हनुमत हनुमत कब से पुकारू, दर्शन देवो आज
तेरे बिन नैया , कौन लगावे पार
हनुमत हनुमत कब से पुकारू, दर्शन देवो आज
लंका फूंकी, सेना फूंकी, कर दियो सारो नाश
रावण को भीषण समझावे, जप लो हरि का नाम
नहीं तो मिटा देंगे , जग से तेरा वो नाम
हनुमत हनुमत कब से पुकारू, दर्शन देवो आज
बाबा मेरा सबकी सुनता, करता सबसे प्यार
सच्चे मन से जो भी बुलावे, आता है हर बार
हरि की दया बिन, जीना बड़ा है बेकार
हनुमत हनुमत कब से पुकारू, दर्शन देवो आज
बूटी लेकर पल मे आये, किया था जग मे कमाल
मूर्छा टूटी जब लक्ष्मण की, राम हए हैरान
हनुमत ने देखो, कैसा किया कमाल
हनुमत हनुमत कब से पुकारू, दर्शन देवो आज
सच्ची भक्ति के ही कारण, सिने मे है राम
नहीं डरते वो दुश्मन से भी, कर गए सारे काम
अंजनी माँ के , लाडले हम हनुमान
हनुमत हनुमत कब से पुकारू, दर्शन देवो आज
बोलिए जय जय श्री राम
बोलिए जय जय हनुमान
बोलिए जय जय माँ
बोलिए जय माता दी जी
जय माँ राज रानी की
जय माँ वैष्णो रानी की जय
जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, उन्ही दिनों की यह घटना है नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक (ध्यानु भगत) एक हजार यात्रिओ सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था. इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियोने चांदनी चौक दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार मे ले जाकर ध्यानु भगत को पेश किया
बादशाह ने पूछा :- तुम इतने आदमियो को साथ लेकर कहाँ जा रहे हो?
ध्यानु ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया:- मै ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हु, मेरे साथ जो लोग है, वह भी माता जी के भगत है, और यात्रा पर जा रहे है.
अकबर ने सुनकर कहा:- यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा?
ध्यानु भगत ने उत्तर दिया:- महाराज! ज्वालामाई संसार की रचना एवं पालन करने वाली माता है! वे भगतो के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाए स्वीकार करती है तथा उनकी सब मनोकामनाए पूर्ण करती है. उनका प्रताप ऐसा है की उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है. हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते है
अकबर बादशाह बोले:- तुम्हारी ज्वालामाई इनती ताकतवर है, इसका यकीन हमें किस तरह आये? आखिर तुम माता के भगत हो, अगर कोई करिश्मा हमें दिखाओ तो हम भी मान लेंगे
ध्यानु ने नम्रता से उत्तर दिया:- श्री मान! मै तो माता का एक तुच्छ सेवक हु, मै भला कोई चमत्कार कैसे दिखा सकता हु?
अकबर ने कहा :- अगर तुम्हारी बंदगी पाक व् सच्ची है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी! अगर वह तुम जैसे भगतो का ख्याल ना रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत(भगती) झूठी है. इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दुबारा जिन्दा करवा लेना!
इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई
ध्यानु भगत ने कोई उपाए ना देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व् धड को सुरक्षित रखने की प्राथना की! अकबर ने ध्यानु भगत की बात मान ली! यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई.
बादशाह से विदा होकर ध्यानु भगत अपने साथियो सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ! स्नान-पूजन आदि करने के उपरान्त रात भर जागरण किया. प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानु ने प्राथना की - "हे मातेश्वरी! आप अन्तर्यामी है , बादशाह मेरी भगती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपया व् शक्ति से जीवित कर देना , चमत्कार पैदा करना, अपने सेवक को क्रतार्थ करना. यदि आप मेरी प्राथना स्वीकार ना करोगी तो मै भी अपना सिर काटकर आपके चरणों मे अर्पित कर दूंगा, क्योकि लज्जित होकर जीने से मर जाना अधिक अच्छा है! यह मेरी प्रतिज्ञा है आप उत्तर दे ..
