माता शेरावाली, महिषासुर का वध करने के लिए सिंह (शेर) पर स्वर हुई थी..
अत: उन्हें सिंघ्वाहिनी कहा जाने लगा ..
पूर्वकाल मे शेरावाली माता के रूप मे विश्रुत हुई,
और आधुनिक काल मे माता वैष्णो का नाम शेरावाली सबसे अधिक प्रिसद्ध है..
माता महाकाली और माता सरस्वती को ना तो शेर पर दिखाया जाता है
और ना ही उसके मंदिरों मे शेर की प्रतिमा होती है..
सिंह पशु जगत मे महाशक्तिशाली माना गया है..
वह पशुओ का राजा है.. युद्ध, साहस और आक्रमण
मे भी वह अद्वित्य है.. देखने मे सुंदर, आकर्षक व्यक्तितत्व ,
एक वीरता की मूर्ति तथा तेजस्विता का प्रतीक
यह सिंह जिस देवी का वाहन है. कल्पना करे, वह देवी कितनी शक्तिशाली होगी..
बोलो माँ वैष्णोदेवी की जय..
बोलो माँ के वाहन सिंघ्देव की जय..
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय..
जरा घुमने तो घाटे चलिए, वहा रहते बाला जी महाराज है..
संकट वो तेरा काटेंगे, वो तो संकट के काटन हार है..
तुम वहा जाओ वो ना मिलेंगे, ऐसा कभी नहीं हो सकता...
जो वर मांगो तो नहीं पाओ, ऐसा कभी नहीं हो सकता,
वो तो दानी जगत विखियात है, रख लेंगे तेरी लाज है...
संकट वो तेरा काटेंगे, वो तो संकट के काटन हार है...
जरा घुमने तो घाटे चलिए
भैरव बाबा का जाल यहाँ पर, आज फसे कोई काल फसे..
प्रेतराज बाबा का जाल यहाँ पर, आज फसे कोई काल फसे,
भगत कहता पते की बात है, यहाँ संकट कटे दिन रात है..
जरा घुमने तो घाटे चलिए
पत्थर के मंदिर मे, पत्थर की मूर्त, पत्थर का दिल नहीं हो सकता
बेटा बुलाये बाबा ना आये, ऐसा कभी नहीं हो सकता..
जो वर मांगे वो नहीं पाओ, ऐसा कभी नहीं हो सकता..
वो तो दानी जगत विख्यात है, रख लेंगे तेरी लाज है..
संकट वो तेरा...
जय माता दी जी.
हर हर महादेव
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय..
Sanjay Mehta
द्वार पे बेठा राह निहारु थक गए मेरे नैना.. आओं श्याम मेरे अंगना,....श्याम
मेरे अंगना.. आओ ना ...
राह मै तेरी पलके बिछाई.. सेज फूलो की मैंने सजाई-2
अब ता आ जाओ मेरी कन्हिया , कही हो ना मेरी रुसवाई
तू जो आये तो खिल जाये मन की मेरी बगिया..
आओ श्याम मेरे अंगना...
मेरी आँखों का बस यही सपना... एक तू श्याम हो मेरा अपना..-2
आज का प्रेम अपना नहीं है.. कई जन्मो का बंधन है अपना...
जग से रिश्ता टूटे, तुझ से रिश्ता टूटे अब ना...
ऑ आओ श्याम मेरे अंगना...
आ जाओ....
आओं ना...
तुझे भगतो ने जब भी पुकारा... तुने सब को दिया है सहारा...
नाव मझधार मे मेरी डोले.. उसको तू ही दिखाए किनारा...
बन के खिवयिया आजा मोहन कोई मेरे संग ना...
आओ श्याम मेरे अंगना...
आ जाओ...
आओ ना...
सब की बिगड़ी बनाने वाले.. बात मेरी बनाए तो मानु..
मे तो भटका हुआ एक मुसाफिर, राह मुझको दिखाए तो जानू...
सुन ले संजय की इतनी बिनती .. चरण कमल मे रखना...
आओ श्याम मेरे अंगना..
आ जाओ..
द्वार मे बेठा राह निहारु.. थक गए मेरे नैया...
जगदम्बा के श्री अंगो की कान्ति उदयकाल के सहस्त्रो सूर्यो के समान है..
वे लाल रंग की रेशमी साडी पहने हुए है..
उनके गले मै मुंडमाला शोभा पा रही है..
वे अपने कर कमलो मै जपमालिका ,
विद्या, अभेय , तथा वर मुद्रए धारण किये हुए है..
तीन नेत्रों से सुशोभित मुखार-विन्द की बड़ी शोभा हो रही है..
