सोमवार, 30 अप्रैल 2012

जम्मू का टिकट कटा ले पिया: Jammu ka tikat kta le piya... By Sanjay Mehta Ludhiana











जम्मू का टिकट कटा ले पिया
जम्मू का टिकट कटा ले पिया
मैया के दर्शन को तरसे जिया

तुझे मैया के दर्शन कराऊंगा मै
प्यारा माँ का भवन दिखाऊंगा मै
जम्मू का टिकट करवाऊंगा मै
कटरा ले जायेगा तुझको पिया
यह तेरा पिया , दर्शन को मेरा भी धडके जिया

ओ मेरी मैया रानी, तेरी दुनिया दीवानी , दूर पर्वत पर बैठी
सारी जग की महारानी, तू ही दुर्गा भवानी तू ही माँ वैष्णो रानी
तेरे दर्शन की देखो, पूरी दुनिया है दीवानी

मैया ने मुझ को संदेसा है भिजाया
देख मुझे कटरा है बुलाया

मैया के उचे भवन जायेंगे
पावन के दर्शन मैया के पायेंगे
जीवन यह मैया को सोंप दिया
मैया के दर्शन को दरसे जिया
जम्मू का टिकट कटा ले पिया
जम्मू का टिकट कटा ले पिया
मैया के दर्शन को तरसे जिया

जय जय जय जय जय जय
जय माता की



कैसा है माँ के भवन का नजारा, कैसा होगा गुफा का द्वारा
स्वर्ग के जैसे नज़ारे वहा, बैठी है गुफा में मैया जहाँ
मैया ने मुझ को बुला ही लिया , दर्शन का फल है मुझ को दिया
जम्मू का टिकट कटा ले पिया
जम्मू का टिकट कटा ले पिया
मैया के दर्शन को तरसे जिया

तुझे मैया के दर्शन कराऊंगा मै
प्यारा माँ का भवन दिखाऊंगा मै
जम्मू का टिकट करवाऊंगा मै
कटरा ले जायेगा तुझको पिया
यह तेरा पिया , दर्शन को मेरा भी धडके जिया

ओ मेरी मैया रानी, तेरी दुनिया दीवानी , दूर पर्वत पर बैठी
सारी जग की महारानी, तू ही दुर्गा भवानी तू ही माँ वैष्णो रानी
तेरे दर्शन की देखो, पूरी दुनिया है दीवानी


















जगजननी श्री सीता जी : Shree Sita Maa : Sanjay Mehta Ludhiana









जगजननी श्री सीता जी





श्री सीता माता प्रेम की मूर्ति है. दया की समुंदर है. रामायण के अरण्यकांड में जयंत का प्रसंग आता है. जयंत ने अपराध श्री सीता माँ का ही किया परन्तु माताजी को उस पर दया आई, संत एसा मानते है की जयंत का अपराध अक्षम्य है, क्षमा करने लायक नहीं. रामजी जयंत को मारने के लिए तैयार हुए परन्तु सीताजी को दया आई, माताजी उसको क्षमा कर देती है. इतना ही नहीं रामजी से विनती करती है के इसे क्षमा करो

जग-जननी ने प्रभु स्म्मुखः कर क्रव्य अघ-ताप विनाश

वाल्मीकिजी ने युद्ध-कांड में श्री सीताजी की एक कथा वर्णन की है

रावण के साथ युद्ध पूरा हुआ, रामजी ने रावण का वध कर दिया. हनुमान जी को अशोक-वन में जाकर श्री सीताजी ले आने की आज्ञा हुए. हनुमान जी दौड़ते दौड़ते अशोक-वन आये. वहा शीशम वृक्ष के तले श्री सीता माँ श्री रामजी का ध्यान धरे बैठी है. फुल से श्री राम - नाम लिखा हुआ है. माताजी ने दृष्टि श्री राम-नाम में स्थित की हुई है. वे किसीपर दृष्टिपात करती नहीं. श्री हनुमानजी ने आकर श्री सीता माँ को साष्टांग वंदन किया और कहा 'माँ! तुम्हारे आशीर्वाद से अपनी जीत हुई है. प्रभु ने रावण का वध किया. श्री राम-लक्ष्मण आनंद में विराजे है. माँ! तुम्हारा यह दास आज आपको श्री राम जी के दर्शन करवाएगा. अब आप शीघ्र पधारे.

हनुमान जी रामचंद्र जी के दर्शन करायेंगे-यह सुनकर श्री सीता जी को अत्यंत आनद हुआ . आखे भावभीनी हो गई. श्री सीताजी ने प्रसन्न होकर हनुमान को को अनेक आशीर्वाद दिए. अनेक वरदान दिए -'हनुमान! सब सौम्य सद्गुणों का तुम्हारे अंदर निवास हो. आज मै तुमको क्या दू? मेरा आशीर्वाद है के मेरे हनुमान को काल भी नहीं मार सकेगा, मेरे हनुमान के आगे काल हाथ जोड़कर खड़ा रहेगा, काल सेवक बनकर रहेगा

काल प्रयेक की छाती के उपर पैर रखता है, काल एक - एक को मारता है, परन्तु हनुमान जी के आगे काल भी हाथ जोड़कर खड़ा रहता है, हनुमान जी महाराज आज भी इस लोक में विराजते है

श्री सीताजी कहते है 'मेरे हनुमान को काल मार सकता नहीं, हनुमान! मेरा आशीर्वाद है कि तू चिरंजीवी हो. साधू-महात्मा को ज्ञानी पुरष तुझे सदगुणी मानेंगे और तेरी पूजा करेंगे. जगत में तेरी कीर्ति खूब बढ़ेगी , तेरी बहुत पूजा होगी.

हनुमानजी संतो के सध्गुरू है. ज्ञानियो में आग्रनी है

हनुमान जी कि पूजा सर्वत्र होती है, अरे! रामजी कि पूजा अधिक होती है या हनुमानजी की? एक छोटा सा ग्राम हो, वहां कदाचित रामजी का मंदिर नहीं होगा परन्तु हनुमान जी कि एक छोटी - सी देहरी अवश्य होगी

श्री सीता माँ के प्रसन्नता का पार नहीं, माताजी कहती है - 'मेरा हनुमान जहाँ होगा वहा अष्टमहासिद्धिया इनकी सेवा में हाजिर रहेंगी.

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता , अस वर दिन्ह जानकी माता


हनुमान जी जिस समय श्री सीताराम कि सेवा में होते है, उस समय बालक जैसे होते है, जो बालक जैसा है, वही सेवा कर सकता है, सेवा में मान-विघ्न करता है, बड़े-बड़े महात्मा भी पांडित्य छोड़कर, बालक के समान बनकर, परमात्मा की सेवा करते है. सेवा के ज्ञान का अभिमान, प्रमाद उत्पन्न कराता है. हनुमान जी बालक के समान है, वे सीताजी से कहते है - ' माताजी ! आपने तो बहुत कुछ दिया है, वह ठीक है, परन्तु मै आज अपनी इच्छा से मांगता हु. आज तो मेरा मांगने का ख़ास हक़ है माँ!, मै मांगता हु, वह आज आपको देना ही पड़ेगा.

माताजी ने कहा - 'बेटा! मैंने तुझे देने में क्या बाकी रखा है? तू अमर हो जा. जगत में तेरी जय - जय कार हो

हनुमान जी ने कहा -'माँ! यह सब तो ठीक है, मुझको जो चाहिए , वही दीजिये

माताजी ने कहा - तब तुम मांगो बेटा! तुम जो मांगोगे वही मिलेगा.

