रविवार, 30 दिसंबर 2012

हमारे भारत में अनेक पवित्र तीर्थ है : Sanjay Mehta Ludhiana









हमारे भारत में अनेक पवित्र तीर्थ है पुष्कर प्रयाग, काशी, अयोध्या चित्रकूट, वृन्दावन आदि। क्षेत्र में और तीर्थ में थोडा भेद है। जल प्रधान तीर्थम-स्थल प्रधान क्षेत्रम - जहाँ ठाकुरजी का स्वरूप मुख्या है, उस स्थान को क्षेत्र कहते है, और जहाँ जल देवता का प्राधान्य होता है, उसे तीर्थ कहते है, पुष्करराज क्षेत्रराज है, साक्षात ब्रह्माजी महाराज वहां प्रकट-प्रत्यक्ष विराजमान है। तीर्थो का राजा प्रयाग है, जहा गंगाजी, यमुनाजी और सरस्वती का संगम है।

काशी ज्ञान-भूमि है, अयोध्या वैरग्य भूमि है, वृन्दावन प्रेमभुमि है, वृन्दावन के कण -कण में श्रीकृष्ण-प्रेम भरा है। काशी ज्ञान-भूमि है। काशी में रहकर गंगा-स्नान करने वाले, पवित्र जीवन व्यतीत करने वाले की बुद्धि में ज्ञान-स्फुरण होता है, भीतर से प्रकट होने वाला ज्ञान सदैव रहता है
अयोध्या, चित्रकूट वैरग्य भूमि है। विरक्त संतो के दर्शन अयोध्या में, चित्रकूट में होते है, आज अनेक भजनानंदी साधू अयोध्याजी में, चित्रकूट में रहते है, चित्रकूट के संतो का नियम है।प्राण जाने पर भी मानव से कुछ ना मांगना। फटी धोती पहनना, बहुत भूख लगने पर सत्तू खाना तथा सारा दिन सीताराम-सीताराम जप करना, वे आपके सामने नहीं देखंगे। हम किसी से मांगते नहीं है, ऐसी उनकी भावना रहती है, श्रीसीताजी हमारा पोषण कर रही है, वे हमें बहुत देती है। हम किसी से मांगने लगे तो माँ नाराज हो जाएगी। मेरा बेटा , होकर जगत से भीख मांगता है, इससे मानव से माँगना नहीं है। विरिक्त साधू अयोध्या, चित्रकूट में विराजते है, चित्रकूट वैराग्य भूमि है।
नर्मदा तट तपोभूमि है, तपस्वी महापुर्ष नर्मदा के तट पर भगवन शंकर की स्थापना करके तप करते है, व्रन्दावन प्रेम भूमि है। श्रीकृष्ण-प्रेम बढ़ाना है तो महीने दो महीने तक वृन्दावन में जाकर रहिये, प्रेमधाम वृन्दावन का वर्णन कौन कर सकता है?जहाँ श्री कृष्ण की नित्य लीला है, श्री बालकृष्णलाल का बाल रूप है, वृन्दावन में आज भी रास होता है। रासलीला नित्य है, वृन्दावन में श्रीकृष्ण का अखंड निवास है
कभी जाते है तो याद रखकर दर्शन करिए वृन्दावन में सेवाकुंज्ज है, और सेवाकुंज्ज में नित्य रास होते है। आप दिन में दर्शन करने जाते है, तब वहां बहुत से बंदर देखेंगे। अंधकार हो जाने पर वहां कोई नहीं रह सकता है और अगर कोई रह जाये तो वह पागल हो जाता है।
जय श्री कृष्णा
जय माता दी जी
हर हर महादेव
जय माँ राज रानी


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Sanjay Mehta









शनिवार, 29 दिसंबर 2012

अष्टनिकुंज Ashtnikunj : Sanjay Mehta Ludhiana








व्रज की एक - एक वस्तु श्रीकृष्ण प्रेम को जाग्रत करती है। व्रज परमात्मा का स्वरूप है, वृन्दावन प्रेम भूमि है। श्रीराधा की आठ सखियाँ है, और श्रीधाम वृन्दावन में एक - एक सखी की निकुंज है- अष्टनिकुंज

1. विशाखाजी का चन्द्र सरोवर
2. चम्पकलताजी की श्रीसघन कन्दरा
3. पद्माजी का श्रीअप्सरा कुण्ड
4. भामाजी की श्रीकदम खंडी
5. सुशिलाजी की श्रीरूद्रकुण्ड
6. इंद्रसहचरी की श्रीमानसी गंगा
7. चन्द्रभागाजी का श्री सुरभि कुण्ड और
8. ललिताजी का श्री बिलछु कुण्ड
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Sanjay Mehta







देवी के नो अवतारों की कथा Devi ke 9 Avtaro Ki Katha : Sanjay Mehta Ludhiana








देवी के नो अवतारों की कथा

1. महाकाली

एक बार जब पूरा संसार प्रलय से ग्रस्त हो गया था। चारों और पानी ही पानी दिखाई देता था। उस समय भगवान् विष्णु की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ। उस कमल से ब्रह्मा जी निकले इसके अतिरिक्त भगवान नारायण के कानों में से कुछ मैल भी निकला, उस मैल से कैटभ और मधु नाम के दो दैत्य बन गए। जब उन दैत्यों ने चारो और देखा तो ब्रह्मा जी के अलावा उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया ब्रह्माजी को देखकर ये दैत्य उनको मारने दौड़े। तब भयभीत हुए ब्रह्माजी ने विष्णु भगवन की स्तुति की।
ब्रह्मा जी की स्तुति से विष्णु भगवान् की आँखों से जो महामाया योगनिन्द्रा के रूप में निवास करती थी। वह लोप हो गई। और भगवान् विष्णु जी की नींद खुल गई। उनके जागते ही वे दोनों दैत्य भगवान् विष्णु से लड़ने लगे इस प्रकार पांच हजार वर्ष तक युद्ध चलता रहा अंत में भगवान् की रक्षा के लिए महामाया ने असुरो की बुद्धि को बदल दिया। तब वे असुर विष्णु भगवन से बोले - हम आपके युद्ध से प्रसन्न है जो चाहो वर मांग लो। भगवान् ने मौका पाया और कहने लगे। यदि हमें वर देना है तो यह वर दो कि दैत्यों का नाश हो। दैत्यों ने कहा - एस ही होगा ऐसा कहता ही महाबली दैत्यों का नाश हो गया। जिसने असुरों की बुद्धि को बदला था। वह 'महाकाली थी'
जय माँ महाकाली