उनके मस्तक पर चंदर माँ के साथ ही रत्नमय मुकुट बंधा है..
तथा वे कमल के आसन पर विराजमान है..
ऍसी देवी को मै भगति पूर्वक प्रणाम करता हु...
बोलो दुर्गा माँ की जय
बोलो मेरी माँ वैष्णोदेवी की जय...
बोलो मेरी माँ राजरानी की जय..
जय माता दी जी
महावीर तुम्हारे द्वार पर एक दास भिखारी आया है
प्रभु दर्शन भिक्षा पाने को, दो नयन कटोरा लाया है
महावीर तुम्हारे द्वार पर...
नहीं दुनिया मे कोई मेरा है.. आफत ने मुझको घेरा है...
जग ने मुझको ठुकराया है... बस एक सहारा तेरा है..
मेरी बीच भवर मे नैया है.. एक तू ही पार लगैया है..
लाखो को ज्ञान सिखाया है.. भव सिन्धु से पार उतरा है..
महावीर तुम्हारे द्वार पर..
धन दोलत की कोई चाह नहीं.. घर बार छूटे परवाह नहीं...
मेरी इच्छा है , तेरे दर्शन को... संकट से मन घबराया है..
महावीर तुम्हारे द्वार पर ...
आपस मे भी कुछ प्रेम नहीं प्रभु तुम बिन हमको चैन नहीं..
अब जल्दी आकर सुध ले लो... संकट से मन घबराया है...
महावीर तुम्हारे द्वार पर...
बोलो हनुमान जी की जय
बोलो बाला जी की जय
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय..
जय माता दी जी..
Sanjay Mehta
मै कमल के आसन पर बेठी हुई महिषासुर मर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हु... जो अपने हाथो मै अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, बज्र , पद्म, धनुष, कुण्डिका, दंड, शक्ति, खड्ग, ढाल, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती है.. तथा जिनके श्री विग्रह की कान्ति मुंगे के समान लाल है...
बोलो लक्ष्मी माँ की जय...
बोलो विष्णु भगवान की जय
बोलो हरी हर की जय..
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय..
जय माता दी जी..
भगवान् विष्णु के सो जाने पर मधु और केटभ को मारने के लिए कमल-जन्मा ब्रह्माजी ने जिनका स्तवन किया था, उन महाकाली देवी का मै स्तवन करता हु.. वो अपने दस हाथो मै खड्ग , चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्ड, मस्तक और शंख धारण करती है.. उनके तीन नेत्र है... वे समस्त अंगो मै दिव्या आभुषनो से विभूषित है.. उनके शरीर की कान्ति नीलमणि के समान है.. तथा वे दस मुख और दस पैरो से युक्त है...
बोलो दुर्गा माँ की जय
बोलो काली मैया की जय..
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय
हर हर महादेव.
चरणों मै आऊ, थारे शीश नवाऊ, और ध्यान लागू थारो,
ए माँ मेरी शेरावाली, ए माँ मेरी शेरावाली...
माँ जगदम्बा, शेरावाली मैया, जग प्रतिपाली
माता थे जग की, हरो हो थे विपदा सबकी
भवानी मै भी हु थारो, बारी है मेरी अबकी...
गीत सुनु, थाणे रिझाऊ , मेरी करो रखवाली...
चरणों मै आऊ...
माँ यौ ही वर दयो, हाथ मेरे सिर पर रख दयो
दरश की आशा लगायो हु, आशा मेरी पूरी कर दयो
बेगा आवो, ना तरसावो, झोली मन की है खाली...
चरणों मै आऊ....
मै हु अज्ञानी, मूढ़ , मूर्ख और अभिमानी..
माफ़ कर दयो मेरी मैया, हो गई जो भी नादानी...
शक्ति देवो , माँ भगति देवो, मेरी माँ भोली भाली...
चरणों मै आऊ....
बोलो थावे वाली मैया की जय..
बोलो शेरावाली मैया की जय...
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय..
हर हर महादेव
जय माता दी जी..
Sanjay Mehta
दिखा दे रूप
[तर्ज: गाडी वाले मुझे बिठाले..]
घोटे वाले मुझे बुला ले,
कर अर्जी मंजूर दिखा दे रूप तेरा...
सालासर मे धाम तेरा, अजब निराली माया है..
सुंदर रूप अनूप तेरा, भगतो के मन भाया है..
भाग्त्ग्न आते भोग लगते, भीड़ रहे भरपूर
दिखा दे रूप तेरा , घोटे वाले...
अंग मे चोला चांदी का, गल बैजंती माला है..
मुकट विराजे सोने का, लाल लंगोटे वाला है...
