मंगलवार, 30 जून 2015

Jai Mata Di : Sanjay Mehta











देव्युपनिषत्त में भी इस प्रकार वर्णन है। सभी देवताओ ने देवी की सेवा में पहुंचकर पूंछा - "तुम कौन हो महादेवी ?" उत्तम में महादेवी ने कहा " 'मै' ब्रह्मस्वरूपिणी हूँ। मेरे ही कारण प्रकृतिपुरषात्मक यह जगत्त है। शुन्य और अशून्य भी . आनंद और अन्नंद हूँ। विज्ञान और अविज्ञान मै ही हूँ। मुझे ही ब्रह्म और अब्रह्म समझना चाहिए . मै पंचभूत हूँ और अपंचभूत भी। मै सारा संसार हूँ। मै विद्या और अविद्या हूँ। मै अजा हूँ अन्जा हूँ। मै अध-उध्र्व और तिर्यक हुँ. रुद्रो में आदित्यों में , विश्वदेवों में मै ही संचारित रहती हु। मित्रावरुण, इंद्र, अग्नि , अश्िवनीकुमार - इन सबको धारण करनेवाली मै ही हु। मै उपासक या याजक यजमान को देनेवाली हु.
यह महादेवी या महाशकी है। यह पराशक्ति है . यह आदिशक्ति है। यह आत्मशक्ति है और यही विश्वमोहिनी है। जय माता दी जी







शनिवार, 27 जून 2015

हिंगुला शक्तिपीठ: Hingula shaktipeeth : Sanjay Mehta Ludhiana










हिंगुला शक्तिपीठ : यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज नामक स्थान में है। हिंगलाज कराची से १४४ कि. मी. दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में हिंगोस नदी के तट पर है। कराची से फारस की खाड़ी की जाते हुए मकारन्तक जलमार्ग तथा आगे पैदल जाने पर ७ वे मुकाम पर चंदरकूप है। यह आग उगलता हुआ सरोवर है। इस यात्रा का अधिकाँश भाग मरुस्थल से होकर तय करना पड़ता है। जो अत्यंत दुष्कर होता है। चंद्रकूप पर प्रत्येक यात्री को अपने प्रच्छन्न पापों को जोर-जोर से कहकर उनके लिए क्षमा मांगनी पड़ती है। और आगे ना करने की शपथ लेनी होती है। आगे १३ वे मुकाम पर हिंगलाज है। यही एक गुफा के अंदर जाने पर हिंगलाजदेवी का स्थान है। जहाँ शक्तिरूप ज्योति के दर्शन होते है। गुफा में हाथ-पैर के बल जाना होता है . यहाँ देवी देह का ब्रह्मरंध्र गिरा था। यहाँ की शक्ति "कोट्ट्री" तथा भैरव "भीमलोचन" है।
जय माता दी जी








शुक्रवार, 26 जून 2015

ज्वालामुखी : Jwalamukhi : Sanjay Mehta Ludhiana









ज्वालामुखी : यहाँ देवी देह की जिह्वा का पतन हुआ था। यहां की शक्ति "सिद्धिदा" और भैरव "उन्मत्त" है। मंदिर के भीतर मशाल जैसी ज्योति निकलती है . शिवपुराण तथा देवी भागवत के अनुसार इसी को देवी का ज्वालारूप माना माना गया है। यहाँ मंदिर के पीछे की दीवार के गोखले में ४ कोने में से 1. दाहिनी और की दीवरसे १ और की दीवार से १ और मध्य के कुण्ड की भित्तियों से ४ - इस प्रकार दस प्रकाश निकलते है . इनके अतरिक्त और भी कई प्रकाश मंदिर की भित्ति के पिछले भाग से निकलते है . इनमे से कई स्वत: बुझते और प्रकाशित होते रहते है। ये ज्योतियां प्राचीनकाल से जल रही है . ज्योतियों को दूध पिलाया जाता है तो उसमे बत्ती तैरने लगती है। और कुछ देर तक नाचती रहती है। यह दृश्य ह्रदय को बरबस आकृष्ट कर लेता है। ज्योतियों की संख्या अधिक-से-अधिक तेरह और काम-से-कम तीन होती है
जय माता दी जी