हनुमान ने हाथ जोड़कर कहा. माँ! रामजी का सन्देश लेकर लंका में जब मै पहली बार आया था, तब मैंने अपनी आँखों से देखा था कि यह राक्षसिय मेरी माँ को बहुत त्रास देती थी, ये बहुत खराब बोलती थी, आपको बहुत डराती थी, बहुत खिझाती थी, माँ! यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा है, रामजी ने राक्षसों को मारा है, परन्तु लंका में ये राक्षसिया अभी बाकी है, इन राक्षसियों को देखकर मुझे बहुत क्रोध आता है, इनको मारने कि मेरी बहुत इच्छा है. आप आज्ञा दे तो मै एक एक राक्षसी को पीस दू. मेरी माँ को जिन राक्षसियों ने त्रास दिया है, उनमे से एक एक को खूब दंड दू

हनुमान जी महाराज तो राक्षसियो को मारने कि लिए तैयार हो गए परन्तु सीता जी ने मना कर दिया, कहा - बेटा ! यह तू क्या मांगता है? मेरा पुत्र होकर तू ऐसी मांग करता है? वैर का बदला वैर से लेना योग्य नहीं . वैर का बदला प्रेम है,

सीता जी ने हनुमान जी से कहा - बेटा! बदला जो प्रेम से लेते है वे ही संत है, वैर की शांति वैर से नहीं प्रेम से होती है. अपकार का बदला उपकार से और अपमान का बदला मान से दे, वही संत है. ये राक्षसिया तो रावण की आज्ञा में थी, रावण के कहने से मुझे कष्ट देती थी. इसमें इनका तो कोई दोष नहीं. यह दुःख मेरे कर्मो का फल है, मैंने लक्ष्मण जी का अपमान किया, उसका यह फल मुझे मिला है, एक साधारण पशु भी स्वधर्म का पालन करता है, वह वैर के बदले प्रेम देता है.

इस लिए बेटा! तू इन राक्षसियो को मारना नहीं, मुझे इन राक्षसियो पर दया आती है, मै तो ऐसा विचार करती हु. कि अब मुझे अयोध्या जाना है, इतने अधिक दिन मै इन राक्षसियो के साथ रही हु. ये राक्षसिया जो कोई वरदान मांगे वह मुझको इन्हें देना है. बेटा! मैंने तो निश्चय किया है के मै इन राक्षसियो को सुखी करके ही यहाँ से जाऊ. यह राक्षसिया बहुत दुखी है. तू किसी भी राक्षसी को मारना नहीं

राक्षसियो को मारने की सीता जी ने मनाही की तो हनुमान जी ने सीता माँ का जय जयकार किया, सीता माँ को साष्टांग वन्दन करके हनुमान जी ने कहा - ऐसी दया तो मैंने श्री रामजी में भी देखि नहीं, श्री राम दयालु है, यह बात सत्य है, परन्तु ऐसी दया मैंने जगत में कही देखी नहीं, जगजननी! आपमें ही यह दया मैंने देखी , माँ! तुम जगन्माता हो, इसलिए तुमको सब पर दया आती है .

श्री सीता जी दया की , प्रेम की मूर्ति है, उनका वर्णन कौन कर सकता है, उनको तो सब पर दया आती है, वे जगत की माँ है

रामजी की माँ तो कौशल्या हो सकती है, परन्तु सीताजी की माँ कौन हो सकती है, श्री सीताजी की तो कोई माँ नहीं, इनका कोई पिता भी नहीं, यह सबकी माँ है, सर्वेश्वरी , सर्वश्रेष्ट है.

जगजननी की माँ कौन हो सकती है? उनकी माँ कोई हो सकती नहीं, श्री सीता जी का जनम दिव्या है, लय दिव्या है, श्री सीता माँ धरती से बाहर प्रकटी और धरती में ही लीन हो गई,

बोलिए सीता माता की जय
बोलिए मेरी माँ वैष्णो रानी की जय
बोलिए मेरी माँ राज रानी की जय
जय माता दी
जय श्री राम
जय श्री हनुमान














रविवार, 29 अप्रैल 2012

एक गोपी के घर लाला माखन खा रहे थे: Krishan Bhagwan Makhan Khaa Rahe The. By Sanjay Mehta Ludhiana









एक गोपी के घर लाला माखन खा रहे थे. उस समय गोपी ने लाला को पकड लिए. तब कन्हैया बोले - तेरे धनी की सौगंध खा कर कहता हु, अब फिर कभी भी तेरे घर में नहीं आऊंगा.

गोपी ने कहा - मेरे धनी की सौगंध क्यों खाता है ?

कन्हैया ने कहा. तेरे बाप की सौगंध , बस

गोपी और ज्यादा खीझ जाती है और लाला को धमकाती है परन्तु तू मेरे घर आया ही क्यों?

कन्हैया ने कहा - अरी सखी! तू रोज कथा में जाती है, फिर भी तू मेरा तेरा छोडती नहीं - इस घर का मै धनी हु, यह घर मेरा है

गोपी को आनंद हुआ कि मेरे घर को कन्हैया अपना घर मानता है, कन्हैया तो सबका मालिक है, सभी घर उसी के है. उसको किसी कि आज्ञा लेने कि जरूरत नहीं

गोपी कहती है - तुने माखन क्यों खाया ?

लाला ने कहा - माखन किसने खाया है ? इस माखन में चींटी चढ़ गई थी तो उसे निकलने को हाथ डाला. इतने में ही तू टपक पड़ी

गोपी कहती है. परन्तु लाला! तेरे ओंठो के उपर भी तो माखन चिपका हुआ है

कन्हैया ने कहा - चींटी निकालता था , तभी ओंठो के उपर भी तो मक्खी बैठ गई, उसको उड़ाने लगा तो माखन ओंठो पर लग गया होगा

कन्हैया जैसे बोलते है, ऐसा बोलना किसी को आता नहीं. कन्हैया जैसे चलते है, वैसे चलना भी किसी को आता नहीं. गोपी तो पीछे लाला को घर में खम्भे के साथ डोरी से बाँध दिया, कन्हैया का श्रीअंग बहुत ही कोमल है गोपी ने जब डोरी कस कर बाँधी तो लाला कि आँख में पानी आ गया. गोपी को दया आई , उसने लाला से पूछा - लाला! तुझे कोई तकलीफ है क्या

लाला ने गर्दन हिला कर कहा - मुझे बहुत दुःख हो रहा है, डोरी जरा ढीली करो

गोपी ने विचार किया कि लाला को डोरी से कस कर बाधना ठीक नहीं, मेरे लाला को दुःख होगा. इस लिए गोपी ने डोरी थोड़ी ढीली राखी और पीछे सखियो को खबर देने गई के मैंने लाला को बांधा है

तुम लाला को बांधो परन्तु किसी से कहना नहीं, तुम खूब भक्ति करो, परन्तु उसे प्रकाशित मत करो, भक्ति प्रकाशित हो जाएगी तो भगवान सटक जायेंगे, भक्ति का प्रकाश होने से भक्ति बढती नहीं , भक्ति में आनद आता नहीं.

बाल कृष्ण सूक्ष्म शरीर करके डोरी से बहार निकल गए और गोपी को अंगूठा दिखा कर कहा, तुझे बांधना ही कहा आता है?

गोपी कहती है - तो मुझे बता , किस तरह से बांधना चाहिए

गोपी को तो लाला के साथ खेल करना था, लाला गोपी को बांधते है

योगीजन मन से श्री कृष्ण का स्पर्श करते है तो समाधि लग जाती है. यहाँ तो गोपी को प्रत्यक्ष श्री कृष्ण का स्पर्श हुआ है. गोपी लाला के दर्शन में तल्लीन हो जाती है. गोपी को ब्रह्म - सम्बन्ध हो जाता है. लाला ने गोपी को बाँध दिया.