2. महालक्ष्मी


एक समय महिषासुर नमक एक दैत्य हुआ। उसने समस्त राजाओं को हराकर पृथ्वी और पाताल पर अपना अधिकार जमा लिया। जब वह देवताओ से युद्ध करने लगा तो देवता उससे युद्ध में हारकर भागने लगे। भागते-भागते वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उस दैत्य से बचने के लिए स्तुति करने लगे। देवताओं की स्तुति करने से भगवान् विष्णु और शंकर जी जब प्रसन्न हुए। तब उनके शरीर से एक तेज निकला, जिसने महालक्ष्मी का रूप धराण कर लिया, इन्ही महालक्ष्मी ने महिषासुर दैत्य को युद्ध में मारकर देवताओं का कष्ट दूर किया
जय माँ महालक्ष्मी


3. महासरस्वती

एक समय शुम्भ-निशुम्भ नाम के दो दैत्य बहुत बलशाली हुए थे उनसे युद्ध में मनुष्य तो क्या देवता तक हार गए जब देवताओ ने देखा कि अब युद्ध में नहीं जीत सकते तब वह स्वर्ग छोड़कर भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे उस समय भगवान् विष्णुके शरीर में से एक ज्योति प्रकट हुई जो कि महासरस्वती थी महासरस्वती अत्यंत रूपवान थी। उनका रूप देखकर वे दैत्य मुग्ध हो गए और अपना सुग्रीव नाम का दूत उस देवी के पास अपनी इच्छा प्रकट करते हुए भेज उस दूत को देवी ने वापिस कर दिया इसके बाद उन दोनों ने देवी को बलपूर्वक लाने के लिए सेनापति धूम्राक्ष को सेना सहित भेज, जो देवी द्वारा सेना सहित मार दिया गया इसके बाद रक्तबीज लड़ने आया, जिसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से एक वीर और पैदा होता था वह बहुत बलवान था। उसे भी देवी ने मार गिराया अंत में शुम्भ-निशुम्भ स्वयं दोनों लड़ने आये और देवी के हाथों मारे गए।
अब बोलिए जय माँ महासरस्वती की
जय माँ राज रानी की

4. योगमाया --


जब कंस ने वासुदेव-देवकी के छ: पुत्रो का वध कर दिया था और सातवे गर्भ में शेषनाग बलराम जी आये, जो रोहिणी के गर्भ में प्रविष्ट होकर प्रकट हुए, तब आठवां जन्म कृष्ण जी का हुआ। साथ - साथ गोकुल में यशोदा जी के गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ। जो वासुदेव जी के द्वारा कृष्ण के बदले मथुरा में लाई गई थी।
जब कंस ने कन्या-स्वरूप उस योगमाया को मारने के लिए पटकना चाहा तो वह हाथ से छुट गई और आकाश में जाकर देवी का रूप धारण कर लिया। आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर आदि शक्तिशाली असुरों का संहार किया
अब बोलिए जय माँ योगमाया जी की
जय माँ राजरानी की

5. रक्त-दंतिका

एक बार वैप्रचित्ति नाम के असुर ने बहुत से कुकर्म करके पृथ्वी को व्याकुल कर दिया। उसने मनुष्य ही नहीं बल्कि देवताओ तक को बहुत दुःख दिया। देवताओ और पृथ्वी की प्रार्थना पर उस समय देवी ने रक्त-दंतिका नाम से अवतार लिया और वैप्रचित्ति आदि असुरों का मान मर्दनकर दाल। भयंकर दैत्यों का भक्षण करते समय देवी के दांत अनार के फुल के समान लाल हो गए। इसी कारण से इनका नाम रक्त-दन्तिका विख्यात हुआ।

अब कहिये जय माता दी
जय माँ रक्त-दन्तिका
जय माँ राज रानी की

6. शाकुम्भरी


एक समय पृथ्वी पर लगातार सौ वर्षो तक पानी की वर्षा ही नहीं हुई। इस कारण चारो और हा-हाकार मच गया। सभी जीव भूख और प्यास से व्याकुल हो मरने लगे। उस समय मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की। तब जगदम्बा ने शाकुम्भरी नाम से स्त्री रूप में आवतार लिया और उनकी कृपा से जल की वर्षा हुई, जिससे पृथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान प्राप्त हुआ। वृष्टि ना होने के पहले तक देवी ने प्राणों की रखा में समर्थ शाकों द्वारा सम्पूर्ण जगत का भरन-पोषण किया, जिससे 'शाकुम्भरी' नाम प्रसिद्ध हुआ।
अब कहिये जय माता दी
जय माँ शाकुम्भरी देवी
जय माँ राज रानी

7. श्री दुर्गा


एक समय भारतवर्ष में दुर्गम नाम का राक्षस हुआ उसके डर से पृथ्वी ही नहीं, स्वर्ग और पाताल में निवास करने वाले लोग भयभीत रहते थे। ऐसी विपति के समय ने भगवान् की शक्ति ने दुर्गा या दुर्गसेनी के नामसे अवतार लिया और दुर्गम राक्षस को मारकर ब्राह्मणों और हरी-भक्तो की रक्षा की। दुर्गम राक्षस को मारने के कारन ही तीनो लोकों में उनका नाम दुर्गा प्रसिद्ध हो गया।
अब कहिये जय माता दी
जय माँ दुर्गा देवी की
जय माँ राज रानी