गुरुवार, 28 मई 2015

श्री देव्यापराधक्षमापनस्तोत्र : संजय मेहता , लुधियाना







(१)
न मंत्रोको जाना नहि यतन आती स्तुति नहीं ,
न आता है माता तव स्मरण आह्वान स्तुति ही,
न मुद्राएँ आती जननि नहि आता विलपना,
हमें आता तेरा अनुसरण ही क्लेशहर जो

(२)

न आती पूजा की विधि न धन आलस्ययुक्त मै ,
रहा कर्तव्योंसे  विमुख चरणोंमें   रति नहीं ,
क्षमा दो हे माता अयि  सकल उद्धारिणी शिवा!
कुपुत्रोंको देखा कबहुँक कुमाता नहीं सुनी।



(३)
धरित्री माता सरल शिशु तेरे बहुत है ,
उन्हींमें  तो मै  भी सरल शिशु तेरा जननि  हूँ,
अत: हे कल्याणी समुचित नहीं मोहिं  तजना,
कुपुत्रोंको देखा कबहुँक कुमाता नहीं सुनी।


(४)
जगन्माता अम्बे तव  चरणसेवा नहिं  रची,
तुम्हारी पूजामें नहिं प्रचुर द्र्वयादिक दिया,
अहो! तो भी माता तुम अमित स्नेहार्द्र रहतीं,
कुपुत्रोंको देखा कबहुँक कुमाता नहीं सुनी।


(५)
सुरोंकी सेवाएँ  विविध विधिकी , है सब तजी
पचासीसे भी हे जननि  वय बीती अधिक है,
नहीं होती तेरी मुझपर कृपा तो अब भला ,
निरलम्बी लंबोदर -जननि  जाएँ हम कहाँ?


(६)
मनोहरी वाणी अधम जन चांडाल लहते,
दरिद्री  होते है अभय  बहु द्रव्यादिक भरे,
अपर्णे  कर्णोंमें यह फल जनोंके प्रविशता ,
अहो! तो भी आती जपविधि किसे है जननि हे!


(७)
चिताभस्मालेपी  गर्ल अशनि दिक्पट  धरे,
जटाधारी कंठ भुजगपति माला पशुपति,
कपाली पाते है यह जग जगन्नाथपदवी ,
शिवे! तेरी पाणिग्रहण परिपाटी फल यही।

(८)
न है मोक्षाकांक्षा नहिं  विभववाञ्छा ह्रदयमें
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छा अब नहीं,
यही यांचा मेरी निज तनयाको रक्षित करो,
मृडानी  रुद्राणी शिव शिव भवानी जपति  जो।

(९)
नाना प्रकार उपचार किए नहीं है ,
रुखा न चिंतन किया वचसा कभी भी,
श्याम! अनाथ मुझको लख जो कृपा हो,
तो है यही उचित अंब! तुम्हें  सदा ही।


(१०)
आपत्तिसे व्यथित हो तुमको भजूँ  मैं  ,
करो कृपा हे करुणार्णवे! शिवे!!
मेरे शठत्वपर आप न ध्यान देना,
क्षुधा तृषार्ता जननि  पुकारते।

(११)
जगदंब  विचित्र यह क्या, परिपूर्ण करुणा यदि करो,
अपराध करे तनय तो , जननि  नहिं  अनादर करे।

(१२)
अघहारी तो सम नहीं, मो सम पापी नाहिं।
जननि  यह जिय जानिकै , जो भावै  करू  सोय। 