गोपी कहती है के लाला छोड़! छोड़! लाला कहते है - मुझे बांधना आता है. छोड़ना तो आता ही नहीं

यह जीव एक एसा है, जिसको छोड़ना आता है, चाहे जितना प्रगाढ़ सम्बन्ध हो परन्तु स्वार्थ सिद्ध होने पर उसको भी छोड़ सकता है, परमात्मा एक बार बाँधने के बाद छोड़ते नहीं

जय श्री कृष्ण
राधे राधे
जय माता दी जी
जय माँ वैष्णवी
जय माँ राजरानी







शनिवार, 28 अप्रैल 2012

माँ दुर्गा जग जननी : Maa Durga By Sanjay Mehta Ludhiana










माँ दुर्गा जग जननी है. करुना की मूर्ति माँ अपनी संतानों के दुःख से दुखी हो, उन्हें सताने वालो के लिए करालवदना महाकाली बन जाती है

शक्तिरूप है माँ, सभी देवो की शक्तियों का समदृष्टि रूप है, जगदम्बा!! इस लिए इनकी आराधना - उपासना का अर्थ है सभी देवो की पूजा करना, ये प्रसन्न हो , तो मानो सभी देव प्रसन्न हो गए. इनके बिना शिव शव है , भले ही शिव सर्व्शाक्तिस्म्पन्न हो, लेकिन इनके बिना वे निरीह है. किसी ने सच कहा है . माँ बन सकती है पिता, जबकि पिता कभी भी माता नहीं बन सकता

शंकराचार्य ने अद्वैत ब्रह्म का प्रतिपादन किया . वहा ना पाप है ना ही पुण्य, लेकिन माँ के लिए उन्हों ने कहा ' हे माँ तुम्हारे समान कोई पापो को हरनेवाली नहीं है और मेरे समान कोई पातकी नहीं , उन्हें पूर्ण विश्वास है माँ की करुना पर तभी तो वे कहते है -- पूत कपूत हो सकता है, लेकिन माता कभी भी कुमाता नहीं होती

शक्ति के रूप में उपासना करनेवाले को उपासना के नियमो - उपनियमो का पालन करना होता है, जब कि जो माँ के रूप में इसकी अराधना करता है, उसके लिए सब क्षम्य है. माँ उसकी समस्त कामनाओं को सहज में पूरा कर देती है. सिर्फ 'माँ' इस महामंत्र का जप ही भक्ति-मुक्ति दाता है.

लोगो ने माँ के उग्र रूपों कि आरधना करने कि विधिया बताई है. लेकिन वे कठिन है. सही मार्गदर्शन न मिलने पर भटकने का खतरा ज्यादा है. उनमे..... सबसे श्रेष्ठ है जगजननी के माँ के रूप में अराधना
अब कहे जय माता दी
जय हो माँ वैष्णो देवी की
जय मेरी माँ राज रानी की










बुधवार, 25 अप्रैल 2012

पूजा वाली थाली माँ : Pooja Wali Thaali Maa. By Sanjay Mehta Ludhiana







पूजा वाली थाली माँ
जीवन की खुशहाली माँ
कोना - कोना रोशन कर दे
है इतनी उजियाली माँ
माँ तो आखिर माँ ही है
गौरी हो या काली माँ
हम है फुल सरीखे कोमल
और बगिया की माली माँ
कितना रखती ध्यान हमारा
रहे कभी ना खाली माँ
तुफानो से क्यों घबराये
हिम्मत देने वाली माँ
देख हमारी मुस्कानों को
जैसे सब कुछ पा ली माँ
है पावन तैयाहर सरीखी
होली और दिवाली माँ
यह नाम तो अजर-अमर है
ज्यो अमृत की प्याली माँ

जय माता दी जी
जय माँ दुर्गे








गलियो में मेरी आजा , दिलदार यार प्यारे : Galio Me meri Aaja : Sanjay Mehta Ludhiana


मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

माखन - मिश्री : Makhan Mishri : By Sanjay Mehta Ludhiana








माखन - मिश्री
श्री राम बहुत शर्मीले है, कौशल्या माँ माखन - मिश्री देना भूल जाए तो रामजी मांगते नहीं. बहुत मर्यादा में रहते है. अनेक बार एसा हुआ की कौशल्या जी लक्ष्मीनारायण की सेवा में इसी तन्मय हो जाती है की रामजी कौशल्या माँ का वन्दन करने आवे, पास बैठ जाए परन्तु माँ रामजी को माखन - मिश्री देना भूल जाती है परन्तु रामजी कभी भी मांगते नहीं ..

कन्हैया तो यशोदा माँ के पीछे पड़ जाते थे कि 'माँ! माखन-मिश्री मुझे दे. लाला कि सभी लीला विचित्र है, ये तो प्रेम - मूर्ति है. श्रीराम मरियादा पुर्शोतम है , माता कि भी मर्यादा रखते है

श्रीराम और श्री कृष्ण दोनों को माखन-मिश्री बहुत भाती है . दोनों माखन-मिश्री आरोगते है. श्रीबालकृष्णलाल तो माखन - मिश्री हाथ में ही रखते है. कन्हैया जगत को ज्ञान देते है कि 'तुम मिश्री जैसे मधुर बनो तो मै तुमको हाथ मै रखु. जीवन में मिठास सयम से आती है, सबका मान रखने से आती है. सबको मान देने से और सब इन्द्रियों का सयम करने से जीवन मिश्री जैसा मधुर बनता है. जिसके जीवन में कड़वाहट है, उसकी भक्ति भगवान् को प्रिय लगती नहीं. जिसका जीवन मिश्री जैसा मधुर है, जिसका ह्रदय माखन जैसा कोमल है, वही परमात्मा को प्यारा है, कन्हैया माखन-चोर अर्थात म्रदुल मनका चोर है. म्रदुल मन, कोमल ह्रदय भगवान श्री राम , भगवान श्री कृष्ण दोनों को प्रिय लगता है .

जय श्री राम
जय श्री कृष्ण
राधे राधे
जय माता दी जी












सोमवार, 23 अप्रैल 2012

सीता जी का धरती में समाना : Sita ji ka dharti mai smaana . By Sanjay Mehta Ludhiana








सीता जी का धरती में समाना







वाल्मीकि रामायण में वर्णन आता है कि रामजी अंतिम यज्ञ नैमिषार्णय में किया. अयोध्या के पास यह नैमिषार्णय है. नैमिषार्णय यात्रा जिन वैष्णवों ने कि होगी उनको विदित होगा कि वह एक जानकी कुण्ड है. वह के साधू ऐसा बतलाते है कि श्री सीता माता इसी धरती में समायी है. और इनके स्मारक-स्वरूप इस कुण्ड का नाम जानकी कुण्ड है. माता जी यही लीन हुई है

श्री रामचंद्र जी के यज्ञ का निमन्त्रण वाल्मीकि जी को भी गया

वाल्मीकि ऋषि कि बहुत इच्छा थी कि किसी भी प्रकार से रामजी मान जाये और सीता जी को घर में रखे. श्री सीतारामजी सुवर्ण-सिंहासनपर एक साथ विराजे और मै दर्शन करू. मै रामजी को समझाऊंगा , रामजी को उलाहना दूंगा, बहुत दिन हो गए. अब मुझे यह रहस्य सभा में प्रकट करना है.