गदा हाथ मे वीर साथ मे, चम चम चमके नूर
दिखा दे रूप तेरा, घोटे वाले....
बचपन खोया खेलन मे, जवानी मे किया ध्यान नहीं..
आन बुडापा घेर लिया, भजन भाव का ज्ञान नहीं..
मै खल कामी, तू अन्तेर्यामी , कर दे अवगुण दूर
दिखा दे रूप तेरा, घोटे वाले...
दुनिया रंग बिरंगी है, मिलता कोई मीत नहीं..
पैसे के सब संगी है, दुनिया की रीत यही...
झूठी सारी दुनिया देखी, झूठा करे गरूर
दिखा दे रूप तेरा , घोटे वाले...
ठोकर खायी दर दर की, आखिर पता तेरा पाया...
दया हो गई रागुवर की, भजन बना 'मस्त-मंडल' आया...
अन्तेर्यामी सबका स्वामी, भरो ज्ञान भरपूर,
दिखा दे रूप तेरा, घोटे वाले...
जय माता दी जी
बोलो सियावर राम जय जय राम..
बोलो बजरंगबलि की जय..
हर हर महादेव
मेरी माँ राज रानी की जय..
आज विश्व भर में लाखों लोग श्री सत्य साईं बाबा के देहांत पर आंसू बहा रहे है। बाबा के दुनियाभर में करोड़ों भक्त हैं। श्री सत्य साईं बाबा को शिरडी साईं बाबा का अवतार के रूप में भी जाना जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि साई बाबा विलक्षण प्रतिभा वाले एक साधारण बालक थे। इनका जन्म आन्ध्र प्रदेश के पुत्तपार्थी गांव में 23 नवंबर 1926 को हुआ था। वो बचपन से ही बड़े अक्लमंद और दयालु थे। वो संगीत, नृत्य, गाना, लिखना इन सबमें में काफी रुचि रखते थे।
एक दिन अचानक 8 मार्च 1940 को जब वो कहीं जा रहे थे तो उनको एक बिच्छू ने डंक मार दिया। इसके कुछ दिनों बाद उनके व्यक्तित्व में खासा बदलाव देखने को मिला। वो अचानक संस्कृत में बोलना शुरू कर दिए जिसे वो जानते तक नहीं थे।
पिता ने डॉक्टर को दिखाया लेकिन कोई भी इस चमत्कार को नहीं समझ सका। 23 मई 1940 को उनकी दिव्यता का लोगों को अहसास हुआ। सत्य साईं ने घर के सभी लोगों को बुलाया और चमत्कार दिखाने लगे। उनके पिता ने उनकी पिटाई की और पूछा कि तुम कौन हो सत्यनारायण ने कहा मैं साईं बाबा हूं।
उन्होंने अपने आप को शिरडी साईं बाबा का अवतार घोषित कर दिया। शिरडी साईं बाबा, सत्य साईं की पैदाइश से 8 साल पहले ही गुजर चुके थे। खुद को शिरडी साईं बाबा का अवतार घोषित करने के बाद सत्य साईं बाबा के पास श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी।
उन्होंने मद्रास और दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों की यात्रा की। उनके भक्तों की तादाद बढ़ गई। उन्होंने कई बार देश और विदेश की यात्रा की। वे अपने संबोधन सभा में कहते कि मैं यहां आपके दिल में प्यार और सद्भाव का दीप जलाने आया हूं। मैं किसी धर्म के प्रचार के लिए या भक्त बनाने नहीं आया हूं।
बाला हम दरबार तेरे आ गए
इस तेरी दुनिया से हम घबरा गए
कब से बेठे है तेरे दरबार मे
मर रहे है हम तेरे ही प्यार मे
देख क्र लीला तेरी चकरा गए..
बाला हम दरबार तेरे...
आंसुओ की है झड़ी अब तो लगी
प्यास दर्शन की मेरे मन मे जगी
तर गए जो दर्श तेरा पा गए
इस तेरी दुनिया से हम घबरा गए..
बाला हम दरबार तेरे....
कष्ट दुखियो के मिटाते आप है
हम बुलाये क्यों ना आते आप है
कर्म मेरा देखकर ठुकरा गए
इस तेरी दुनिया से हम घबरा गए..
बाला हम दरबार तेरे....
अंजनी के लाल अब आ जाइये
अपने प्यारे भगतो को अपनाइए
फूल शारदा के सभी मुरझा गए
इस तेरी दुनिया से हम घबरा गए..
बाला हम दरबार तेरे..
मेहंदीपुर तेरा निराला धाम है
सालासर मे गूंजता तेरा ताम है
कहे (संजय) चिरंजी प्यार तेरा पा गए..