मंगलवार, 12 मई 2015

रोम रोम में श्री राम : Sanjay Mehta Ludhiana







रोम रोम में


जिस वस्तु में  श्री राम - नहीं , वह वस्तु तो कौड़ी की भी नहीं।  उसके रखने से लाभ? श्री हनुमान जी ने भरे दरबार में यह बात कही
स्वयं जानकी मैया ने बहुमूल्य मणियों की माला हनुमान जी के गले में डाल  थी.  राज्याभिषेक- समरोह का यह उपहार था - सबसे मूल्यवान उपहार।  अयोध्या के रत्नभंडार में भी वैसी मणियाँ नहीं थी।  सभी उन मणियों के प्रकाश एवं सौंदर्य से मुग्ध थे . मर्यादापुर्षुत्तम को श्री हनुमान जी सबसे प्रिया है।  सर्वश्रेष्ठ सेवक है पवनकुमार , यह सर्वमान्य सत्य है।  उन श्री आंजनेय को सर्वश्रेष्ठ उपहार प्राप्त हुआ - यह ना आश्चर्य की बात थी, ना ईर्ष्या की
असूया की बात तो तब हो गयी।  जब श्री हनुमान जी अलग बैठकर उस हार की महमूल्यवान मणियों को अपने दाँतो से पटापट फोड़ने लगे। 
एक दरबारी जौहरी  ने टोका तो उन्हें बड़ा विचित्र उत्तर मिला।
आपने शरीर में श्री राम - नाम लिखा है ? जौहरी  ने कुढ़कर पूछा था।  किन्तु मुंह की खानी पड़ी उसे।  हनुमान जी ने अपने वज्रनख से अपनी छाती  का चमड़ा उधेड़कर दिखा दिया , श्री राम ह्रदय में विराजते थे और रोम रोम में श्री राम लिखा था उन श्री राम दूत के
"जिस वस्तु में श्री-राम नाम नहीं,  वह वस्तु तो दो कौड़ी की है, उसे रखने से लाभ? " श्री हनुमान की यह वाणी - उन केसरीकुमार का शरीर श्री राम नाम से ही निर्मित हुआ।  उनके रोम रोम में श्री राम नाम अंकित है।
उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध - सब श्री राम नाम से बने है , उनके कण कण में श्री राम नाम है , जिस वस्तु में श्री राम नाम ना हो वह वस्तु उन पवनपुत्र के पास रह कैसे सकती है
श्री राम नाममय है श्री हनुमान जी का श्री विग्रह -- संजय  मेहता









मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

।। शिव मानस पूजा स्तुति।। : Sanjay Mehta Ludhiana








।। शिव मानस पूजा स्तुति।।


मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रहा हूं। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपकी प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूं। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें।

हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।

हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो। जय माता दी। जय भोले बाबा। हर हर महादेव। संजय मेहता








शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

मात पिता गुरू प्रभु चरणों में प्रणवत बारम्बार। : Sanjay mehta Ludhiana







मात पिता गुरू प्रभु चरणों में प्रणवत बारम्बार।
हम पर किया बड़ा उपकार। हम पर किया बड़ा उपकार।

माता ने जो कष्ट उठाया, वह ऋण कभी न जाए चुकाया।
अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया, ममता की दी शीतल छाया।।
जिनकी गोदी में पलकर हम कहलाते होशियार,
हम पर किया..... मात पिता......

पिता ने हमको योग्य बनाया, कमा कमा कर अन्न खिलाया।
पढ़ा लिखा गुणवान बनाया, जीवन पथ पर चलना सिखाया।।
जोड़-जोड़ अपनी संपत्ति का बना दिया हकदार।
हम पर किया..... मात पिता......

तत्त्वज्ञान गुरू ने दरशाया, अंधकार सब दूर हटाया।
हृदय में भक्तिदीप जला कर, हरि दर्शन का मार्ग बताया।
बिनु स्वारथ ही कृपा करें वे, कितने बड़े हैं उदार।
हम पर किया..... मात पिता......

प्रभु किरपा से नर तन पाया, संत मिलन का साज सजाया।
बल, बुद्धि और विद्या देकर सब जीवों में श्रेष्ठ बनाया।
जो भी इनकी शरण में आता, कर देते उद्धार।
हम पर किया..... मात पिता......











रविवार, 14 दिसंबर 2014

कर्मो का कानून अटल : Sanjay Mehta Ludhiana









कर्मो का कानून अटल


रामायण में आता है की बाली ने तपस्या करके वर लिया था की जो भी लड़ने के लिए उसके सामने आये , उसका आधा बल बाली में आ जाए। इसी कारण जब भी सुग्रीव उससे लड़ाई करने जाता , पराजित होकर लौटता , श्री राम जी इस भेद को जानते थे, जब सुग्रीव बाली के खिलाफ मदद लेने उनके पास आया तो (अपना बल सुरक्षित रखने के लिए ) उन्होंने पेड़ो की ओट में खड़े होकर बाली पर तीर चलाया और उसे मार डाला। मरते समय बाली ने श्री राम जी से कहा "में बेगुनाह था, आपका कुछ नहीं बिगाड़ा था। अब इसका बदला आपको अगले जन्म में देना पड़ेगा। "
सो अगले जन्म में श्री राम जी श्री कृष्ण जी बने और बाली भील बना। जब कृष्ण महाराज महाभारत के युद्ध के बाद एक दिन जंगल में पैर पर पैर रख कर सो रहे थे , तो भील ने दूर से समझा की कोई हिरन है , क्युकि उनके पैर में पद्म का चिन्ह था जो धुप में चमक कर हिरन की आँख जैसा लग रहा था। उसने तीर-कमान उठाया और निशाना बांधकर तीर छोड़ा जो श्री कृष्ण जी को लगा। जब भील अपना शिकार उठाने के लिए पास आया तो उसे अपनी भयंकर भूल का पता चला। दोनों हाथ जोड़कर वह कृष्ण जी से अपने घोर पाप की क्षमा मांगने लगा। तब श्री कृष्ण जी ने उसे पिछले जन्म की घटना सुनाई और समझाया की इसमें उसका कोई दोष नहीं है , यह तो होना ही था . उन्हें अपने कर्मो का कर्जा चुकाना ही था।
सो कर्मो का कानून अटल है। कोई भी इससे बच नहीं सकता , अवतार भी नहीं अब कहिये जय श्री कृष्णा जय माता दी जी