कुछ समय तक मौन रहा
कोई उत्तर ना मिला
इसके पछ्चात भगत ने तलवार से अपना शीश काट कर देवी को भेंट कर दिया
उसी समय साक्षात् ज्वाला माँ, मेरी माँ मेरी राज रानी, माँ मेरी शक्ति, माँ मेरी भगवती माँ, मेरी माँ दुर्गे प्रगट हुई और ध्यानु भगत का सिर धड से जुड़ गया, भगत जीवित हो गया, माता ने भगत से कहा की मेरे ध्यानु मेरे बच्चे प्यारे ,दिल्ली मे घोड़े का सिर भी धड से जुड़ गया है, चिंता छोड़ कर दिल्ली पह्चो, लज्जित होने के कारन का निवारण हो गया, और जो कुछ इच्छा है वर मांगो बेटा
ध्यानु भगत ने माता के चरणों मे शीश झुका कर प्रणाम कर निवदेन किया - हे जगदम्बे! आप सर्व शक्तिशाली है, हम मनुष्य अज्ञानी है, भगति की विधि भी नहीं जानते, फिर भी विनती करता हु की जगदमाता! आप अपने भगतो की इनती कठिन परीक्षा ना लिया करे! प्रत्येक संसारी भगत आपको शीश भेंट नहीं दे सकता, कृपा करके , हे मातेश्वरी! किसी साधारण भेंट से ही अपने भगतो की मनोकामनाए पूर्ण किया करे
"तथास्तु! अब से मै शीश के स्थान पर केवल नारियल की भेंट व् सच्चे ह्रदय से की गई प्राथना द्वारा ही मनोकामना पूर्ण करुँगी" यह कह कर माता अंतरध्यान हो गई
इधर तो यह घटना घटी , उधर दिल्ली मे जब मृत घोड़े के सिर व् धड , माता के कृपा से अपने आप जुड़ गए तो सब दरबारियो सहित बादशाह अकबर आश्चर्य मे डूब गए. बादशाह ने कुछ सिपाहियो को ज्वाला जी भेजा, सिपाहियो ने वापिस आकर बादशाह को सुचना दी - वह जमीन मे से रौशनी की लपटे निकल रही है, शायद उन्ही की ताकत से यह करिश्मा हुआ है, अगर आप हुक्म दे तो उन्हें बंद करवा दे, इस तरह हिन्दुओ की इबादत की जगह ही खत्म हो जाएगी..
अकबर ने स्वीक्रति दे दी, शाही सिपाहियो ने सर्व-प्रथम माता की पवित्र ज्योति के उपर लोहे के मोटे-मोटे तवे रखवा दिए! परन्तु दिव्या ज्योति तवे फोड़कर उपर निकल आई. इसके पछ्चात एक नहर का बहाव पवित्र ज्योत की और मोड़ दिया गया. जिससे नहर का पानी निरंतर ज्योति की उपर गिरता रहे. फिर भी ज्योति का जलना बंद ना हुआ. शाही सिपाहियो ने अकबर को सुचना दे दी - जोतों का जलना बंद नही हो सकता, हमारी सारी कोशिशे नाकाम हो गई. आप जो मुनासिब हो करे , यह समाचार पाकर बादशाह अकबर दरबार ने दरबार के विद्धवान ब्राह्मणों से परामर्श किया. तथा ब्राह्मणों ने विचार करके कहा की आप स्वय जाकर देवी के चमत्कार देखे, नियमानुसार भेंट आदि चढ़ाकर देवी माता को प्रसन्न करे. बादशाह ले लिए दरबार जाने का नियम यह है की वह स्वय अपने कंधे पर स्वामन शुद्ध सोने का छत्र लादकर नंगे पैर माता के दरबार मे जाए. तत्पछ्चात स्तुति आदि करके माता से क्षमा मांग ले