इस तेरी दुनिया से हम घबरा गए..
बाला हम दरबार तेरे...
जय माता दी जी..
बोलो माँ वैष्णोदेवी की जय...
बोलो माँ दुर्गा की...
बोलो माँ राजरानी की जय...
हर हर महादेव...
परमेश्वरि मेरे द्वारा रात-दिन सहस्त्रो अपराध होते रहते है.. "यह मेरा दास है" यो समझकर मेरे उन अपराधो को तुम कृपापूर्वक क्षमा करो... परमेश्वरि मै आवाहन नहीं जानता, विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करने का ढंग भी नहीं जानता, क्षमा करो... देवी... सुरेश्वरी.. मैंने जो मन्त्रहीन, किर्यहीन और भगतिहीन पूजन किया है, वेह सब आपकी किरपा से पूर्ण हो.. सैंकड़ो अपराध करके भी जो तुम्हारी शरण जा "जगदम्ब" कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है, जो ब्रह्मादिक देवताओं के लिए भी सुलभ नहीं है.. जगदम्बिके! मै अपराधी हु... किन्तु तुम्हारी शरण आया हु.. इस समय दयाका पात्र हु... तुम जैसा चाहो, करो... देवी परमेश्वरि .. अज्ञान से , भूलसे अथवा बुद्धि भ्रांत होने के कारण मैंने जो न्यूनता या अधिकता कर दी हो, वह सब क्षमा करो और प्रसन होवो .. सचिदानान्द्स्वरूपा परमेश्वरि .. जगन्माता कामेश्वरी, तुम प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझपर प्रसन रहो... देवी सुरेश्वरी ... तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करनेवाली हो.. मेरे निवेदन किये हुए इस जप को ग्रहण करो... तुम्हारी कृपासे मुझे सिध्ही प्राप्त हो ...
जय माता दी जी..
बोलो माँ वैष्णोदेवी की जय...
बोलो माँ दुर्गा की...
बोलो माँ राजरानी की जय...
हर हर महादेव...
माँ चिन्तपुरनी का मंदिर उसी एतिहासिक व् प्राचीन वट वृक्ष के साये मे सथित है... जिसके नीचे प: मैदास ने अपने ससुराल जाते हुए और वापिस लोटने पर भी विश्राम किया .. यही उन्हें पहले स्वप्न अवस्था मे और फिर प्रत्यक्ष दर्शन दिव्या कन्या के रूप मे हुए... यह अति प्राचीन वट-वृक्ष किस युग का है.. इसका अनुमान लगाना कठिन है.. यात्रीगण यहाँ अपने मन मे कुछ अच्छा धारण करके इसी वट वृक्ष की शाखाओ पर मोली (लाल डोरी) बांधते है... और अपनी इच्छा पूर्ण हो जाने पर माता के दरबार मे उपस्थ्तित होकर उसी मोली को खोलकर देते है... ऍसी मान्यता है की पवित्र वट-वृक्ष मे मानता करके मोली बाँधने से मुरादे पूरी होती है
जय माता दी जी
हर हर महादेव
मेरी माँ राज रानी की जय
श्री मार्कंडेय पुराण मै वर्णन किए अनुसार जब माँ चंडी ने सब राक्षसों का संहार करके विजय प्राप्त कर ली तो उनकी दोनों सहायक योगिनिय अजय और विजय कहने लगी की है माँ... आपने तो विजय प्राप्त कर ली.. परन्तु हमारी रुधिर-पिपासा अभी शांत नहीं हुई... हमें और रुधिर चाहिए.. इस पर माता चंडी ने उनकी संतुष्टि के लिए स्वय अपना मस्तक काटकर, अपने ही रक्त से दोनों योगनियो की रुधिर-पिपासा को शांत किया... इसी से भगवती का नाम छिन्मस्तिका पड़ा...
प्राचीन धर्म-ग्रन्थ व् पुराणों मे छिन्मस्तिका देवी के निवास के लिए मुख्या लक्ष्ण यह माना गया है की उस स्थान अर्थात छिन्मस्तिका देवी का निवास स्थान चार शिव मंदिरों से घिरा रहेगा.. यह लक्षण चिन्तपुरनी के स्थान पर शत-प्रितिशत सही प्रतीत होता है
जय माता दी जी
हर हर महादेव
मेरी माँ राज रानी की जय
मेरी बिगड़ी बना दे इशारे से मेरे बाबा....
मेरी नैया लगा दो किनारे से मेरे बाबा...
मेरी नैया का कोई खिवैया नहीं,
कोई जाकर कहे घाटे वाले से मेरे बाबा....
भर दो भर दो झोलिय भर दो दया करके...