8. भ्रामरी

एक बार महात्याचारी अरुण नाम का एक असुर पैदा हुआ। उसने स्वर्ग में जाकर उपद्रव करना शुरू कर दिया। देवताओं की पत्नियों का सतीत्व नष्ट करने की कुचेष्टा करने लगता अपने सतीत्व की रक्षा के लिए देव पत्नियों ने भौरों का रूप धारण कर लिया और दुर्गा देवी की प्रार्थना करने लगी। देवी-पत्नियों को दुखी जानकार माता दुर्गा ने भ्रामरी का रूप धारण करके उस असुर को उसकी सेना सहित मार दाल और देव-पत्नियों के सतीत्व की रक्षा की
अब कहिये जय माता दी
जय माँ भ्रामरी देवी
जय माँ राज रानी

9. चण्डिका या चामुण्डा

एक बार पृथ्वी पर चण्ड -मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए। वे दोनों इतने बलवान थे कि सारे संसार में अपना राज्य फैला लिया और स्वर्ग के देवताओं को हराकर वहां भी अपना अधिकार जमा लिया। इस प्रकार देवता बहुत दुखी हुए और देवी की स्तुति करने लगे। तब देवी चण्डिका के रूप में अवतरित हुई और चंड-मुण्ड नामक राक्षसों को मारकर संसार का दुःख दूर किया। देवताओं का गया स्वर्ग पुन: उन्हें दिया। इस प्रकार चारों और सुख का राज्य छा गया। चण्ड -मुण्ड का वध करने के कारण इस अवतार में देवी को चामुण्डा और चण्डी कहा गया
अब कहिये जय माता दी
जय माँ चामुण्डा
जय माँ राज रानी





जय माँ दुर्गे
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Sanjay Mehta







मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

महामाया वैष्णवी - शक्ति की स्तुति: Mahamaya Vaishnvi Shakti Ki Stuti : Sanjay Mehta Ludhiana








महामाया वैष्णवी - शक्ति की स्तुति।।।

तुम अनंत बल सम्पन्न वैष्णवी शक्ति हो। इस विश्व की कारणभूता परामाया हो। देवि ! तुमने इस समस्त जगत को मोहित कर रखा है तुम्ही प्रसन्न होने पर इस पृथ्वी पर मोक्ष की प्राप्ति कराती हो। देवि ! सम्पूर्ण विध्याए तुम्हरे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप है। जगत में जितनी स्त्रिया है, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ है। जगदम्बे ! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है। तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परावाणी हो।
जय माता दी जी
जय माँ दुर्गे
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Sanjay Mehta









सोमवार, 17 दिसंबर 2012

प्राचीन गुफा में मिलने वाले अन्य धार्मिक चिन्हों के दर्शन: Sanjay Mehta Ludhiana








प्राचीन गुफा में मिलने वाले अन्य धार्मिक चिन्हों के दर्शन:-


गुफा में प्रवेश द्वारा अत्यंत संकरा है। आगे बढ़ने पर चरणगंगा के जल की शीतल धारा में चलते हुए धीरे -धीरे अग्रसर होना पड़ता है। गुफा का मार्ग भी अत्यंत संकरा और कठिन है। यदि बिजली अथवा अन्य रौशनी ना हो तो उसमे कई यात्री, विशेषत: बाल यात्री, बेचैनी अनुभव-करने लगते है। माता की कृपा से भजन-कीर्तन करते, जयकारे लगाते हुए यात्रियों की अंतहीन कतार आगे बढती रहती है। चरणगंगा की धारा के वाम भाग में एक प्रक्रितक शिलाखण्ड भी साथ-साथ आगे तक गया है। इस शिलाखण्ड पर क्रम से पहले पांडवों की प्रतीक पांच पिंडियाँ , फिर सप्तऋषियों की प्रतीक सात पिंडियों तथा इसके बाद एक प्राक्रतिक खम्भा बना है, जिसे प्रहलाद का तप्त स्तम्भ अथवा तत्ता थम्म कहते है। कुछ और आगे बढ़ने पर शेर का पंजा तथा शेर का मुख बना हुआ है। इस स्थान से कुछ थोडा सा आगे, जहाँ पर नई गुफा का द्वार है, गुफा की छत पर शेषनाग की प्राक्रतिक मूर्ति है। शेषनाग की आकृति , उसके अनेक मुख तथा अन्य छोटे-छोटे सांपों की आकृतियाँ आश्चर्य में डाल देने वाली है।
अब कहिये जय माता दी
फिर से कहिये जय माता दी
जय मेरी माँ राज रानी की
जय माँ दुर्गा देवी की
जय माँ वैष्णो देवी की
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Sanjay Mehta









