपर भी तुम्हारी गति को नहीं जान पाता. निश्चय ही तुम निर्गुण हो और मै एक सगुण जीव हु. तुम परमा शक्ति हो. भक्तों का संकट टालना तुम्हारा स्वभाव ही है. मै क्या स्तुति करू माँ? तुम भगवती सरस्वती हो.. तुम बुद्धिरूप से सबके भीतर विराजमान हो. सम्पूर्ण प्राणियों में विद्यमान मति,गति, बुद्धि और विद्या --- सब तुम्हारे ही रूप है, मै तुम्हारा क्या स्तुति करू माँ, जब कि सबके मनोपर तुम्हारा ही शासन विद्यमान है.. तुम सर्वव्यापक हो. अत: तुम्हारी क्या स्तुति की जाये? माता! ब्रह्मा, विष्णु और महेश - ये प्रधान देवता माने जाते है, ये सभी तुम्हारी निरंतर स्तुति गाते रहे, फिर भी तुम्हारा पार नहीं पा सके. फिर मंदबुद्धि, अप्रसिद्ध, अवगुणों से ओत-प्रोत मै एक तुच्छ प्राणी कैसे तुम्हारे चरित्र का वर्णन कर सकता हु? आहा!! संत पुरुषो की संगति क्या नहीं कर डालती; क्युकि इससे चित्त के विकार दूर हो ही जाते है. ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र्साहित सभी देवता और मुनि रहस्यों के पूर्ण जानकार है. माता! वे भी तुम्हारे जिस दुर्लभ दर्शन के लिए लालायित रहते है, वही दर्शन शम, दम और समाधि से शुन्य मुझ साधारण व्याक्ति को सुलभ हो गया.. भवानी! कहाँ तो मै प्रचण्ड मुर्ख और कहाँ तुरंत संसार से मुक्त कर देने वाली अद्वितीय ओषध तुम्हारी झांकी .. देवी.. तुमसे कोई बात छिपी नहीं है. सबके सभी भाव तुम्हे ज्ञात है.. देवगन सदा तुम्हारी आराधना करते है.. भक्तो पर दया करना तुम्हारा स्वभाव है, इसी से मुझे भी यह अवसर सुलभ हो गया.. देवी! मै तुम्हारे चरित्र का क्या बखान करू , जब कि हर समय तुम ने मेरी रक्षा की.. भक्तो पर दया करनेवाला तुम्हारा यह चरित्र परम पावन है, देवी! तुम अपने भक्तो को जन्म, मरण आदि के भय से मुक्त कर देने में समर्थ हो. फिर उसके लौकिक मनोरथ पूर्ण कर देने में कौन - सी बड़ी बात है.. भक्तजन तुम्हे असीम पाप और पुण्य से रहित, सगुण एवं निर्गुण बताते है, समस्त भूमंडलपर शासन करनेवाली देवी! निश्चेय ही तुम्हारे दर्शन पाकर मै बडभागी, कृतकृत्य और सफल जीवन बन गया.. माता! ना तो मै तुम्हारा को बीजमंत्र जानता हु और ना ही कोई भजन ही आता है. बस मुझे तो माँ माँ ही करना आता है...
अब बोलिए जय माता दी. फिर से बोलिए जय माता दी. जय माँ दुर्गे. जय माँ राज रानी. जय माँ वैष्णो रानी

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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

सालासर By Sanjay mehta Ludhiana







सालासर : श्री रामपायक हनुमान जी का यह मंदिर राजस्थान के चुरू जिले में है. गाव का नाम सालासर है, इसलिए "सालासर वाले बाला जी" के नाम से इनकी लोक - प्रसिद्धि है.. बालाजी कि यह प्रतिमा बड़ी प्रभावशाली और दाड़ी-मूंछ से सुशोभित है.. मंदिर पर्याप्त बड़ा है.. चारो और यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाए भी बनी हुई है. जिनमे हजारो यात्री एक साथ ठहर सकते है. दूर-दूर से भी यात्री अपनी मन:कामनाये लेकर यहाँ आते है.. और इच्छित फल पाते है.. यहाँ सेवा-पूजा तथा आय-व्यय-सम्बन्धी सभी अधिकार स्थानीय दायमा ब्राह्मणों को ही है, जो श्री मोहनदास जी के भांजे उदयराम जी के वंशज है


यह बालाजी का मंदिर जयपुर बीकानेर सडक मार्ग पर स्थित है। जयपुर से सालासर लगभग 2 घंटे का सफर है। यह हनुमानजी की मंदिर सालासर धाम से जाना जाता है। यह बालाजी धाम, हनुमान भक्तों के बीच शक्ति स्थल के रूप में जाना जाता है। सालासर हनुमानजी के इस मंदिर में भक्तों की अगाध आस्था है।

यहां हर दिन हजारों की संख्या में देशी-विदेशी भक्त मत्था टेकने के लिए कतारबद्ध खडे दिखाई देंगे। सालासर बालाजी धाम में हनुमानजी की वयस्क मूर्ति स्थापित है, इसलिए भक्तगण इसे बडे हनुमान जी पुकारते हैं।