मै तो खाली ना जाऊ तेरे द्वारे से मेरे बाबा...
बाबा तेरे सिवा मेरा कोई नहीं...
कोई सुनता नहीं है पुकारे से मेरे बाबा...
बाबा अर्जी लगाई मैंने आकर के अब तो संकट काटो दया करके...
मेरे बाबा तेरे सहारे से...
जग मै सुंदर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम
एक हृदय मै प्रेम बडावे , एक ताप संताप मिटावे
दोनों सुख के सागर है, और दोनों पूरण काम
जग मै सुंदर है दों नाम
एक माखन ब्रज मै चुरावे, एक बेर भीलनी के खावे..
प्रेम भव के भरे अनोखे, दोनों के है काम
जग मै सुंदर है दो नाम...
एक पापी कंस सहारे, एक दुष्ट रावन को मरे..
दोनों दीन के दुःख हरे, है दोनों बम के धाम
जग मै सुंदर है दो नाम...
एक राधिका के संग राजे, एक जानकी संग विराजे
चाहे सीताराम कहो, चाहे बोलो राधेशयाम
जग मै सुंदर है दो नाम....
दोनों है घट घट के वासी, दोनों है आनंद प्रकासी
राम श्याम के दिव्या भजन से, मिलता विश्राम..
जग मै सुंदर है दो नाम....
गुफा मे तीसरी पिंडी महासरस्वती की है.. महाशक्ति के तीसरे प्रमुख रूप का नाम महासरस्वती है. परब्रह्म परमात्मा से सम्बन्ध रखने वाली यह वाणी की अधिष्ठात्री , कविओ की इष्ट देवी, शुद्ध सत्वस्व्रूपा और शांतरूप्नी है
वाणी, विद्या, बुधि और ज्ञान को प्रदान करने वाली भी यही देवी है.. अंत: वाणी मे श्रेषठता, विद्या और कलाओं मे निपुणता, बुद्धि मे विलक्षणता और ज्ञान मे विविधिता के लिए इनकी कृपा आवश्यक है.
माँ सरस्वती का शरीर अत्यंत गोर वर्ण का है
ये अत्यंत सुंदर और तेजस्वी है
इनका शरीर तेज की आभा से इतना कान्तिमान रहता है के करोड़ो चन्द्रमाओ की आभा भी उसके सामने तुच्छ प्रतीत होती है
माता का मुख चंद्रमा, नयन शरत्काल के खिले हुए कमलो के समान और दांत कुंद पुष्प के कलियों के समान है
ये उज्ज्वल वस्त्र धारण करती है.. तथा विविध प्रकार के रत्नों से निर्मित अलंकारों से शोभायमान है.. महासरस्वती श्रुतियो , शास्त्रों और सम्पूर्ण विधिआओ की स्वामिनी है..
संसार के सभी विधाए और कलाए इनका स्वरूप है.. प्रतेक मनुष्य को बुधि , विद्या , कविता करने की शक्ति, नाटक-उपन्यास और अन्य प्रकार की साहित्य रचना के लिए प्रतिभा , योग्यता और स्मरण-शक्ति इन्ही की किरपा से प्राप्त होती है..
मनुष्य को स्मरण-शक्ति प्रदान करने वाली माता सरस्वती को स्मृति शक्ति, ज्ञानशक्ति और बुधि शक्ति कहा गया है... प्रतिभा और कल्पना शक्ति भी यही है..
इन्ही की दया से ब्रह्मा, शेषनाग, ब्रेह्स्पति, बाल्मीकि, व्यास आदी वेद-शास्त्र, स्मृतिय, इतिहास, पुराण और काव्य रचना मे समर्थ हुए है
सरस्वती देवी के एक हाथ मे पुस्तक और दुसरे हाथ मे वीणा है... जो इनकी विद्या और संगीत कला की देवी होने का संकेत देते है..
सभी प्रकार की विधिआओ , सभी प्रकार के गीत-संगीत, सभी प्रकार के नृत्य और नाटको मे आराधना करने पर वे सफलता प्रदान करती है .. क्युकि सम्पूर्ण संगीत और लय तथा ताल का हेतु रूप-सोंदर्य है..
ब्रेह्म्स्वरूपा, ज्योतिस्वरूप,सनातनी और सम्पुरण कलाओं की स्वामिनी होने के कारण माता महासरस्वती, ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदी देवताओं और ऋषि-मुनि, मानव आदी से सुपूजित है..
श्रीहरी की प्रिय होने के कारण ये रत्ननिर्मित माला फेरती हुई श्रीहरी के नाम का जाप करती रहती है..
इनकी मूर्ति तपोमयी है..