अकबर ने ब्राह्मणों की बात मान ली! सवामन पक्का सोने का भव्य छत्र तैयार हुआ! फिर वह छत्र अपने कंधे पर रख कर नंगे पैर बादशाह ज्वाला जी पहचे . वहां दिव्या ज्योति के दर्शन किये, मस्तक श्रधा से झुक गया, अपने पर पछ्चाताप होने लगा, सोने का छत्र कंधे से उतर कर रखने का उपक्रम किया... परन्तु... छत्र... गिर कर दूट गया! कहा जाता है वह सोने का रहा, किसी विचित्र धातु का बन गया- जो ना लोहे का था, ना पीतल, ना ताम्बा और ना ही सीसा
अर्थात देवी ने भेंट अस्वीकार कर दी
इस चमत्कार को देखकर अकबर ने अनेक प्रकार से स्तुति करते हुए माता से क्षमा की भीख मांगी और अनेक प्रकार से माता की पूजा आदि करके दिल्ली वापिस लौटा. आते ही अपने सिपाहियो को सभी भगतो से प्रेम - पूर्वक व्यवहार करने का आदेश निकाल दिया
अकबर बादशाह द्वारा चढाया गया खंडित छत्र माता जी के दरबार के बाई और आज भी पड़ा हुआ देखा जा सकता है
!! बोलो सांचे दरबार की जय!!
हे माता रानी लिखने मे कोई कमी रह गई हो तो अपने इस बेटे को अनजान समझ कर माफ़ करना आप का बेटा संजय मेहता
बोलिए जय माता दी
बोलिए ज्वाला माई की जय
बोलिए मेरी माँ राज रानी की जय
बोलिए मेरी माँ दुर्गा रानी की जय
बोलिए मेरी माँ वैष्णो रानी की जय
राजा सुशर्मा के नाम पर रखा गया 'सुशर्मापुर' नगर कांगडा का अति प्राचीन नाम है, जिसका उल्लेख महाभारत मे भी मिलता है . महमूद गजनवी के आक्रमण के समय इसका नाम 'नगरकोट' था ' कोट' का अर्थ है किला - अर्थान वः नगर जहा किला है . नगरकोट हुआ. .. त्रिगर्त-प्रदेश कांगडा का महाभारत - कालीन नाम है ! कांगड़ा के शाब्दिक अर्थ है कान + गढ़ अर्थान कान पर बना हुआ किला. पौराणिक कथानुसार ये कान जलंधर दैत्य का है. कथा इस प्रकार है. जलंधर नमक दैत्य का कई वर्षो तक देवताओ से घोर युद्ध हुआ . जलंधर महाम्त्य मे लिखे अनुसार ही जब विष्णु भगवन और शंकर जी कपटी माया से परस्त जलंधर दैत्य युद्ध मे जर्जरित होकर मरनासन्न हो गया तो दोनों देवताओ ने, उनकी साध्वी-पत्नी सती-वृंदा के शाप के भय से जलंधर को प्रतक्ष दर्शन देकर मन चाह वर मांगने को कहा. सती वृंदा(तुलसी) के आराध्य पति-परमेश्वर जलंधर ने दोनों देवताओ की स्तुति करके कहा - हे सर्वशक्तिमान प्रभु! यधपि आपने मुझे कपटी -माया रचकर मारा है, इस पर भी मै अति-प्रसन्न हु. आपके प्रत्यक्ष दर्शन से मुझ जैसे तामसी और अहंकारी दैत्य का उद्धार हो गया. मुझे कृपया यह वरदान दे की मेरा यह पार्थिव शरीर जहाँ जहाँ तक फैला है उने परिमाण योजन में सभी देवी - देवताओ और तीर्थो का निवास रहे, आपके श्रद्धालु एवं भगत मेरे शरीर पर स्थित इन तीर्थो मे स्नान-ध्यान-दर्शन-पूजन-दान-श्राधादी करके पुण्यलाभ प्राप्त करे. इसके पछ्चात जलंधर ने वीरासन मे स्थित होकर प्राण त्याग दिए. इसी कथा के अनुसार शिवालिक पहाडियो के बीच १२ योजन के क्षेत्र मे जलंधर पीठ फैला हुआ है. जिसकी परिक्रमा मे ६४ तीर्थ व् मंदिर पाए जाते है. इनकी प्र्दक्षिना का फल चल-धाम की यात्रा से कम नहीं है
कोट कांगड़ा मैया की भेंट