एक दिन दरबार भरा हुआ था. उस दरबार में वाल्मीकिजी ने भाषण दिया

बहु वर्ष सहस्त्राणि तपश्चर्या मया कृता
मनसा कर्मणा वाचा भूतपूर्व न किल्बिषम्

साठ हजार वर्ष तक मैंने तपश्चर्या कि है. मन, वाणी अथवा कर्म से मैंने कोई पाप नहीं किया. एक दिन भी मैंने झूंठ नहीं बोला. मै प्रतिज्ञापूर्वक कहता हु कि सीता जी महान पतिव्रता है. सीता जी अति पवित्र, शुद्ध एवं निर्दोष है

आज ऋषि ने सभा में प्रकट किया कि श्री सीताजी मेरे आश्रम में है. रामराज्य में प्रजा बहुत सुखी है. जितना महान सुख रामराज्य में तुमको मिलता है, उतना स्वर्ग के देवताओं को भी नही मिलता परन्तु लोगो को धिक्कार है कि ऐसे श्री रामजी के सुख का तनिक भी विचार नहीं करते. जिन रामजी के राज्य में इतना महान सुख तुमको मिला है, उन रामजी कि क्या स्थिति है? अकेले श्रीराम जी राजमहल में रहते है, अकेली सीताजी मेरे आश्रम में है. यह तुम लोगो से कैसी सहन किया जा रहा है? तुम्हारी सेवा जैसी श्री रामचन्द्र जी ने कि है वैसी किसी राजा ने अपनी प्रजा कि सेवा नहीं कि. तुम्हारी आराधना के लिए ही रामजी ने निर्दोष सीताजी का भी त्याग किया

आज मै प्रतिज्ञापूर्वक कहता हु कि सीताजी महान पतिव्रता न हो तो मेरी साठ हजार वर्ष कि तपस्या व्यर्थ हो जाए श्री सीताजी महान पतिव्रता ना हो तो मै नर्क में पडू, मेरी दुर्गति हो

श्री सीताजी का स्मरण हुआ और ऋषि वाल्मीकि का ह्रदय द्रवीभूत हो गया. उन ऋषि ने श्रीसीताजी का बहुत बखान किया और अयोध्या कि प्रजा को बहुत उलाहना दिया. वे आवेश में आकर बोलने लगे.

आयोध के लोग कैसे है मुझे खबर नहीं पड़ती. लोगो को लज्जा भी नहीं आती. ये लोग मनुष्य ये या राक्षस? को विचार ही नहीं करता. तुमलोग रामजी को क्यों नहीं कहते कि माताजी को जल्दी घर में पधराओ, नहीं तो हम अन्न-जल छोड़कर प्राण त्याग करते है

आज तो बोलते-बोलते ऋषि ने रामजी को भी उलाहना दिया, रामजी को भी बहुत सुनाई, इन्होने रामजी से कहा, तुम्हारा अन्य सभी कुछ ठीक है परन्तु तुमने श्री सीताजी का त्याग किया यह बहुत बुरा किया है ..

मुझको यह सहन नहीं होता. मेरी बहुत भावना है कि श्रीसीताजी के साथ आप सुवर्णसिंहासन पर आप विराजो और मै दर्शन करू. मुझे दक्षिणा में और कुछ भी नहीं माँगना, केवल इतना ही माँगना है. वे मेरी कन्या महान पतिव्रता है ऋषि बहुत आवेश में बोलने लगे. उस समय रामजी सिंहासन से उठकर दौड़ते हुए आये और वाल्मीकि जी के चरण पकडे और ऋषि के चरणों में माथा नवाया. कहा मै जानता हु के वे महान पतिव्रता है, निर्दोष है, परन्तु गुरूजी! मै क्या करू, मेरा दोष नहीं. अयोध्या के लोग चाहे जैसा बोलते है. कितनो ही के मन में शंका है, लंका में उन्हों ने अग्नि में प्रवेश किया था, परन्तु अयोध्या की प्रजा को विश्वास नहीं आता

मेरे चरित्र के विषय में लोगो को शंका होती है. प्रजा को शुद्ध चरित्र का आदर्श बताने के लिए मेरी इच्छा न होते हुए भी मैंने त्याग किया है. सीताजी की पवित्रता का मुझे तो विश्वास है परन्तु अयोध्या के लोगो को विश्वास होना चाहिए, मेरी बहुत इच्छा है के एक बार सीता जी दरबार में पधारे और अयोध्या की प्रजा को विश्वास हो सके, ऐसा कोई उपाए बतावे. उसके पश्चात् मै सीताजी को घर में लाऊ

वाल्मीकि जी आश्रम में आते है और सीताजी को समझाते है बेटी! आज रामजी के साथ बहुत बाते हुई और प्रभु ने ऐसा कहा है कि मेरी बहुत इच्छा है कि एक बार वे दरबार में आवे. बेटी! तुम जाओगी तो मै तुम्हारे साथ रहूँगा.

ऋषि सीताजी को समझाते है. सीताजी बहुत व्याकुल हुई. उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर कहा. पतिदेव कि आज्ञा का पालन करना मेरा धर्म है. प्रभु ने मेरा त्याग किया, यह योग्य था और आज मुझे दरबार में बुलाते है. यह भी योग्य है. ये जो कुछ भी करते है. वह सब हो योग्य है. उनकी इच्छा है तो मै दरबार में आउंगी. वाल्मीकि जी रामचंद्र जी के पास आये और उन्हों ने कहा कि महाराज श्रीसीताजी दरबार में पधारेंगी. इसके लिए दिन निश्चित हो गया.

नियत दिन पर भारी दरबार भरा हुआ है. देवता और ऋषि दरबार आये हुए है. अयोध्या कि प्रजा दौड़ रही है. सभी को सीताजी का प्रभाव देखने कि इच्छा है

वाल्मीकि जी सीताजी को दरबार में लेकर आते है. श्रीसीता माँ , वाल्मीकि जी के पीछे पीछे चल रही है. नजर धरती पर है. श्री सीताजी माँ किसी पर दृष्टि डालती नहीं. माँ ने दोनों हाथ जोड़ रखे है. वे जगत को वन्दन कर रही है .. :'(

माँ ने काषाय वस्त्र पहन रखे है सौभाग्य - अलकार के आलावा दूसरा कोई श्रृंगार नहीं है. श्रीराम के वियोग में सीता जी ने अनाज का सेवन किया नहीं है. इससे माँ का श्रीअंग अतिशय दुर्बल दीख पड़ते है. लव - कुश पीछे पीछे चल रहे है

अयोध्या के प्रजा सीताजी का दर्शन करती है. श्री सीता माँ का दर्शन करते करते सब रोने लग गए. श्री सीता माँ का जय - जयकार करने लगे.

सिंहासन पर श्रीरामचन्द्रजी विराजे हुए है. श्रीसीताजी उनका वन्दन करती है. उसके पश्चात् सीता माँ का सुंदर भाषण हुआ. धरती पर नजर रख कर माँ बोली

श्री रामचन्द्र जी के बिना किसी पुरष का मैंने स्मरण भी किया ना हो , प्रभु के द्वारा त्याग किये जाने पर भी मेरे मन में उनके प्रति कुभाव ना आया हो, पतिव्रता-धर्म का मैंने बराबर पालन किया हो, आचरण , वाणी और विचार से सदा-सर्वदा श्रीरामजी का है चिन्तन किया हो., यह सब जो मैंने कहा , वह सत्य हो तो हे धरती माँ!, मुझे अपनी गोद में स्थान दो , अब तो मुझे मार्ग दो, मुझे अब इस जगत में रहना नहीं है ..



सीता माँ के मुख से ज्यो ही ये शब्द निकले, वही पर एकाएक धडाका हुआ, धरती फट गई, शेषनाग के फन के ऊपर सुवर्ण का सिंहासन बहार आया, श्री भूदेवी ने श्रीसीता माँ को उठा कर सिंहासन पर बैठाया और कहा. पुत्री यह जगत अब तुम्हारे रहने योग्य नहीं. लोगो को सम्मान देना आता ही नहीं. सिंहासन पर ज्यो ही श्री सीताजी विराजी, लव-कुश घबरा कर दौड़ते आये. हमारी माँ कहा जाती है? सात-आठ वर्ष के बालक है. माँ ने बलैया ली और कहा - 'बेटा! राजा राम तुम्हारे पिता है. तुम अब अपने पिता कि सेवा करना, तुम्हारी माँ जाती है'

सब देखते ही रह गए. एक क्षण में सिंहासन के साथ श्री सीताजी आद्र्श्य हो गयी, धरती में लीन हो गई. पीछे तो अयोध्या के लोग बहुत विलाप करते है. श्रीराम आनन्द रूप है परन्तु सीताजी के वियोग में उन्हों ने भी विलाप किया है