तपस्या करने वाले अपने भगत को ये तत्काल फल प्रदान करती है.. सिधी, विद्या, स्र्वगिनी होने के कारण ये सिद्धि देने वाली है..
इनकी कृपा से मुर्ख अथवा अल्पमति भी बुद्धिमान विद्वान और सुकवि हो जाते है..
बोलो माँ सरस्वती की जय...
बोलो माँ वैष्णोदेवी की जय
बोलो मेरी माँ राजरानी की जय..
जय माता दी जी
संजय मेहता
गुफा मे दूसरी पिंडी माता महाकाली की है...
महाकाली महाशक्ति का परधान अंग है.. शुम्ब और निशुम्ब के साथ होने वाले महासंग्राम के समय मे ये भगवती दुर्गा के ललाट से प्रकट हुई थी
भगवती दुर्गा का इन्हें आधा अंश माना जाता है
गुण और तेज मे यह दुर्गा के ही समान है..
इनका अत्यंत शक्तिशाली शरीर करोड़ो सूर्य के समान तेजस्वी है... सम्पुरनी शक्तियों मे यह प्रमुख है.... और इनसे बढ कर कोई शक्तिशाली है ही नहीं...
ये प्रयोग-स्वरुप्नी, सम्पूर्ण सिधी प्रदान करने वाली है.. श्री हरी के तुल्य है..
इनके शरीर का रंग कला है.. और इतनी शक्तिमान है के यदि ये चाहे तो एक ही समय मे सारे विश्व को नष्ट कर सकती है..
अपने मनोरंजन के लिए अथवा जनता को शिक्षा देने के विचार से ही ये संग्राम मे असुरो के साथ युद्ध करती है, जो भी मनुष्य महाकाली भगवती की पूजा करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष अन्य सांसारिक संपतिया प्राप्त होती है
ब्रेह्मादी देवता, मुनिगण और मानव सब इनकी उपासना करते है...
महाकाली भगवान् शिव का एक नाम है उनकी शक्ति होने के कारण इनको भी महाकाली कहा जाता है.. यह देवी नीलकमल की भांति श्याम है...
चार हाथ, गले मे मुंड-माला और चोला व्यग्र के चरम का है.. इसके दांत लम्बे, जिव्हा चंचल , आंके लाल, कान चोड़े तथा मुख खुला हुआ है...
भद्रकाली , शमशान-काली, गुह्याकाली और रक्षाकाली आदी नामो से इनके अनेक रूप है... इनका एक अन्य प्रिसद्ध नाम चामुंडा है.. इन्होने असुरो के साथ होने वाले युद्ध मे चंड -मुंड नामक दो महासुरो का संहार किया...
अंत: इनको चमुंडा भी कहा जाने लगा...
माता महाकाली संसार की देवी है..
अधर्मी दुष्टों का संहार करके अपने भगतो को अभेय प्रदान करना उनका मुख्या धर्म है..
अपने भगतो के विघन, रोग, शोक, दुःख, भय आदी को ये दूर करती है..
माता महाकाली महातेज्स्व्नी है..
उनकी मूर्ति साक्षात वीरता, सहास, एश्वारिया , रूप , तेज और अलोक्किक शक्ति की प्रतीक है.. उनके दास हाथो मे खडग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, त्रिशूल, भुशुण्डी, सिर और शंख है..
उनके तीन नेत्र है.. सारे अंग आभुश्नो से सुशोभित है.. उनकी कांटी नीलमणि के समान है.. वे सदा अपने भगतो की संकतो से रक्षा करके भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है
मधु-केटभ द्वारा संकट ग्रस्त होने पर इन्होए ब्रह्मा और विष्णु को भेय्मुक्त किया था.. इनकी कृपा से मानव निर्भय हो जाता है.. युद्ध मे उसे कोई पराजित नहीं कर सकता... अकाल मृत्य नहीं होती और व्याधिय आक्रमण नहीं करती...
उसे ग्रह भुत, प्रेत, पिशाच आदी नहीं सता सकते... जो मनुष्य भगति भावना से माता महाकाली की उपासना करता है, उसके शत्रुओ का नाश होता है तथा उसे सोभाग्य, आरोग्य और परम मोक्ष की प्राप्ति होती है..
जय माँ दूर्गे
जय माँ काली
जय माँ राजरानी...
हर हर महादेव...
मेरी प्यारी माँ...