शनिवार, 15 दिसंबर 2012

माता महासरस्वती की पिण्डी : Mata Mahasarawati Ki Pindi : Sanjay Mehta Ludhiana








माता महासरस्वती की पिण्डी

गुफा में तीसरी पिंडी महासरस्वती की है महाशक्ति के तीसरे प्रमुख रूप का नाम महासरस्वती है। परब्रह्म परमात्मा से सम्बन्ध रखने वाली यह वीणा की अधिष्ठात्री, कवियों की इष्ट देवी, शुद्ध स्त्वस्वरूपा और शान्तरुपिनी है
वाणी, विद्या बुद्धि और ज्ञान को प्रदान करने वाली भी यही देवी है। अत: वाणी में श्रेष्ठता विध्याओ और कलाओं में निपुणता, बुद्धि में विलक्षणता और घ्यान में विविधता के लिए इनकी कृपा आवश्यक है।
माँ सरस्वती का शरीर अत्यंत गौर वर्ण का है।
ये अत्यंत सुंदर और तेजस्वी है।
इनका शरीर तेज की आभा से इतना कान्तिमान रहती है कि करोड़ चंद्रमाओ की आभा भी उसके सामने तुच्छ प्रतीत होती है।
माता का मुख चन्द्रमा, नयन शरत्काल के खिले हुए कमलों के समान और दांत कुंद पुष्प की कलियों के समान है।
ये उज्ज्वल वस्त्र धारण करती है तथा विविध प्रकार के रत्नों से निर्मित अलंकारों से शोभायमान है। महासरस्वती श्रुतियों, शास्त्रों और सम्पूर्ण विधाये और कलाये इनका स्वरूप है, प्रत्येक मनुष्य को बुद्धि, विद्या, कविता करने की शक्ति, नाटक-उपन्यास और अन्य प्रकार की साहित्य रचना के लिए प्रतिभा, योग्यता और स्मरण-शक्ति इन्ही की कृपा से प्राप्त होती है।
अनेक प्रकार के सिद्धांत-भेदों और अर्थो की कल्पना शक्ति भी यही देने वाली है। इनकी कृपा से शास्त्र और ज्ञान सम्बन्धी भ्रम और संदेह मिट जाते है। कुछ व्यक्ति विद्वान बनकर नये-नये विचारों और नये-नये ग्रंथो की रचना में सफल होते है।
मनुष्य को स्मरण-शक्ति प्रदान करने वाली माता सरस्वती को स्मृति शक्ति, ज्ञानशक्ति और बुद्धि शक्ति कहा गया है, प्रतिभा और कल्पना शक्ति भी यही है।
इन्ही की दया से ब्रह्मा, शेषनाग, ब्रहस्पति, बाल्मीकि, व्यास आदि वेद -शास्त्र, स्मर्तियाँ इतिहास, पुराण और काव्य रचना में समर्थ हुए।
सरस्वती देवी के एक हाथ में पुस्तक और दुसरे हाथ में वीणा है, जो इनके विद्या और संगीत कला की देवी होने का संकेत देते है।
सभी प्रकार की विद्याओ , सभी प्रकार के गीत-संगीत, सभी प्रकार के न्रत्य और नाटको में आराधना करने पर वे सफलता प्रदान करती है। क्योकि सम्पूर्ण संगीत और लय तथा ताल का हेतु रूप-सौन्दर्य है।
ब्रेह्मस्वरुपा ज्योतिस्व्रुपा, सनातनी और सम्पूर्ण कलाओं की स्वामिनी होने के कारण माता महासरस्वती, ब्रह्मा , विष्णु , शिव आदि देवताओं और ऋषि-मुनि, मानव आदि से सुपूजित है।
श्रीहरि की प्रिय होने के कारण ये रत्ननिर्मित माला फेरती हुई श्रीहरि के नाम का जाप करती रहती है।
इनकी मूर्ति तपोमयी है।
तपस्या करने वाले अपने भक्त को ये तत्काल फल प्रदान करती है। सिद्धि विद्या सर्वागिणी होने के कारन ये सिद्धि देने वाली है।
अब बोलिए माँ सरस्वती की जय
जय माँ वैष्णो देवी की
जय माँ राजरानी की
जय माँ दुर्गा देवी की
हर हर महादेव

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Sanjay Mehta










शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

Durga Stuti : Sanjay Mehta Ludhiana










या देवी सर्व भुतेशु विस्नुमयेती सब्दिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु बुद्धि-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु सकती-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु क्संती-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु लज्जा-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु सन्ति-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु श्रद्धा-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु कांति-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु लक्ष्मी-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु दया-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
या देवी सर्व भुतेशु मात्र-रुपेना संस्थिता
नमस्तास्यी, नमस्तास्यी,
नमस्तास्यी नमो नमः
English Transcript
Ya Devi Sarva Bhuteshu Visnumayeti Sabdita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Buddhi-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Sakti-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Ksanti-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Lajjaa-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Santi-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Sraddha-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Kanti-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Lakshmi-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Daya-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
Ya Devi Sarva Bhuteshu Matr-Rupena Samsthita
Namastasyai, Namastasyai,
Namastasyai Namo Namaha
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Sanjay Mehta









गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

माता महाकाली की पिंडी : Mata Mahakli ki Pindi :Sanjay Mehta Ludhiana








माता महाकाली की पिंडी

गुफा में दूसरी पिंडी महाकाली की है। महाकाली महाशक्ति का प्रधान अंग है। शुम्भ और निशुम्भ के साथ होने वाले सहासमर के समय में ये भगवती दुर्गा के ललाट से प्रकट हुई थी।
भगवती दुर्गा का इन्हें आधा अंश माना जाता है।
गुण और तेज में ये दुर्गा के ही समान है।
इनका अत्यंत शक्तिशाली शरीर करोड़ो सूर्य के समान तेजस्वी है। सम्पूर्ण शक्तियों में ये प्रमुख है, और इनसे बढ़ कर कोई शक्तिशाली है ही नहीं
ये प्रयोग-स्वरूपिणी, सम्पूर्ण सिद्धि प्रदान करने वाली है। श्रीहरि के तुल्य है।
इनके शरीर का रंग काला है। और इतनी शक्तिमान है कि यदि ये चाहे तो एक ही समय में सारे विश्व को नष्ट कर सकती है
अपने मनोरंजन के लिए अथवा जनता को शिक्षा देने के विचार से ही ये संग्राम में असुरों के साथ युद्ध करती है, जो भी मनुष्य महाकाली भगवती की पूजा करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष तथा अन्य सांसारिक सम्पत्तियां प्राप्त होती है।
ब्रह्मादि देवता, मुनिगण और मानव सब इनकी उपासना करते है
महाकाल भगवन शिव का एक नाम है उनकी शक्ति होने के कारण इनको भी महाकाली कहा जाता है। ये देवी नीलकमल की भांति श्याम है .