किला कांगड़ा तेरा माँ
आन मुगल ने घेरा माँ
किला कांगड़ा तेरा माँ
नगर कोट की आदि भवानी
मुगल तुर्क ने नहीं मानी
तवे जडाये नेहर मंगाई
लाया भवन पे डेरा माँ
किला कांगड़ा तेरा माँ
तवे फोड़ भईया परचंडी
मुगल भाग गए पगडण्डी
फूंक दिया सब डेरा माँ
किला कांगड़ा तेरा माँ
जिनके शरीर वर्ण कृष्ण , नील तथा भगवन शंकर के समान है, उन शनिदेव को नमस्कार है. जो जगत के लिए कालाग्नि एवं क्र्तांतरूप है , उन शनैश्चर को बारम्बार नमस्कार है. जिनकी दाढ़ी - मूछ और जटा बड़ी हुई है, उन शनिदेव को प्रणाम है. जिनके बड़े - बड़े नेत्र , पीठ मे सटा हुआ पेट और भयानक आकर है , उन शनैश्चर देव को नमस्कार है. जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोंए बहुत मोटे है , जो लम्बे-चौड़े किन्तु सूखे शरीर वाले है तथा जिनकी दाढे काल रूप है, उन शनिदेव को बारम्बार प्रणाम है .. शने! आपके नेत्र खोखले के समान गहरे है, आपकी और देखना कठिन है, आप घोर , रौद्र , भीषण और विकराल है. आपको नमस्कार है. बलीमुख! आप सब कुछ भक्षण करने वाले है; आपको नमस्कार है, सुर्यनंदन! भास्करपुत्र! अभय देनेवाले देवता ! आपको प्रणाम है! नीचे की और दृष्टि रखने वाले शनिदेव! आपको नमस्कार है, संवर्तक ! आपको संजय मेहता का प्रणाम है, मंदगति से चलने वाले शनैश्चर! आपका प्रतीक तलवार समान है . आपको पुन:-पुन: प्रणाम है. आपने तपस्या से अपने देह को दग्ध कर दिया है; आप सदा योगाभ्यास तत्पर , भूख से आतुर और अत्रप्त रहते है! आपको सदा - सर्वदा नमस्कार है! ज्ञाननेत्र ! आपको प्रणाम है! कश्यप्नंदन सूर्य के पुत्र शनिदेव ! आपको नमस्कार है! आप संतुष्ट होने पर राज्य दे देते है और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते है! देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध , विद्याधर और नाग - ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते है. देव! मुझपर प्रसन्न होइए ! मै संजय मेहता वर पाने के योग्य हु और आपकी शरण आया हु...
शनिदेव ने कहा : देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध , विद्याधर तथा राक्षस - इनमे से किसी के भी मृत्यु , स्थान, जन्मस्थान अथवा चतुर्थ स्थान मे रहू तो उसे मृत्यु का कष्ट दे सकता हु. किन्तु जो श्रधा से युक्त , पवित्र और एकाग्रचित हो मेरी लोहमयी सुंदर प्रतिमा का शमीपत्रों से पूजन करके तिलमिश्रित उड़द - भात , लोहा, काली गौ या काला वर्षभ ब्राह्मण को दान करता है तथा विशेषत: मेरे दिन को इस स्त्रोत्र से मेरी पूजा करता है, पूजन के पश्चात भी हाथ जोड़कर मेरे स्त्रोत्र का जप करता है , उसे मै कभी भी पीड़ा नहीं दूंगा गोचर में जन्मलग्न में , दशाओं तथा अन्तेर्द्शाओ में ग्रह - पीड़ा का निवारण करके मै सदा उसकी रक्षा करूँगा ! इसी विधान से सारा संसार पीड़ा से मुक्त हो सकता है.