श्री सीताजी का चरित्र अति दिव्या है, उनकी प्रत्येक लीला दिव्या है, श्री सीताजी का जनम दिव्या , श्री सीताजी का जीवन दिव्या और श्री सीता जी कि शेष लीला भी दिव्या है, श्री सीताजी के समान महान पतिव्रता स्त्री इस जगत में कोई नहीं है. भविष्य में होगी भी नहीं

बोलिए जय माता दी
फिर से बोलिए जय माता दी













Boliye Shree Ram : Sanjay mehta Ludhiana









भगवान् शंकर तो हर समय राम राम कंठ में रखते है, 'राम राम राम राम ' करते है. तुम राम - राम नहीं परन्तु श्री राम श्री राम श्री राम इस तरह श्री के साथ राम नाम लेना है . शंकर दादा को तो लक्ष्मी की जरूरत नहीं है. इस लिए श्री को छोड़ कर अकेले राम - नाम को पकड रखा है, परन्तु हमें तो लक्ष्मी की बहुत जरूरत रहती है. इसलिए हमें केवल  राम राम ना करके श्री राम - श्री राम रटना चाहिए , श्री शब्द का अर्थ होगा है लक्ष्मी, सही शब्द का अर्थ होता है, श्री सीता जी

अब बोलिए जय श्री राम
जय माता दी जी







रविवार, 22 अप्रैल 2012

Mata Ji ka Darbar By Sanjay Mehta Ludhiana








माता रानी के दरबार में तुम दर्शन करोंगे तो ध्यान आवेगा के शत्रु होते हुए भी जीव एक ही जगह एकत्रित है, शत्रु होते हुए भी वैर को बिसार रखा है. शिवजी के दरबार में गणपति महाराज है और उनका वहां है मूषक, शिवजी के गले में सर्प है. सर्प और मूषक का जन्म-सिद्ध वैर होता है. सर्प मूषक को देखते ही दौड़ पड़ता है और चूहे को मार डालता है, परन्तु शिव - शक्ति के मंदिर में तो इन्होने वैर भुला रखा है, प्रेम से सब साथ बैठे है, भगवान शंकर के वाहन है नन्दीश्वर और माता पार्वती जी के वाहन है सिंह . आदिशक्ति जगदम्बा सिंह वाहिनी है . माता जी को सिंह बहुत प्रिय है. सिंह हिंसा तो बहुत करता है. परन्तु सिंह में एक बहुत बड़ा सदगण है. सिंह वर्ष में एक ही बार काम-सुख भोगता है. बाकी तीन सो उन्सठ दिवस यह सयम रखता है. सिंह सयम की मूर्ति है और इसलिए आदिशक्ति जगदम्बा ने सिंह को पसंद किया. माता जी के मंदिर मे सिंह की सथापना होती है .


देवी भागवत में आदिशक्ति जगदम्बा के इक्यावन सिद्धपीठो की कथा आती है. स्वर-व्यंजन मिलने से इक्यावन होते है. इनको प्रकट करने की जो शक्ति है, वह इक्यावन पीठो में विराजती है. आदिशक्ति जगदम्बा जहाँ विराजती है, वहां सिंह की सथापना होती है. काशी में विशालाक्षी है. कांची में कामाक्षी है. मटूरा में मिनाक्षी है. ज्वालाजी मे माँ ज्वाला, चिन्तपुरनी मे माँ चिन्तपुरनी, काँगड़ा मे ब्रेजेश्वरी देवी पीठ में सिंह की स्थापना है. माताजी का वाहन सिंह और शिवजी भगवान का वाहन नंदी, सिंह और बैल का जन्मसिद्ध वैर है. परन्तु माँ के धाम में ये वैर भूल जाते है

बोलिए जय माता दी जी
जय माँ शेरावाली माँ
जय मेरी माँ वैष्णो रानी
जय मेरी माँ राज रानी
जय माता दी जी








शनिवार, 21 अप्रैल 2012

द्वार पे बैठा राह निहारु, थक गए मेरे नैना : Dwar pe baitha raah Niharu.. By Sanjay Mehta Ludhiana


द्वार पे बैठा राह निहारु, थक गए मेरे नैना
आओ श्याम मेरे अंगना. आओ ना
आ जाओ , श्याम मेरे अंगना
राह में तेरी पलके बिछाई , सेज फूलो की मैंने सजाई -२
अब तो आजाओ मेरे कन्हैया , कही हो ना मेरी रुसवाई
जय हो जय हो
तू जो आये तो खिल जाए, मन की मेरी बगिया
आओ श्याम मेरे अंगना. आओ ना

मेरी आँखों का बस यही सपना, एक तू श्याम हो मेरा अपना -२
आज का प्रेम अपना नहीं है, कई जन्मो का बंधन है अपना
जय हो जय हो
जग से रिश्ता टूटे, तुझ से रिश्ता टूटे अब ना
आओ श्याम मेरे अंगना. आओ ना

तुझे भगतो ने जब भी पुकारा, तुने सब को दिया है सहारा
नाव मझधार में मेरी डोले, उस को तू ही दिखाए किनारा
जय हो जय हो
बन के खिवैया आजा मोहन, कोई मेरे संग ना
आओ श्याम मेरे अंगना. आओ ना

सब की बिगड़ी बनाने वाले , बात मेरी बनाये तो मानु
मै तो भटका हुआ एक मुसाफिर, राह मुझ को दिखाए तो जानू
जय हो जय हो
सुन ले संजय मेहता की इतनी विनती, चरण कमल में रखना
आओ श्याम मेरे अंगना. आओ ना

द्वार पे बैठा रह निहारु, थक गए मेरे नैना
आओ श्याम मेरे अंगना. आओ ना
आ जाओ , श्याम मेरे अंगना

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

सानू भुल के वी कदे न भुलाईं दातिए: Sanu Bhul ke v kade naa bhulaai datiye by sanjay mehta ludhiana










सानू भुल के वी कदे न भुलाईं दातिए
जित्थे मारिये आवाज ओथे आयीं दातिए .
भुल्लां साडियां ते परदे ही पायीं दातिए ,
जित्थे मारिये आवाज ओथे आयीं दातिए .
--------------------१------------------------

छां रेहमता दी बचेयाँ ते करदी रहीं ,
कदे डोलन न देवीं बांह फड़दी रहीं .
बेड़ा बण के मलाह बन्ने लायीं दातिए .
जित्थे मारिये आवाज ओथे आयीं दातिए .
------------------२--------------------------

तेरे भगतां नू तेरे ते है मान माए नी .
तुहियों मुश्किलां नू करदी आसान माए नी .
साडी बेनती न कदे ठुकरायीं दातिए .
जित्थे मारिये आवाज ओथे आयीं दातिए .
------------------३------------------------------

तूं तां सूलियां नूं सूल माँ बनोंन वाली एं .
माड़े वकत दी वी मार तों बचौन वाली एं .
घुम्मन घेरियाँ च रास्ता दिखायीं दातिए .
जित्थे मारिये आवाज ओथे आयीं दातिए .
-------------------------४---------------------

तेरी निर्दोष मेहर दा ए सानू आसरा ,
तुहियों औखे वेले भगतां नूं देवीं हौंसला .
छायियाँ कालियां घटावां नूं उड़ाईं दातिए .
जित्थे मारिये आवाज ओथे आयीं दातिए .