जय माता दी जी
संजय मेहता
माता महालक्ष्मी की पिंडी
डुग्गर के शत्श्रंग पर्वत के त्रिकुट शिखर पर माता वैष्णो देवी विराजमान है.. इस पर्वत की पवित्र गुफा मे जो तीन पिंडिया है उनमे मध्यवर्ती पिंडी माता महालक्ष्मी की है, और महालक्ष्मी विष्णु की शक्ति है. अत: इनका दूसरा नाम वैष्णवी है
यह वैष्णवी पराशक्ति है
परमात्मा की और भी नानाविध शक्तिया है..
इन अनेक शक्तिओ मे श्री विष्णु की अहेन्त नाम की एक शक्ति है, वेह महालक्ष्मी है..
एक स्थान पर स्वय महालक्ष्मी ने इन्दर से कहा " उस परब्रह्म की, जो चंदेर्मा की चांदनी की तरह समस्त अवस्थ्यो मे साथ देने वाली परमशक्ति है, वह सनातनी शक्ति मे ही हु... मेरा दूसरा नाम नारायणी भी है. मे नित्य, निर्दोष, सीमारहित कल्याण गुणों वाली नारायणी नाम वाली, वैष्णवी प्रसत्ता हु"..
पुरातन शास्त्रों के अनुसार जो देवी परम शुद्ध सत्व-स्वरूप है, उनका नाम महालक्ष्मी है..
परम परमात्मा श्री हरी की वे शक्ति हो..
हजार पंखुड़िया वाला कमल उसका आसन है.. इनके मुख की शोभा तपे हुए स्वर्ण के समान है, और इनका रूप करोडो चंदेर्माओ की कांडी से सम्पन्न है...
माता महालक्ष्मी के मुख पर सदेव मुस्कान व्याप्त रहती है..
संपत्तियो की इश्वरी होने के कारन अपने सेवको को ये धन एश्वारिया , सुख , सिधी और मोक्ष प्रधान करती है.. भगवान श्री हरी की माया तथा उनके तुल्य होने के कारन इन्हें नारायणी कहा जाता है..
वैश्वी और दुर्गा इनके दुसरे प्रिसद्ध और परमुख नाम है...
जैसे नदियो मे गंगा, देवताओ मे श्री हरी तथा वैष्णवों मे शिव श्रेष्ठ स्वीकार किये गए है, उसी परकार देवी के सभी नाम रूप मे वैष्णवी नाम से प्रसिद्ध भगवती महालक्ष्मी श्रेष्ठ है..
माता महालक्ष्मी अत्यंत सुंदर, सयाम्शील, शांत, मधुर और कोमल स्वभाव की है..
क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहकार आदी से रहित अपने भगतो पर किरपा करते रहना और अपने स्वामी श्रेहरी से प्रेम करना उनका स्वभाव है.. वे मधुर और प्रिय लगने वाले वचन ही बोलती है..
कभी अप्रिय वचन नहीं कहती..
वे कबी क्रोध और हिंसा नहीं करती...
सारा संसार , सारी संपतिया इनके स्वरूप है.. संसार मे जितने भी परकार के अन्न , फल फुल और वनस्पतीय आदी खाद्य पदार्थ है जिससे प्राणियों के जीवन की रक्षा होती है, सब इनके ही रूप है...
जिस धन से मानव - मात्र का सांसारिक कार्य-वेय्पार संचालित होता है, उसकी यह अधिष्ठात्री देवी है. लक्ष्मी से हीन, दरिद्र व्यक्ति का जीवन, जीते हुए भी मृत के समान होता है... और जिस पर लक्ष्मी की किरपा होती है, वेह सुखी और सम्मानित जीवन व्यतीत करता है..
जो लक्ष्मी से हीन है, वह भाई-बंधुओ और मित्र से हीन है. जो लक्ष्मी से युक्त है, वेह भाई बंधुओ और मित्रो से घिरा रहता है.. माता महालक्ष्मी की किरपा से ही मानव की शोभा होती है..
जिस पर इनकी किरपा हो जाये वह सुखी और निशित जीवन बिता सकता है. धर्म, काम और मोख उस के लिए सुलभ हो जाते है...
ये शक्ति सबकी कारण रूप है.. सर्वोच्च पवित्रर्ता है और बैकुंठ-लोक मे अपने स्वामी श्रीहरी की सेवा मे लीं रहती है.. यह देवी बैकुंठ मे महालक्ष्मी, क्षीरसागर मे ग्रेह्लाक्ष्मी, वेपारीको के यहाँ पर वेय्पार लक्ष्मी, ग्राम ग्राम मे ग्राम देवी तथा घर घर मे महादेवी के रूप मे रहती है...
संसार के सभी प्राणियो और वसतो मे यह शोभा के रूप मे विधमान है.. संसार मे द्रिश्त्गोचार होने वाला सोंदर्य, अश्वारिया और दिव्यता इनके ही कारन है...