चार हाथ, गले में मुंड-माला और चोला व्याघ्र के चर्म का है, इसके दांत लम्बे, जिह्वा चंचल, आँखे लाल, कान चौड़े तथा मुख खुला हुआ है।
भद्रकाली, शमशान काली, गुह्याकाली और रक्षाकाली आदि नामों से इनके अनेक रूप है। इनका एक अन्य प्रसिद्ध नाम चामुण्डा है। इन्होने असुरो के साथ होने वाले युद्ध में चंड -मुंड नामक दो महाअसुरों का संहार किया
अत: इनको चामुंडा भी कहा जाने लगा
माता महाकाली संसार की देवी है .
अधर्मी दुष्टों का संहार करके अपने भक्तो को अभय प्रदान करना इनका मुख्या धर्म है
अपने भक्तो के विघ्न , रोग, शोक, दुःख, भय आदि को ये दूर करती है।
माता महाकाली महातेजसिविनी है।
उनकी मूर्ति साक्षात वीरता, साहस, एश्वर्या, रूप, तेज और अलौकिक शक्ति की प्रतीक है। उनके दस हाथो में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ , तिशुल, भूशुंडी, सिर और शंख है।
उनके तीन नेत्र है। सारे अंग आभुशनो से सुशोभित है। उनकी कांटी नीलमणि के समान है, वे सदा अपने भक्तो की संकटों से रक्षा करके भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है।
मधु-कैटभ द्वारा संकट ग्रस्त होने पर इन्होने ब्रह्मा और विष्णु को भयमुक्त किया था इनकी कृपा से मानव निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। अकाल मृत्यु नहीं होती और व्याधियाँ आक्रमण नहीं करती।

उसे ग्रह, भूत, प्रेत पिशाच आदि नहीं सता सकते जो मनुष्य भक्ति-भावना से माता महाकाली की उपासना करता है, उसके शत्रुओं का नाश होता है तथा उसे सौभाग्य, आरोग्य और परम मोक्ष की प्राप्ति होती है
बोलिए मेरी माँ काली की जय
बोलिया दुर्गा माँ की जय
बोलिए मेरी माँ राज रानी की जय
जय माता दी जी जय माता दी
हर हर महादेव

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बुधवार, 12 दिसंबर 2012

माता महालक्ष्मी की पिंडी: Mata Mahalakshmi Ki Pindi : Sanjay Mehta Ludhiana









माता महालक्ष्मी की पिंडी

डुग्गर के शतश्रंग पर्वत के त्रिकुट शिखर पर माता वैष्णो देवी विराजमान है। इस पर्वत की पवित्र गुफा में जो तीन पिंडियाँ है, उनमे मध्यवर्ती पिंडी माता महालक्ष्मी की है, और महालक्ष्मी विष्णु की शक्ति है। अत: इनका दूसरा नाम वैष्णवी भी है।
यह वैष्णवी पराशक्ति है
परमात्मा की और भी नानाविध शक्तियां है। इन अनेक शक्तियों में श्री विष्णु की अहन्त नाम की एक शक्ति है, वह महालक्ष्मी है।
एक स्थान पर स्वयं महालक्ष्मी ने इंद्र से कहा - "उस पारब्रह्म की, जो चन्द्रमा की चांदनी की तरह समस्त अवस्थाओ में साथ देने वाली परमशक्ति है, वह स्नान्तनी शक्ति मै ही हू . मेरा दूसरा नाम नारायणी भी है, मै नित्य, निर्दोष, सीमारहित कल्याण गुणों वाली नारायणी नाम वाली, वैष्णवी परासत्ता हु।
पुरातन शास्त्रों के अनुसार जो देवी परम शुद्ध सत्व-स्वरूपा है , उनका महालक्ष्मी है।
हजार पंखुड़ियों वाला कमल उनका आसन है। इनके मुख की शोभा तपे हुए स्वर्ण के समान है, और इनका रूप करोड़ों चन्द्रमाओं की कांति से सम्पन्न है।
माता महालक्ष्मी के मुख पर सदैव मुस्कान व्याप्त रहती है
सम्पत्तियों की इश्वरी होने के कारन अपने सेवकों को ये धन ऐश्वर्या , सुख, सिद्धि और मोक्ष प्रदान करती है। भगवन श्रीहरि की माया तथा उनके तुल्य होने के कारन इन्हें नारायणी कहा जाता है।
वैष्णवी और दुर्गा इनके दुसरे प्रसिद्ध और प्रमुख नाम है
जैसे नदियों में गंगा, देवताओं में श्रीहरि तथा वैष्णवों में शिव श्रेष्ठ स्वीकार किये गए है, उसी प्रकार देवी के सभी नाम रूपों में वैष्णवी नाम से प्रसिद्ध महालक्ष्मी श्रेष्ठ है।
माता महालक्ष्मी अत्यंत सुंदर, सयंमशील, शांत, मधुर और कोमल स्वभाव की है।
क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार आदि से रहित अपने भक्तों पर कृपा करते रहना और अपने स्वामी श्रीहरि से प्रेम करना उनका स्वभाव है, वे मधुर और प्रिय लगने वाले वंचन ही बोलती है।
कभी अप्रिय वचन नहीं कहती
वे कभी क्रोध और हिंसा नहीं करती
सारा संसार, सारी सम्पत्तियां इनके स्वरूप है। संसार में जितने भी प्रकार के अन्न, फल-फुल, वनस्पतियाँ आदि खाद्या पदार्थ है, जिससे प्राणियों के जीवन की रक्षा होता है, सब इनके ही रूप है।
जिस धन से मानव-मात्र का सांसारिक कार्य-व्यापार संचालित होता है, उसकी यह अधिष्ठात्री देवी है। लक्ष्मी से हीन, दरिद्र व्यक्ति का जीवन, जीते हुए भी मृत के समान होता है और जिस पर लक्ष्मी की कृपा होती है, वह सुखी और सम्मानित जीवन व्यतीत करता है।
जो लक्ष्मी से हीन है, वह भाई-बन्धुओं और मित्रो से हीन है। जो लक्ष्मी से युक्त है, वह भाई-बन्धुओं और मित्रो से घिरा रहता है। माता महालक्ष्मी की कृपा से ही मानव की शोभा होती है।
जिस पर इनकी कृपा हो जाये वह सुखी और निश्चित जीवन बिता सकता है, धर्म, काम और मोक्ष उसके लिए सुलभ हो जाते है।
ये शक्ति सबकी कारन रूप है। सर्वोच्च पवित्रता है वैकुण्ठ-लोक में अपने स्वामी श्रीहरि की सेवा में लीन रहती है। ये देवी वैकुण्ठ में महालक्ष्मी, क्षीरसागर में ग्रेहलक्ष्मी , व्यपिरकों के यहाँ पर व्यापार लक्ष्मी, ग्राम-ग्राम के ग्राम देवी तथा घरघर में महादेवी के रूप में रहती है .
संसार के सभी प्राणियों और वस्तुओं में ये शोभा के रूप में विद्यमान है, संसार में दृष्टिगोचर होने वाला सौन्दर्य, ऐश्वर्या और दिव्यता इनके ही कारण है।
माता महालक्ष्मी अत्यंत दयामयी और कृपामयी है। उन्हें अपने भक्त अत्यंत प्रिय है। इसलिए वे माता-पिता के समान उनका पालन करने के साथ-साथ उनके अभिलाषाये पूर्ण करती है।
जो लोग माता महालक्ष्मी की पूजा और ध्यान करते है, उनकी शरण में रहते है, उन पर कृपा करने के लिए वे सदा व्याकुल रहती है।
अब कही जय माता दी
माँ मेरी महालक्ष्मी आप सब पर अपनी कृपा करे
जय माँ दुर्गे , जय माँ राजरानी