इतिहास
एक कथा के अनुसार, राजस्थान के नागौर जिले के एक छोटे से गांव असोतामें संवत 1811में शनिवार के दिन एक किसान का हल खेत की जुताई करते समय रुक गया। दरअसल, हल किसी शिला से टकरा गया था। वह तिथि श्रावण शुक्ल नवमी थी। किसान ने उस स्थान की खुदाई की, तो मिट्टी और बालू से ढंकी हनुमान जी की प्रतिमा निकली। किसान और उसकी पत्नी ने इसे साफ किया और घटना की जानकारी गांव के लोगों को दी।
माना जाता है कि उस रात असोता के जमींदार ने रात में स्वप्न देखा कि हनुमानजी कह रहे हैं कि मुझे असोतासे ले जाकर सालासारमें स्थापित कर दो। ठीक उसी रात सालासर के एक हनुमान भक्त मोहनदासको भी हनुमान जी ने स्वप्न दिया कि मैं असोतामें हूं, मुझे सालासर लाकर स्थापित करो। अगली सुबह मोहनदासने अपना सपना असोताके जमींदार को बताया। यह सुनकर जमींदार को आश्चर्य हुआ और उसने बालाजी [हनुमान जी] का आदेश मानकर प्रतिमा को सालासर में स्थापित करा दिया।
धीरे-धीरे यह छोटा सा कस्बा सालासर बालाजी धाम के नाम से विख्यात हो गया। मंदिर परिसर में हनुमान भक्त मोहनदास और कानी दादी की समाधि है। यहां मोहनदासजी के जलाए गए अग्नि कुंड की धूनी आज भी जल रही है। भक्त इस अग्नि कुंड की विभूति अपने साथ ले जाते हैं। मान्यता है कि विभूति सारे कष्टों को हर लेती है।
पिछले बीस वर्षो से यहां पवित्र रामायण का अखंड कीर्तन हो रहा है, जिसमें यहां आने वाला हर भक्त शामिल होता है और बालाजीके प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है।
सालासर बालाजी मेला
चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष सालासर बालाजी धाम में बहुत बडा मेला लगता है, जिसमें बालाजी का हर भक्त शामिल होता है ।
अब बोलिए जय सालासर वाले बाला जी की. जय माता दी जी. जय जय माँ.
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Sanjay Mehta









सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

शिव भोले बाबा जी से एक भक्त की प्रार्थना By Sanjay Mehta Ludhiana








शिव भोले बाबा जी से एक भक्त की प्रार्थना

जय भोले भंडारी की! बाबा विश्वनाथ की जय.. त्रिपुरारि त्रिलोकीनाथ की जय .. सुख के सदन शिवशंकर की जय! हर हर महादेव !!!

भारतवर्ष के एक सिरे से लेकर दुसरे सिरे तक प्रत्येक तीर्थ-स्थान में, प्रत्येक देवालय में, यहाँ तक की प्रत्येक हिन्दू के ह्रदय में आज तुम्हारा ही जय जयकार हो रहा है, सब लोग तुम्हे ही पुकार रहे है, परन्तु फिर भी है मृत्युंजय! ना जाने तुम हम पर क्यों नहीं दयालु होते हो.. माना की हम महान अवगुणों के धाम है; परन्तु है तो आखिर तुम्हारे ही.. बोलो, बोलो, कृपालु शंकर! अपने ही अंश, अपनी ही संतान के लिए यह मौनाव्ल्म्बन कैसे???
यह भी ठीक है कि हम बड़े स्वार्थ, कुटिल और पामर है, परन्तु तुम तो दयामय हो, तुम संसार के पिता हो, हम तुम्हारी संतान है, तुम भगवान हो तो हम तुम्हारे भक्त है, तुम स्वामी हो तो हम तुम्हारे सेवक है... इस दशा में तुम्ही बतलाओ, प्रभु! तुम्हे छोड़कर हम और किसकी शरण ले! और कहाँ हमारा निस्तार हो सकता है? दीननाथ! कैसा आश्चर्य है कि ऐसे परमदयालु, पिता, भगवान और स्वामी को पाकर भी इस प्रकार दीन - हीन है..

भगवान! तुमसे हमारे कष्ट छिपे नहीं है.. क्युकि तुम घट-घट-वासी-सर्वान्तर्यामी हो.. इसलिए प्रार्थना यही है कि अब अधिक ना तडपाओ! बहुत हो चूका, क्लेशो को सहते-सहते ह्रदय जर्जर हो रहा है. कहते है "धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का" स्वामिन! ठीक यही दशा आज हमारी हो रही है.. दुखो से संसार त्राहि-त्राहि कर रहा है. धर्म के नाम पर अधर्म बढ़ाया जा रहा है. इस प्रकार इहलोक और परलोक - कही भी गति नहीं दिखलाई पड़ती. शम्बो! जिन महापुरुषो ने अनेक जन्मोतक घोर तपस्या करके तुमसे अक्षय भक्ति का वरदान पाया है, खेद है, आज उन्हिकी संताने, इस अघोगति को प्राप्त हो रही है. भोलेनाथ! लगाओ इन भूले-भटकों को ठिकाने! ऐसा ना हो कि तुम-जैसे कर्णधार को पाकर भी इनकी डगमगाती हुई जीर्ण-शीर्ण जीवन नौका डूब ही जाये...

परमपिता! प्रार्थना स्वीकार करो, दुष्टों का दलन करो, और भक्तो को ह्रदय से लगा लों. निश्चेय ही तुम ऐसा करोगे, पर अभी नहीं.. जब अपने भक्तो को खूब रुला लोगे, उन्हें और दुःख देकर उनकी प्रेम-परीक्षा ले लोगे तब.. परन्तु भगवान! तुम्हारी परीक्षा में यहाँ तो बीच में ही प्राण निकले जा रहे है, हाय! वह घडी कब आएगी???

आओ, विश्वम्भर! पधारो, अपने भक्तो के कष्ट -निवारणार्थ दौड़ पड़ो, पुन: एक बार अधर्म का नाश करो और धर्म कि स्थापना करो, भक्तो का कल्याण करो, बस , एक मात्र यही श्री चरणों में संजय की प्रार्थना है

हरि ॐ . जय माता दी जी
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Sanjay Mehta