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लक्ष्मी माँ की स्तुति : Lakshmi Maa Ki Stuti By Sanjay Mehta Ludhiana


 विश्व का पालन और संहार उनके नेत्रों के खुलने और बंद होने से ही हुआ करता है. वे महालक्ष्मी सबकी आदिभूता , त्रिगुणमयी और परमेश्वरी है. व्यक्त और अव्यक्त उनके दो रूप है, वे उन दोनों रूपों से सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित है. जल आदि रस के रूप से वे ही लीलामय देह धारण करके प्रकट होती है. लक्ष्मी रूप में आकर वे धन प्रदान करने की अधिकारिणी होती है, ऐसे स्वरूपवाली लक्ष्मी देवी श्री हरी के आश्रय में रहती है. सम्पूर्ण वेद तथा उनके द्वारा जानने योग्य जितनी वस्तुए है, वे सब श्री लक्ष्मी के ही स्वरूप है, स्त्री रूप में जो कुछ भी उपलब्ध होता है, वह सब लक्ष्मी का ही विग्रह कहलाता है, स्त्रियों में जो सौन्दर्य, शील, सदाचार और सौभाग्य स्थित है, वह सब लक्ष्मी का रूप है, भगवती लक्ष्मी समस्त स्त्रियों की शिरोमणि है, जिनकी कृपा - कटाक्ष पड़ने मात्र से ब्रह्मा , शिव, देवराज इन्दर, चंद्रमा, सूर्य , कुबेर, यमराज तथा अग्निदेव प्रचुर एश्वर्या प्राप्त करते है.

उनके नाम इस प्रकार है. लक्ष्मी, श्री, कमला, विद्या , माता, विष्णुप्रिया , सती , पद्मालया , पद्महस्ता , पद्माक्षी , पद्म्सुन्दरी, भुतेश्वरी , महादेवी, क्षीरोद्त्न्य (क्षीरसागर की कन्या) , रमा, अनंत्लोक्नाभी (अनंत लोको की उत्पत्ति का केन्द्रस्थान ), भू, लीला, सर्वसुखप्रदा , रुकमनी, सर्ववेदवती , सरस्वती, गौरी, शांति, स्वाहा, स्वधा, रति, नारायणवरारोहा , (श्री विष्णु की सुंदर पत्नी) तथा विष्णोनिर्त्यानुपायिनी (सदा श्री विष्णु के समीप रहनेवाली) . जो प्रात:कल उठकर इन सम्पूर्ण नामो का पाठ करता है, उसे बहुत बड़ी सम्पति तथा विशुद्ध धन-धान्य की प्राप्ति होती है

'जिनके श्रीअंगो का रंग सुवर्ण के समान सुंदर एवम गौर है, जो सोने-चांदी के हारो से सुशोभित और सबको आन्दित करनेवाली है, भगवान श्री विष्णु से जीना कभी वियोग नहीं होता, जो स्वर्णमयी कान्ति धारण करती है, उत्तम लक्षणों से विभूषित होने के कारन जिनका नाम लक्ष्मी है, जो सब प्रकार की सुगंधों का द्वार है, जिनको परास्त करना कठिन है, जो सदा सब अंगो से पुष्ट रहती है. गाये के सूखे गोबर में जिनका निवास है, तथा जो समस्त प्राणियों की अधीश्वरी है, उन भगवती श्रीदेवी का मै संजय मेहता यहाँ आवाहन करता हु

जय माता दी जी
जय लक्ष्मी माता जी की
जय माँ वैष्णो देवी की
जय माँ राज रानी की
जय जय जय

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

देव तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते है: Dev tumhare kai upasak By Sanjay Mehta Ludhiana


देव तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते है
सेवा में बहुमूल्य वस्तुए लाकर तुम्हे चढाते है
धूमधाम और साज वाज से वो मंदिर में आते है
मुक्त मणि बहुमूल्य वस्तुए लाकर तुम्हे चढाते है
मै ही गरीब एक ऐसा आया जो कुछ साथ नहीं लाया
पूजा की विधि नहीं जानता फिर भी नाथ चला आया
धुप , दीप, नैवध्य नहीं है झांकी व् श्रंगार नहीं
हाय गले में पहनाने को फूलो का भी हार नहीं
नहीं दान है नहीं दक्षिण , खाली हाथ चला आया
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने का आया
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारी को समझाओ
जो कुछ है बस यही पास है इसे चढाने आया हु
मै उन्मत प्रेम का प्यासा ह्रदय दिखाने आया हु
चरणों में अर्पित है, प्रभुवर चाहो तो स्वीकार करो
दास तो 'बालाजी' का ही है ठुकरा दो या प्यार करो

जय श्री बाला जी महाराज की जय
जय श्री राम जी की
जय माता दी जी

सोमवार, 16 अप्रैल 2012








केवट की कथा

श्री राम जी की सरलता के अनेको प्रसंग है . रामायण में केवट का अति सुंदर प्रसंग वर्णित है. बनवास लेकर श्री रघुनाथ जी प्रयागराज में पधारे है. उस समय गंगा जी पार करने के लिए उनको नौका की जरूरत पड़ती है. तुम प्रयागराज गए होंगे. प्रयागराज में आज भी कितने ही नाविक लोग ऐसा कहते है के हम तो उसी केवट के वंश के है. जिसने रामजी को नाव में बैठाकर गंगापार उतारा था. केवट के वंश में हमारा जन्म हुआ है

केवट श्री राम, लक्ष्मण और जानकी जी को नाव में बैठाकर गंगा जी के सामने के किनारे पर ले गया. केवट ने इनको गंगापार उतारा है. गंगा - किनारे रेती में श्री सीतारामजी विराजे है . रामजी को आज संकोच हुआ है . उन्हों ने ऐसा सोचा के इस केवट को मै क्या दू? इसने मेरी सेवा की है . इसने हमको गंगापार उतारा है. श्री राम जी बहुत संकोची है . किसी के उपकार को किसी की थोड़ी भी सेवा को रामजी भूलते नहीं. आज तो श्री राम तपस्वी बनकर वन में पधारे है. वल्कल धारण किया है. पास में कुछ भी तो नहीं. केवट को खाली हाथ विदाई देने में रामजी को बहुत संकोच हुआ. केवट विदा लेने आया. उसने श्री सीताराम जी को साष्टांग प्रणाम किया प्रभु की आँखे सजल हो गई. वे विचार करने लगे 'यह गरीब सेवा करता है. इसकी कोई मजूरी दी नहीं उस पर भी साष्टांग वन्दन करता है. इसको खाली हाथ किस प्रकार विदा करू? मुझे इसे कुछ तो देना ही चाहिए , परन्तु ...... श्री राम जी केवट के सामने देख सकते नहीं नजर धरती में लगी है

श्री सीता जी समझ गई की प्रभु इसको कुछ देने की इच्छा है परन्तु पास में कुछ भी नहीं है. इससे संकोच हो रहा है. माता जी की ऊँगली में एक सुंदर अंगूठी थी. सीता जी ने यह अंगूठी उंगली से उतारकर रामजी के हाथ में देते हुए कहा 'आप तनिक भी संकोच नहीं करे' इसको इसे दे दीजिये. रामजी ने अंगूठी केवट को देने का प्रयास किया. केवट ने हाथ जोड़कर अंगूठी लेने को मना किया , रामजी से बोला. "महाराज मै कोई पढ़ा - लिखा नहीं हु, अनपढ़ हु परन्तु मेरे पिता ने खास करके कहा है की 'कोई गरीब आवे, साधू आवे, ब्राह्मण आवे तपस्वी आवे, इनसे कुछ भी लिए बिना गंगापार उतरना' यही नियम मैंने सदैव पालन किया है. आप मेरी नाव में बैठे मुझे आपकी सेवा का लाभ मिला, उससे आज मै कृतार्थ हुआ हु. मुझे कुछ भी लेना नहीं है. आज आप राजाधिराज होकर पधारे नहीं है. तपस्वी होकर पधारे तपस्वी के पास मै कुछ लेता नहीं , जैसे आज मैंने आप को गंगा पार कराई, आप भी मुझे भवसागर पार करवाना.

प्रभु जी ने कहा 'भाई मै तुझे मजूरी नहीं देता, प्रेम से अपना प्रसाद देता हु प्रसाद तो अवश्य लेना चाहिए, प्रसाद लेने में तुम मना करते हो यह ठीक नहीं. इसको प्रसाद मानकर ही तुमको लेना है ..