जय माता दी जी
जय मेरी माँ राज रानी की जय
जय मेरी माँ वैष्णोदेवी की जय
जय जय शनिदेव
हर हर महादेव
इस पहाड़ी के समीप के इलाके मे कुछ गुजरो की आबादी रहती थी. उसमे नैना नाम का गुजर देवी का परम भगत था . वह अपनी गाये भैंस आदि पशुओ को चराने के लिए इस पहाड़ी पर आया करता था. इस पर जो पीपल का वृक्ष अब भी विराजमान है उसके नीचे आकर गुजर की एक गाये खड़ी हो जाती थी . और अपने आप दूध देने लगती . नैना गुजर ने यह दृश्य कई बार देखा. वह यह देखकर सोच - विचार मे डूब जाया करता था के आखिर एक अनसुई गाये के थनों मे इस पीपल के पेड़ के नीचे आकर दूध क्यों आ जाता है . अंतत: एक बार उसने उस पीपक के पेड़ के नीचे जाकर जहाँ गाये का दूध गिरता था वहां पड़े हुए सूखे पत्तो के ढेर को हटाना आरंभ कर दिया. पत्ते हटाने के बाद उसमे दबी हुई पिण्डी के रूप मे माँ भगवती की प्रीतिमा दिखाई दी. नैना गुजर ने जिस दिन पिण्डी के दर्शन किये, उसी रात को माता ने स्वप्न मे उसे दर्शन दिए और कहा की मे आदिशक्ति दुर्गा हु तू इसी पीपल के नीचे मेरा स्थान बनवा दे. मै तेरे ही नाम से प्रिसद्ध हो जाउंगी. नैना माँ भगवती का परम भगत था. उसने प्रात:कल उठते ही देवी माँ की आज्ञानुसार उसी दिन से मंदिर की नीवं रख दी. शीघ्र ही इस स्थान की महिमा चारो तरफ फ़ैल गई. श्रद्धालु भगत दूर दूर से आने लगे. उनकी मनोकामनाए पूरी होती रही. देवी के भगतो ने भगवती का सुंदर, भव्य तथा विशाल मंदिर बनवा दिया और तीर्थ नैनादेवी नाम से प्रिसद्ध हो गया, मंदिर के समीप ही एक गुफा है , जिसे नैना देवी की गुफा कहते है, इसके दर्शनार्थ भी कई भगत जाते है
बोलिए नैना देवी माँ की जय
बोलिए मेरी माँ राज रानी की जय
बोलिए मेरी माँ वैष्णो रानी की जय
बोलिए मेरी माँ दुर्गा की जय
शेरां वाली माता तेरी जय हो सदा
माँ मुझको तू बता दे क्या मेरी खता है
क्यों हर मोड़ पर गम ही मिला है
माँ मुझको तू बता दे क्या मेरी खता है
क्यों हर मोड़ पर गम ही मिला है
हँसता हु पल भर को फिर दर्द सताता है
हर रोज नया गम क्यों मुझको मिल जाता है
शेरां वाली माता तेरी जय हो सदा
माँ मुझको तू बता दे क्या मेरी खता है
ज्योता वाली माता तेरी जय हो सदा जय
उसने ही मुझको है दिखा दिया
मैंने विश्वास जिस पे किया
मुझको रुलाके हंसाता जमाना है
अश्को कर मैंने पिया
टुटा है हर एक सपना जो मैंने सजाया था
लूटा है दुनिया ने जो मैंने पाया था
शेरां वाली माता तेरी जय हो सदा
माँ मुझको तू बता दे क्या मेरी खता है
क्यों हर मोड़ पर गम ही मिला है
बन जा सहारा तू
इस बेसहारे की अर्जी