पापी लोग जो अपकर्म करते है, लड़ाई-झगडा, मारपीट, घृणा, द्वेष, पारस्परिक विरोध और निंदा आदी मे प्रवर्त्त होते है, वेह सब इनकी माया का प्रभाव है..
माता महालक्ष्मी अत्यंत दयामयी और कृपामयी है. उन्हें अपने भगत अत्यंत प्रिय है.. इस लिए वे माता पिता के समान उनका पालन करने के साथ साथ उनकी अभिलाषाए पूरण करती है...
जो लोग माता महालक्ष्मी की पूजा और ध्यान करते है, उनकी शरण मे रहते है, उन पर किरपा करने के लिए वे सदा व्याकुल रहती है
बोलो जय माँ लक्ष्मी की... जय
बोलो संचेदरबार की जय...
जय मेरी माँ राज रानी की जय...
हर हर महादेव...
करले प्रभु से प्यार फिर पछतायेगा...
झूठा है संसार धोखा खायेगा
माया के जितने धंदे है, झूठे है उसके बन्दे
तन उज्ज्ले मन है गंदे, आँखों के बिलकुल अंधे..
नजर क्या आएगा, झूठा है संसार, धोखा खायेगा...
कर ले प्रभु से प्यार...
मतलब की रिश्तेदारी, सूत, माता, पिता और नारी
क्यों गई मती तेरी मार, जब चलेगी तेरी सवारी,
साथ क्या जायेगा, जूठा है संसार धोखा खायेगा...
कर ले प्रभु से प्यार....
मन प्रभु - चरणों मै लगा ले, तू जीवन सफल बना ले..
ले मान गुरु का कहना, दिन चार यहाँ पर रहना
कोन सम्जयेगा, झूठा है संसार धोखा खायेगा..
करले प्रभु से प्यार फिर पछतायेगा...
झूठा है संसार धोखा खायेगा...
जय माता दी जी
संजय मेहता
Sanjay Mehta
सियाराम तुम्हारे चरणों मै, यदि प्यार किसी का हो जाये...
दो चारो की तो बात है क्या.. संसार उसी का हो जाये..
सियाराम....
पर्ह्लाद तो छोटा बालक था.. पर प्यार किया परमेश्वर से...
जिसमे भय , लोभ का मोद नहीं, भगवान उसी का हो जाये..
सियाराम....
शबरी ने कहा पर वेद पड़े , गणिका कब यग्ग कराती थी
जिसमे छल द्वेष का लेश नहीं, भगवान उसी का हो जाये..
सियाराम....
रावन ने प्रभु से बैर किया, अब तक भी जलाया जाता है
बन भगत विबिषण, घबराया भगवान उसी का हो जाये...
सियाराम...
दौलत के दीवानों शिक्षा लो, उस प्रेम दीवानी मीरा से
जो प्यार करे श्री रघुवर से, बेडा पार उसी का हो जाये...
सियाराम....
जय माता दी जी
संजय मेहता....
बुधवार, 20 अप्रैल 2011
जन्म जन्म का साथ है
हमारा तुम्हारा, तुम्हारा हमारा
करेंगे सेवा हर जीवन में,
पकड़ो हाथ हमारा
जब भी जनम मिलेगा,
सेवा करेंगे तेरी
करते है तुमसे वादा,
शरण रहेंगे तेरी
हर जीवन मै बनके
साथी देना साथ हमारा...
जन्म जन्म ....
दुनिया बनाने वाले,
ये सब तेरी माया
सूरज, चाँद, सितारे,
सबको तुने बनाया
फंस ना जाऊ
मोह माया मै
हो आशीर्वाद तुम्हारा
जन्म जन्म...
जब से होश स्म्बाला
तब से हो हमने जाना
तेरी भगति ना मिले
तो जीवन व्यर्थ गवाना
इसलिए इंसान
जगत मै फिरता मारा मारा
जन्म जन्म ...
Sanjay Mehta
आओ आओ गजानंद आवो
आओ आओ गजानंद आवो
भोले बाबा के तुम ही दुलारे
अब ना देरी करो जल्दी आवो
दीन दुखियो के तुम हो उजारे
तुम ही लंगड़ा पहाड़ चडावे
रिधि सीधी के तुम देने वाले
सेवा करके तुम्हे जो रिझाले
हाथ सर पर दया का फिरावो
सबसे पहले हो पूजा तुम्हारी
गज बदन मुसे उपर सवारी
प्यारी झांकी हमे भी दिखाओ
हो 'चिरंजी ' तेरा दास स्वामी
जानते गट की अन्तेर्यामी
ज्ञान का दीप मन मे जलावो
संजय मेहता