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Sanjay Mehta









शनिवार, 8 दिसंबर 2012

परमात्मा श्रीकृष्ण का ध्यान Prmatma Shree Krishna ka Dhyaan : Sanjay Mehta Ludhiana









परमात्मा श्रीकृष्ण का ध्यान करने से मन शुद्ध होता है। एक स्थान पर बैठकर परमात्मा का ध्यान करते-करते, सेवा-स्मरण करते करते, जो प्रभु को प्रसन्न करता है, उसका मन धीरे-धीरे सिथर और शुद्ध होता है। जिसका मन शुद्ध हुआ है, जिसके भीतर से भक्ति का रंग लगा है, जिसको भक्ति में आनन्द आता है, वह व्यक्ति तीर्थयात्रा करने जाय या ना जाये-समान ही है .
तुलसी जब मन शुद्ध भयौ
तब तीर्थ तीर गयौ न गयौ
जिनके ह्रदय भक्ति रस में निमग्न है, वैसे वैष्णव जहाँ विराजमान होते है, वहाँ की भूमि को वे तीर्थ बना देते है, तीर्थो में बहुत भटकना अच्छा नहीं है, बहुत भटकने से मन चंचल होता है।
जय माता दी जी

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Sanjay Mehta











शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

माता के जयकारे : Mata ke jaikare : Sanjay Mehta Ludhiana









माता के जयकारे
प्रेम से बोलो जय माता दी
सारे बोलो जय माता दी
मिलके बोलो जय माता दी
जोर से बोलो जय माता दी
हंसके बोलो जय माता दी
शेरावाली जय माता दी
लाटां वाली जय माता दी
पर्वत वाली जय माता दी
आस पुजान्दी जय माता दी
बच्च्ड़े देंदी जय माता दी
अगले वी बोलो जय माता दी
पिछले वी बोलो जय माता दी
बाण गंगा जय माता दी
मन हो चंगा जय माता दी
आदिकुमारी जय माता दी
लगदी प्यारी जय माता दी
हाथी मत्था जय माता दी
पाप लत्था जय माता दी
विच गुफा दे - दर्शन माँ दे जय माता दी
शेर सवारी जय माता दी
लगदी प्यारी जय माता दी
जेडा भी दर तेरे आये जय माता दी
मन दियां मुरादाँ पाए जय माता दी
शेरावाली माता तेरी सदा ही जय
ज्योतां वाली माता तेरी सदा ही जय
जैकारा शेरावाली दा - बोल साचे दरबार की जय



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चरण पादुका मंदिर : Charan Paduka Mandir : Sanjay Mehta Ludhiana










चरण पादुका मंदिर -- इस स्थान पर रुक कर महाशक्ति देवी ने पीछे की और देखा था की भैरव जोगी आ रहा है या नहीं। रुकने से इस स्थान पर माता जी के चरण - चिन्ह बन गए। इसी कारण इस स्थान को चरण - पादुका पुकारा जाता है।
जय माता दी जी
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गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

बाण गंगा का मंदिर व् पुल : Sanjay Mehta Ludhiana









बाण गंगा का मंदिर व् पुल -- कन्या रूपी महाशक्ति जब उक्त स्थान से होकर आगे बढ़ी तो उसके साथ वीर लांगुर भी था , चलते - चलते वीर लांगुर को प्यास लगी तो देवी ने पत्थरों में बाण मारकर गंगा प्रवाहित कर दी और अपने प्रहरी की प्यास को त्रप्त किया। उसी गंगा में देवीने अपने केश धोकर संवारे इसलिए इसे बाण गंगा भी कहते है।

यह स्थान कटरा से 2 किलोमीटर और पिछले दर्शनी दरवाजा नमक स्थान से एक किलोमीटर है। एक पुल द्वारा इस गंगा को पार कर आगे बढ़ते है। समीप ही मंदिर है। अधिकांश लोग यहाँ स्नान भी करते है, यही से सीढियों वाला पक्का मार्ग भी आरम्भ हो जाता है। वास्तव में यहाँ से त्रिकुट पर्वत की कठिन चढ़ाई प्रारम्भ होती है।
अब कहिये जय माता दी