मंजूर कर अर्जी मंजूर कर
चरणों मे अपनी जगह देके
मेरे सभी दुःख दूर कर
खाली मे आया था खाली नहीं जाना है
जो तुमसे माँगा है वो तुमसे ही पाना है
क्यों हर मोड़ पर गम ही मिला है
शेरां वाली माता तेरी जय हो सदा
माँ मुझको तू बता दे क्या मेरी खता है
क्यों हर मोड़ पर गम ही मिला है
हम आज सभी मिल कर , तेरी रात जगायेंगे
ओ महावीर सुन लो, तेरी महिमा गाएंगे
तुझसे मिलने को भला, कोई रोकेगा कैसे
कदमो से लिपट जाये, वृक्षों से लता जैसे
सपनो मे मिले थे तुम, अब सामने पाएंगे
हम आज सभी मिल कर , तेरी रात जगायेंगे
ओ महावीर सुन लो, तेरी महिमा गाएंगे
पूरी होगी तृष्णा, प्यासे इन नयनन की
माथे से लगा लेंगे, धूलि तेरे चरनन की
चरणामृत लेकर के, हम भव तर जायेंगे
हम आज सभी मिल कर , तेरी रात जगायेंगे
ओ महावीर सुन लो, तेरी महिमा गाएंगे
सदीओ से सदा हमने , तेरी आस लगाई है
पागल मनवा कहता , इसमें ही भलाई है
पाकर तेरे दर्शन को, हम धन्य हो जायेंगे
हम आज सभी मिल कर , तेरी रात जगायेंगे
ओ महावीर सुन लो, तेरी महिमा गाएंगे
चुनकर वन उपवन से , पुष्पों की मधुर लड़िया
एक हार बनाया है , बीती है कई घड़िया
ये पुष्प भजन माला, तेरे चरण चढ़ाएंगे
हम आज सभी मिल कर , तेरी रात जगायेंगे
ओ महावीर सुन लो, तेरी महिमा गाएंगे
लताओं पुष्प बरसाओ मेरे भगवान आये है
मेरे हनुमान आये है -२
ऐ कोयल मीठे स्वर गाओ मेरे भगवान आये है
मेरे हनुमान आये है
लगी थी आशा सदियो से हुए है आज वो दर्शन
निभाने आज वायदे को पधारे खुद पतित पावन
मेरे कष्ट हरने को वो नंगे पाँव आये है
मेरे हनुमान आये है
करू कैसे तेरी पूजा ना मन फुला समाता है
कहा जाऊ मै क्या करू समझ कुछ भी ना आता है
मुझे अपने ही रंग मै रंगकर बढ़ाने मान आये है
मेरे हनुमान आये है
न चाहिए धन दौलत मुझको तेरी भगति मै चाहता हु
मेरे सिर पर हो तेरा यही वरदान चाहता हु
अधम मुझ नीच पापी को करन उद्धार आये है
मेरे भगवान आये है
मेरे हनुमान आये है
आदत बुरी सुधर लो, बस हो गया भजन
दृष्टि मे तेरी खोट है, दुनिया निहार ले
गुरु ज्ञान अंजन सार लो, बस हो गया भजन
आदत बुरी सुधर लो, बस हो गया भजन
दुनिया तुम्हे बुरा कहे, पर तुम करो क्षमा
वाणी को भी सम्भार लो, बस हो गया भजन
आदत बुरी सुधर लो, बस हो गया भजन
विषयों की तीव्र आग मे जलता ही जा रहा
मन की तरंग मार लो , बस हो गया भजन
आदत बुरी सुधर लो, बस हो गया भजन
रिश्तो से मोह त्याग कर राम से प्रेम कर
इतना ही मन मे विचार लो, बस हो गया भजन
आदत बुरी सुधर लो, बस हो गया भजन
जाना है सबको एक दिन दुनिया को त्याग के
इस जीवन को तुम स्म्बार लो बस हो गया भजन