केवट ने हाथ जोड़कर कहा, महाराज! आपकी प्रसाद देने की इच्छा हो तो समय आवे तब दीजियेगा, मै मना नहीं करूँगा. मेरे मालिक आज वन में पधारे है, इसलिए आज मुझे प्रसाद भी लेना नहीं, मेरी ऐसी भावना है की आप चौदह वर्ष का वनवास सुख-रूप परिपूर्ण को और सीता जी के साथ आप अयोध्या के सिंहासन पर विराजे. आपका राज्याभिषेक हो, उस समय इस गरीब को जो कुछ भी आप देंगे , मै तुरंत ही सिर चढ़ाकर लूँगा.

सो प्रसादु मै सिर धरि लेवा

परन्तु आज तो मै प्रसाद भी नहीं लूँगा..

माताजी की आँखे सजल हुई, उनका हृदय द्रवित हो गया, कैसा इसका ह्रदय है? कैसी इसकी भावना है, की श्री सीताराम जी सुवर्ण-सिंहासन पर विराजे और मै दर्शन करू

रामायण में लिखा है की चौदह वर्ष का वनवास पूरा होने के पश्चात् श्री सीताराम जी पुष्पक विमान में बैठकर वापिस अयोध्या पधारे. अयोध्या में जिस दिन पधारे वह मिति वैशाख सुदी पंचमी थी. लोगो ने बहुत आग्रह किया की वैशाख सुदी सप्तमी के दिन ही राज्याभिषेक कर दिया जाए, इसलिए श्री राम जी आये और तुरंत ही दो दिनों में उनका राज्याभिषेक हो गया. इतने थोड़े से समय के कारन राज्याभिषेक - प्रसंग से पहले केवट आ नहीं पाया. राज्याभिषेक का भारी दरबार भरा हुआ है. अनेक राजा लोग आये हुए है, अनेक सेवक और भारी प्रजाजन भी वहा है, अत्यंत भीड़ हो रही है. श्री सीतारामजी सुंदर सिंहासन के उपर विराजे हुए है, सब लोग श्री राम जी का दर्शन कर रहे है. परन्तु राम जी की आँखे किसी को ढूंढ रही है. श्री राम जी चारो तरफ देख रहे है. सीता जी ने पूछा आप किसको देख रहे है? श्री राम जी ने कहा 'यह सब मेरे दर्शन करने आये है, परन्तु जिसके दर्शन की मेरी इच्छा है वह दीखता नहीं '

सीता जी ने पूछा 'ऐसा कौन है जिसके दर्शन की आपको इच्छा है

प्रभु ने कहा 'अपने मित्र केवट को देखने की मेरी इच्छा है. उसने कहा था की राज्याभिषेक होगा तब मै प्रसाद लूँगा

केवट मीत कहे सुख मानत

केवट को मित्र कहने में रामजी को सुख होता है. आज रामजी को केवट याद आ रहा है. राज्याभिषेक के अतिशय सुखमय वातावरण में भी रामजी केवट को भूले नहीं. जीवन का स्वभाव है की अतिशय सुख में सब कुछ भूल जाता है. श्री राम अतिशय सुख में भी सावधान है

श्री रामचंदर जी ने जगत को ज्ञान दिया की दुःख में किसी को यदि थोडा पानी भी दिया हो तो उसको कभी भूलना नहीं , किसी ने थोड़ी भी सेवा की है तो रामजी भूलते नहीं. अपकार को भूल जाते है , प्रभु अतिशय सरल है. जीव बारम्बार पाप करता है परन्तु परमात्मा उसको भूल जाते है. किसी का उपकार भूलना नहीं और किसी का अपकार याद रखना नहीं . तुम साधू-संत ना बन सको तो कोई बाधा नहीं परन्तु ह्रदय सरल रखना

राज्याभिषेक होने के उपरांत प्रभु ने एक - एक का सम्मान किया , केवट वहा नहीं था, इसलिए प्रभु ने गुह राजा को आज्ञा दी 'तुम्हारे गाव के केवट के लिए यह प्रसाद तुम ले जाना' प्रभु ने केवट के लिए प्रसाद भेजा , स्वर्ण -वस्त्र और आभुष्ण भी भेजे, श्री राम जी के समान कोई हुआ नहीं.

बोलिए जय श्री राम
पवन पुत्र हनुमान की जय
जय माता दी जी








याद करता है मुझे जो मन लगा : Yaad Karta hai Mujhe jo Man Lga, By Sanjay Mehta Ludhiana

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

सुलोचना की कथा : Sulochna ki katha by sanjay mehta ludhiana

सुलोचना की कथा श्री राम -रावण का भयंकर युद्ध चल रहा है. इंदरजीत ने रावण से कहा कि मै शत्रुओ का संहार करूँगा. रावण को हिम्मत बंधाकर इंदरजीत युद्ध करने गया. इंदरजीत और लक्ष्मण भयंकर युद्ध हुआ. युद्ध में लक्ष्मण जी ने इंदरजीत कि भुजा का छेदन किया. वह भुजा इंदरजीत के आँगन में जा पड़ी. इंदरजीत का छिन्न मस्तक उठाकर वानर श्री राम जी के पास ले गए. इंदरजीत कि पत्नी सुलोचना महान पतिव्रता स्त्री थी . आँगन में आये पतिदेव के कटे हुए हाथ को देखकर रोने लगे "ये युद्ध करने रणभूमि गए हुए है. मैंने यदि पतिव्रत धर्म बराबर पालन किया है तो यह हाथ लिखकर मुझको बतावे कि क्या हुआ है" तब हाथ ने लिखा "लक्ष्मण जी के साथ युद्ध करते हुए मेरा मरण हुआ है. मै तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हू" सोलोचना ने सतीधर्म के अनुसार अग्नि में प्रवेश करने का निश्चय किया सुलोचना रावण का वन्दन करने गई और कहा कि मुझे अग्नि में प्रवेश करना है , आप आज्ञा दे उस समय रावण पुत्र - वियोग में रो रहा था. इंदरजीत जैसे अप्रितम वीर युवा पुत्र कि मृत्यु हो चुकी है और अभी पुत्रवधू अग्नि में प्रवेश करने कि आज्ञा मांगती है . रावण का हृदय अतिशय भर आया. उसने सुलोचना से कहा "पुत्रि! मै तुमसे और कोई बात तो कहता नहीं, अग्नि में प्रवेश करने से तुम्हारा मरण मंगलमय होगा परन्तु तुम एक बार रामजी के दर्शन करो, रामजी का वंदन करो. तुम्हारा जीवन और मरण दोनों सुधरेंगे सुलोचना अत्यंत सुंदर थी. अत्यंत सुंदर पुत्रवधू को कट्टर शत्रु के पास जाने के लिए रावण ने कहा. उससे सुलोचना को बहुत आश्चर्य हुआ. उसने रावण से कहा. "आप मुझे शत्रु के घर भेजते है? वहा मेरे साथ अन्याय हुआ तो ?" रावण ने कहा "मैंने रामजी के साथ वैर किया है, परन्तु रामजी मुझे शत्रु नहीं मानते. " रावण का रामजी के प्रति कितना विश्वास है? जवान योद्दा वीर पुत्र युद्ध में मृतक हुआ है. और उस समय रावण रामजी के प्रशंसा कर रहा है. पुत्र-वियोग मे रामजी कि आहुति कर रहा है. उसने कहा "मुझे विश्वास है कि राम जी के दरबार मे अन्याय होता नहीं. रामजी तुझे माता समान मानकर तुझको सम्मान देंगे. तुम्हारी प्रशंसा करेंगे. जहा एक्पत्नीव्रतधारी रामजी है, जहाँ जितेन्द्रिय लक्ष्मण जी है, जहाँ बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी विराजमान है, उस राम दरबार मे अन्याय नहीं. मेरा एसा विश्वास है कि रामजी के दर्शन से ही जीवन सफल होता है. अग्नि में प्रवेश करने के पहले रामजी के दर्शन कर लो अतिसुंदर पुत्रवधू को श्री राम के पास जाने कि आज्ञा रावण देता है. सुलोचना रामचंदर जी के पास जाती है. प्रभु ने सुलोचना कि प्रशंसा कि है और कहा है कि यह दो वीर योदाओ के बीच का युद्ध नहीं था. ये दो पतिव्रता स्त्रियों के बीच का युद्ध था. लक्ष्मण कि धर्म पत्नी उर्मिला महान पतिव्रता है और यह सुलोचना भी महान पतिव्रता है. यह लक्ष्मण और इंदरजीत के मध्य का युद्ध नहीं था. उर्मिला और सुलोचना के मध्य का युद्ध था. दो पतिव्रताओ का युद्ध था. सुग्रीव ने पूछा कि महाराज! सुलोचना महान पतिव्रता है, ऐसा आप जोर देकर वर्णन कर रहे है तो फिर उसके पति का मरण क्यों हुआ? रामजी ने कहा - 'सुलोचना के पति को कोई मार नहीं सकता था. परन्तु उर्मिला कि जीत हुई. उसका एक ही कारण है कि सुलोचना के पति ने परस्त्री में कुभाव रखनेवाले रावण कि मदद कि और उर्मिला के पति परस्त्री में माँ का भाव रखनेवाले के पक्ष में थे. इससे उर्मिला का जोर अधिक था. नहीं तो सुलोचना के पति को कोई मार नहीं सकता था. सुलोचना को रामदर्शन करने में आनंद हुआ. प्रभु ने उसके पति का मस्तक उसको दिया. पति देव के मस्तक को देखकर सुलोचना रोने लगी. रामजी को दया आयी, रामजी ने कहा "बेटी! रोओ नहीं, तू हमारी पुत्रि है. तेरी इच्छा हो तो तेरे पति को जीवित कर दू. एक हजार वर्ष कि आयु दे दू. तुम लंका में आनद से राज्य करो. मै यही से वापिस लौट जाऊ, तू रोती है वह मुझे तनिक भी सहन नहीं . सुलोचना को आश्चर्य हुआ. लोग रामजी के विषय में जो वर्णन करते है वह बहुत ही सामान्य करते है. राक्षसों को भी रामजी भले लगते है. रामजी का बखान करते है, तब फिर देवता और ऋषि रामजी का बखान करे, इसमें कोई आश्चर्य नहीं, मै संजय मेहता कैसे उन का बखान कर सकता हु. रामजी अतिशय सरल है, जय श्री राम जी बोलिए जय माता दी जी जय श्री राम जी जय माँ वैष्णो रानी जय माँ राज रानी जय माता दी , जय माता दी , जय माता दी