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बुधवार, 5 दिसंबर 2012

"माँ" Maa : Sanjay Mehta Ludhiana









"माँ" शब्द में कितना प्रेमामृत भरा हुआ है इसका वर्णन नहीं किया जा सकता पुत्र जब अपनी माँ को 'माँ' 'माँ' कहकर पुकारता है तब माता का ह्रदय प्रेम से भर आता है . ऐसे ही भक्तजन जब 'माँ' 'माँ' कहकर अपने उपास्य देव को पुकारते है तब उनके ह्रदय में एक दिव्या आनंद की धारा बहने लगती है। इसको सभी प्रत्यक्ष उपलब्ध कर सकते है। एक भक्त ने कहा है 'माता' मै तुम्हे माँ-माँ कहकर इतना पुकारता हु परन्तु तू अभी तक सामने नहीं आती। इसका क्या कारण है? 'माँ' शब्द मेरे ह्रदय को बहुत प्रिय है और मेरी माता को भी अत्यधिक प्रिय है , जब मै 'माँ' कहकर पुकारता था वह गद्गद हो जाती थी। माता! तुझको भी मालूम होता है 'माँ' शब्द अत्यन्त प्रिय है। इससे तू सोचती होगी की इस बच्चे के पास यदि मै प्रकट हो जाउंगी तो शायद यह 'माँ' की आवाज लगाना बंद कर देगा। शायद भय से और 'माँ' की आवाज सुनाने के लोभ से ही तू नहीं आती माँ। यह सब पुजारी के भाव है।
जय माता दी जी

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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

श्री रघुनाथ मंदिर : Sanjay Mehta Ludhiana










श्री रघुनाथ मंदिर : यह वैष्णो देवी यात्रा का सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं दर्शनीय मंदिर है राम यंत्र के आधार पर निर्मित इस मंदिर में लगभग सभी देवतओं के पन्द्रह विशाल मंदिर है महाराज रणवीर सिंह द्वारा बनवाया गया पुरे भारत में बेजोड़ मंदिर जम्मू में बस अड्डे के समीप ही स्थित है। कुछ यात्री वैष्णो देवी जाने से पहले तथा कई वापसी में भी यहाँ दर्शन करने आते है।इस मंदिर के परकोटे में 6 बड़े हाल है।जिनमे अनगिनत शालिग्राम संग्रहित है। मंदिर के पूजारियो के अनुसार नदी से निकले गए इस शालीग्रामों के गिनती 12.50 लाख है
जय माता दी जी

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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

शाकुम्भरी देवी का स्वरूप कैसा है? By Sanjay Mehta Ludhiana









शाकुम्भरी देवी का स्वरूप कैसा है?


शाकुम्भरी देवी के स्वरूप का विस्त्रत वर्णन श्री दुर्गा सप्तशती के अंत में "मूर्ति-रहस्य" के अंतर्गत मिलता है - उसके अनुसार - श्री शाकुम्भरी देवी के शरीर का रंग नीला है।। उसकी आँखे नील - कमल के समान है।। वे कमल पर बैठती है उनकी एक मुट्ठी में कमल का एक फूल रहता है जो कि भंवरो से घिरा रहता है। दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है। फुल, पल्लव, कंदमूल आदि अनेको फलों से युक्त, इच्छित अनेक रसों से परिपूर्ण एवं भूख-प्यास -मृत्यु-बुढ़ापा को दूर करने वाले अनेकानेक शाक-समूह से उनकी मुट्ठियाँ परिपूर्ण है (अर्थात यह सभी उनके हाथ में है ) वे परमेश्वरी अत्यंत तेजस्वी धनुष को धारण करती है। वे ही देवी शाकुम्भरी है। शताक्षी है, और दुर्गा नाम से भी वे ही कही जाती है। वे ही महान आपित्तियो और महाशोक को दूर करने वाली एवं दुष्टों का दमन करने वाली है। श्री शाकुम्भरी देवी की स्तुति, ध्यान, पूजा और नमस्कार करने वाला मनुष्य शीघ्र ही अन्न, जल और अमृतरूपी अक्षय फल भोगता है।।
अब कहिये जय माता दी
फिर से कहिये जय माता दी