आदत बुरी सुधर लो, बस हो गया भजन
जय माता दी जी
प्रेम से बोले जय माता दी
हरी बोल, हरी बोल
श्याम बोल प्यारा प्यारा नाम बोल
राधे राधे
तेरी उची शान है भोला
रखता सब का है मान भोला
कहता तुझको डमरू वाला
झोले सबकी भरने वाला -2
मुझ को मालामाल बना दे
मेरी किस्मत को जगा दे
जग मे तेरा नाम है भोला
उचा तेरा धाम है भोला
भगतो का तू ही रखवाला
सब की तू ही सुनने वाला
मुझ को भी धनवान बना दे
मेरी जग मे शान बड़ा दे
बंगला आलिशान दिला दे
अमरीक्का जपान घुमा दे
तुने सब को खूब दिया है
मुझ से क्यों मुह फेर लिया है
सर पे मेरे हाथ फिरा दे
मेरी किस्मत को जगा दे
कर्ज दे या दान दे दे
या कोई वरदान दे दे
चांदी ,सोना, हीरे, मोती
सब मुझे भगवान दे दे -2
करुना का मोहे दान दे दे
मान दे सन्मान दे दे
हो उजाला ऐसी ज्योति
मुझ को भी प्रभु ज्ञान दे दे
अब तो अर्जी मान ले भोला
कर दे यह अहसान भोला
तू बड़ा भंडारी बाबा
तेरी लीला न्यारी बाबा
तुने सब को खूब दिया है
मुझ से क्यों मुह फेर लिया है
बेडा मेरा पार लगा दे
मेरी किस्मत को जगा दे
अपनी झोली झाड दे दे
मुझ को छपर फाड़ दे दे
मेरे भोले, भोले बाबा
मुझ को मोटर कार दे दे -2
मेरे भी कर ध्यान भोला
एसा दे वरदान भोला
दे दे भोला नाथ दे दे
दौलत की बरसात दे दे
मुझ को मालामाल बना दे
मेरी किस्मत को जगा दे
तू बड़ा भंडारी बाबा
तेरी लीला न्यारी बाबा
तुने सब को खूब दिया है
मुझ से मुह क्यों फेर लिया है
बेडा मेरा पार लगा दे
मेरी किस्मत को जगा दे
तू बड़ा भोला है दानी
सब ने है यह बात मानी
मै भी मानु तेरी महिमा
मुझ को दे कोई निशानी -2
मेरी सुन फ़रियाद भोला
तुझ को करता याद भोला
मेरा भी कल्याण कर दे
मुझ पे भी एहसान कर दे
मुझ को मालामाल बना दे
मेरी किस्मत को जगा दे
तू बड़ा भंडारी बाबा
तेरी लीला न्यारी बाबा
तुने सब को खूब दिया है
मुझ से क्यों मुह फेर लिया है
बेडा मेरा पार लगा दे
मेरी किस्मत को जगा दे
तेरी उची शान है भोला
रखता सब का है मान भोला
कहता तुझको डमरू वाला
झोले सबकी भरने वाला
मुझ को मालामाल बना दे
मेरी किस्मत को जगा दे
संजय मेहता , लुधिअना
जय माता दी जी
प्रेम से बोले जय माता दी
हर हर महादेव
शक्ति ने लिया अवतार तो कुछ कारण होगा
माँ हो गई सिंह सवार तो कुछ कारण होगा
वो पकडे खड़ी तलवार तो कुछ कारण होगा
माँ हो गई सिंह सवार तो कुछ कारण होगा
नरमुंड का पहने हार तो कुछ कारण होगा
माँ हो गई सिंह सवार तो कुछ कारण होगा
नैनो मे भरे अंगार तो कुछ कारण होगा
माँ हो गई सिंह सवार तो कुछ कारण होगा
बोलो सिंह सवार माँ तेरी जय जय कार