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

भगवान के दर्शन: Bhagwan ke Darshan By Sanjay Mehta Ludhiana

मंदिर में भगवान के दर्शन करो. ठाकुर जी के सन्मुख खड़े होकर ऐसी भावना करो के ये मूर्ति नहीं, साक्षात भगवान विराजे है. अपने परमात्मा के दर्शन कर रहा हु, अपने मालिक की मै वंदना कर रहा हु. ठाकुर जी की आँखों में प्रेम भरा हुआ है. ठाकुर जी मुझे प्रेम से देख रहे है, मुझे देखकर मेरे भगवान (होंठो) में धीरे- धीरे हंस रहे है. आज मेरे मालिक बहुत प्रसन्न दिखलाई देते है , अब मै भगवान का हो गया हु, मै वैष्णव हो गया हु, मेरे भगवान की मेरे उपर बहुत कृपा हुई, जिससे मै सब छोड़कर रामकथा - श्रवण करने बैठ सका हु, आज मेरे प्रभु ने मुझे यह सुयोग दिया है, मेरे प्रभु के मेरे उपर अनंत उपकार है. इस रीति से परमात्मा के उपकारों का स्मरण करते - करते दर्शन करो. दर्शन करने मे भगवान के प्रति ह्रदय थोडा पिघले , आँख सजल होवे तो दर्शन मे आनंद आवे बोलिए जय माता दी जी जय श्री राधे जय श्री ठाकुर जी

पुण्डरीक की कथा : Pundreek ki katha by sanjay mehta ludhiana

पुण्डरीक की कथा माता पिता की सेवा, महान पुण्य है. अनेक यज्ञो के करने वाले को जो पुण्य नहीं मिलता वह वृद्ध माता - पिता की सेवा करने वाली संतान को अनायास ही प्राप्त हो जाता है. माता - पिता की अनन्य भाव से सेवा करने वाले के उपर परमात्मा बहुत कृपा करते है. इनके घर प्रत्यक्ष पधारते है . पुण्डरीक की कथा आप सब जानते हो. पुण्डरीक ने प्रभु की सेवा नहीं की थी. ग्रंथो में लिखा है की पुण्डरीक ने परमात्मा का स्मरण किया था . प्रभु की सेवा नहीं की थी. पुण्डरीक स्मरण श्री कृष्ण का करता था और सेवा माता - पिता की करता था. पुण्डरीक भगवान के दर्शन करने नहीं गया, पुण्डरीक के दर्शन करने भगवान स्वयं उनके घर पधारे थे. पुण्डरीक की मात-पिता की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष द्वारिकानाथ पुण्डरीक के घर आये थे. पुण्डरीक उस समय माता - पिता की सेवा कर रहे थे. प्रभु ने कहा की मै आया हु. पुण्डरीक ने कहा 'महाराज, मै आपकी वंदना करता हु. इस समय मै अपने माता - पिता की सेवा मै व्यस्त हु. माता - पिता की सेवा के फलस्वरूप आप मिले हो, इसलिए माता की सेवा प्रथम है. आप तनिक बाहर खड़े रहे. माता - पिता की सेवा करनेवाले में इनती शक्ति आती है. की वह इश्वर को भी खड़े रहने के लिए कह सकता है. प्रभु ने थोड़ी परीक्षा की. पुण्डरीक से बोले. 'अनंतकोटीब्रह्मांड के अधिनायक लक्ष्मी के पति तेरे घर आये है.' पुण्डरीक ने कहा ' आप पधारे, यह बहुत अच्छी बात है , मै आपका वंदन करता हु परन्तु इस समय आपकी सेवा करने की मुझे फुर्सत नहीं प्रभु ने कहा ' तू मेरी सेवा करता नहीं तो मै यहाँ से चला जाऊ ? पुण्डरीक ने कहा ' आपकी मर्जी , भले ही आप जाओ. पुण्डरीक को विश्वास है, के मैंने माता - पिता की सेवा छोड़ी नहीं, मै माता - पिता की सेवा करता हु. इस लिए भगवान भले ही चले जाये, परन्तु ठाकुर जी को वापिस यही आना ही पड़ेगा. पुण्डरीक ने ठाकुर जी को उत्तर दिया ' भले ही आप जाओ, परन्तु आपको वापिस यही आना पड़ेगा' श्री कृष्ण जगत का आकर्षण करते है, परन्तु माता-पिता की सेवा करने वाला तो परमात्मा को आकर्षित करता है . और कहता है 'आज जाओ तो फिर वापिस आना पड़ेगा' प्रभु तो भक्ति के अधीन है. पुण्डरीक ने प्रभु को खड़े रहने के लिए एक ईट दे दी थी. भगवन ईट के ऊपर खड़े रहे और पुण्डरीक की प्रतीक्षा करते रहे. पुण्डरीक ने माता - पिता की सेवा का काम छोड़ा नहीं, प्रतीक्षा करते हुए खड़े रहने से भगवान को थकान हुई तो कमर पर हाथ रखना पड़ा, आज भी पणढरपुर में पांडूरंग भगवान कमरपर हाथ रखे हुए ईट पर खड़े है, माता - पिता की सेवा की यह महिमा है ... जय माता दी जी बोलिए सचिया ज्योत वाली माता तेरी सदा ही जय जैकारा मेरी माँ वैष्णो रानी का बोल साचे दरबार की जय जैकारा मेरी माँ राज रानी का बोल साचे दरबार की जय