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सोमवार, 26 नवंबर 2012

बालस्वरूप कृष्ण भगवन By Sanjay Mehta Ludhiana








यशोदा मैया का वात्सल्य भाव था मेरा लाल मेरा बच्चा है उसे चोरी करने की आदत पड़ रही है, यह अच्छा नहीं है।।। अभी दही-माखन की चोरी कर रहा है, बड़ा होने पर फिर पैसे की चोरी करेगा तो? उन्होंने लाला से कहा - लाला! आज मै तुझे सजा दूँगी। ऊखल पर चढ़ कर चोरी की थी, उससे यशोदा माँ ने निश्चेय किया कि लाला को मै ऊखल से बाँध दूँगी। यशोदा मैया लाला को बाँधने गयी। वे तो बालकृष्ण को बच्चा ही मान रही थी। गोकुल में तो कृष्ण बालक बन कर ही रहे श्री कृष्ण परमात्मा है। यशोदा मैया श्री बाल कृष्ण को लाल रस्सी से बाँधने का यत्न कर ही रही है, पर ऐश्वर्या शक्ति मानती है की श्री कृष्ण मेरे पति है, मेरे पति को कोई बाँध रहा है। मुझसे देखा नहीं जाता। सहन नहीं हो सकता
इससे ऐश्वर्या शक्ति रस्सी में प्रविष्ट होती है। वह रस्सी को छोटी कर देती है। जिस रस्सी से यशोदा मैया श्री कृष्ण को बाँधने जाती है, वह रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ती है। यशोदा मैया तीसरी रस्सी लेकर उसमे गाँठ लगाकर बाँध देती है, गोपी यशोदा मैया को समझाने लगती है - माँ आज तुम्हे क्या हो गया है? याद है, जब तुम्हारे पुत्र नहीं था, तब तुम रोती थी। तुमने अनेक देवों की मनौती मानी थी। तब कही यह पुत्र मिला है, सारे गाँव को यह प्राणों से भी अधिक प्यारा है। मेरे घर आकर वह अनेक बार उधम मचाता है। पर कभी भी उसे बाँधने का विचार मैंने नहीं किया है।। माँ! तुम्हे जरा भी दया नहीं आती क्या? यशोदा मैया आज आवेश में है
वे कहती है -- आप अपने घर जाइए मेरा लड़का है, मुझे जैसा उचित लगेगा, मै वैसा करुँगी। आपको चिंता , करने की जरूरत नहीं है, उसे बुरी आदते पड़ गई है। वह किसी की सुनता नहीं है, आज घर की सब रस्सी एकत्र करके भी मै इसे बांधुंगी . यशोदा जी रस्सी एकत्र करके लाला को बाँधने का प्रयत्न करती है, पर रस्सी दो अंगुल छोटी ही पड़ती है
श्री बाल कृष्ण मन में मुस्करा रहे है। मंद सिम्त उनके चेहरे पर है ..यशोदा मैया चिढती है, पांच साल का लड़का मुझ पर हंस रही है। कुछ हो, मै इसे अवश्य बांधुंगी। श्री बाल कृष्ण माँ को मना रहे है। 'माँ! अब मै कभी चोरी नहीं करूँगा। आज तू मुझे छोड़ दे।।
यशोदा माता कहती है - नहीं छोड्गी , मै तुम्हे बांधुंगी। यशोदा माता का दुराग्रह है, वैष्णव जब प्रेम से परमात्मा को बांधते है, तब यह माया के बंधन से छूटता है, यह जीव प्रेम से परमात्मा को जब तक नहीं बांधता तब तक माया इसे नहीं छोडती। तब तक माया जीव को बाँध कर रखती है। यशोदा जी को आज लाला को बांधना ही है।।
काल भी जिससे घबराता है, वह लाला आज डर रहा है, वह माता से कह रहा है माँ मुझे छोड़ दे। माँ कहती है - मै नहीं छोड्गी .. मै तुम्हे सजा दूँगी। लाला ने सोचा कि आँख में आंसू आ जाये और रोने लगु तो माँ को दया आ जाएगी और वह छोड़ देगी लाला ने रोने का यत्न किया। पर आँख से आंसू निकल ही नहीं रहे है। लाला आँखे मलने लगा। काजल आँख में लगा है, वही काजल कपोल पर आ गया। यशोदा माता देख रही है , आज मेरा बाल कृष्ण कैसा दीख रहा है। आज बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है मेरा कान्हा।। भीतर प्रेम उमड़ रहा है, पर माता बहार थोडा नाटक करती है। लाला से कहती है - तू बहुत ऊधम मचाता है। बहुत नटखट हो गया है। आज मै तुझे बांधुंगी , तुझे सजा दूँगी।
तू झूठा है, तेरा रोना भी झूठा है। मै तुझे जानती हु, मै तेरी माँ हु। संजय मेहता कहता है - आपका वह बालस्वरूप अभी भी मेरी दृष्टि से दूर नहीं हो रहा भगवान् . आपका बालस्वरूप अति सुंदर है


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रविवार, 18 नवंबर 2012

जय श्री राधे - लुका-छिपी का खेल : Sanjay Mehta Ludhiana









अरी सखी ! तू जानती है यह कौन जा रहा है? प्रलयकाल में सभी को पेट में रखकर शेषशय्या में शयन करने वाले आदि नारायण परमात्मा यही है।। प्रलयकाल में जीव माया के अंधकार में छिपा हुआ रहता है, सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान एक - एक जीव को खोज कर बाहर निकलते है और प्रत्येक के कर्म के अनुसार प्रत्येक को जन्म देते है, पर फिर प्रभु जगत में छिप जाते है। भगवान जीव से कहते है -- एक बार जब तुम छिप गए , तब मैंने तुम्हे ढूंढ कर बाहर निकाला । अब मै छिप जाता हु, तुम मुझे दूंढ लो। संसार की रचना करके परमात्मा जगत में छिप गए है, परमात्मा को ढूंढने का प्रयत्न करिये। लाला को लुका-छिपी का खेल बहुत पसंद है। श्री बालकृष्णलाल गोकुल में लुका-छिपी का खेल, खेल रहे है, बच्चे जब छिप जाते है, तब कन्हैया उन्हें खोजने जाते है और जब कभी कन्हैया छिप जाते है तब बच्चे उसे खोजने जाते है, यह जीव और इश्वर का खेल है ..
बोलिए जय श्री कृष्णा
जय माता दी जी
जय श्री राधे

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शनिवार, 17 नवंबर 2012

Jai Mata Di G : Sanjay Mehta Ludhiana












"हे जगज्जननी ! तुम्ही सनातन शक्ति हो माँ तुम्ही विश्व के अनन्त की मूलस्त्रोत हो, व्यक्त अनेक नामरुपो में तुम्हारी ही शक्ति अभिव्यक्त हो रही है माँ, तुम्हारी अविध्यशक्ति से मोहित होकर हम तुम्हे भूल जाते है और संसार के तुच्छ पदार्थो में सुख का अनुभव करने लगते है। परन्तु जब हम तुम्हारी पूजा करते है और तुम्हारी शरण आते है तब तुम हमें अज्ञान से एवं संसार की आसक्तियो से मुक्त कर देती हो और अपने बच्चो को शाश्वत सुख प्रदान करती हो माँ।
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