शनिवार, 13 दिसंबर 2014

पपीहे का प्रण : Papeehe ka Prn : By Sanjay Mehta Ludhiana









कबीर साहिब एक दिन गंगा के किनारे घूम रहे थे। उन्हों ने देखा एक पपीहा प्यास से बेहाल होकर नदी में गिर गया है। पपीहा स्वांति नक्षत्र में बरसने वाली वर्षा की बूंदो के अलावा और कोई पानी नहीं पीता। उसके चारो और कितना ही पानी मजूद क्यों ना हो , उसे कितनी ही जोर से प्यास क्यों न लगी हो , वह मरना मजूर करेगा , परन्तु और किसी पानी से अपनी प्यास नहीं बुझायेगा।
कबीर साहिब नदी में गिरे हुए उस पक्षी की और देखते रहे। सख्त गर्मी पड़ रही थी , पर नदी के पानी की एक बूँद भी नहीं पी। उसे देखकर कबीर साहिब ने कहा :
जब मै इस छोटे -से पपीहे की वर्षा के निर्मल जल के प्रति भक्ति और निष्ठां देखता हूँ की प्यास से मर रहा है। लेकिन जान बचाने के लिए नदी का पानी नहीं पीता , तो मुझे मेरे ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति तुच्छ लगने लगती है
पपीहे का पन देख के , धीरज रही न रंच।
मरते दम जल का पड़ा, तोउ न बोडी चंच। ।
अगर हर भक्त को अपने इष्ट के प्रति पपीहे जैसी तीव्र लगन और प्रेम हो तो वह बहुत जल्दी ऊँचे रूहानी मंडलों में पहुंच जाये। अब कहिये जय माता दी जय देवी माँ








शनिवार, 29 नवंबर 2014

Vaishno Maa By Sanjay Mehta Ludhiana










काँगड़ा वाली तू ही , ब्रजेश्वरी तेरा नाम
भक्तो के दुःख हारनी , पावन तेरा धाम
हे अम्बे पावन तेरा नाम

नैनो के जिस के बरसे , ममता अमृत धार
नैन देवी है वही , उन का सच्चा द्वार
हे अम्बे

मनन करे जो मनसा का मन के मिटे विकार
दे उज्जला प्रेम का , मेटे सब अन्धकार
हे अम्बे मेटे सब अन्धकार

मनोवांछित फल मिलता है बगला मुखी के द्वार
माँ दुर्गा तेरे रूप को , माने सब संसार
हे अम्बे , जय जय दुर्गे

शीतला शीतल करे, नाम रटे जो कोई
नासे सारे क्रोध को , हृद्या शीतल होए
जय जय अम्बे माँ

सिद्धेश्वरी राजेश्वरी कामाख्या पार्वती
श्याम गोरी और उकनी तू ही है माँ सती
जय जय अम्बे माँ

चंदा देवी उर्बाधा , वीरपुर मालिनी नाम
खुलती जहाँ तकदीर है , पावन तेरा नाम
हे माता पावन तेरा धाम

जिस घर में वास करे , लक्ष्मी रानी मात
उस घर में आनंद हो , सदा दिवाली रात
जय जय अम्बे माँ

कैला देवी कराली , लीला अपरम्पार
जिन के पावन धाम पर , हो रही जय जय कार
हे मैया तेरी जय जय कार

मंगलमयी है दुर्गा माता , सब की सुने पुकार
करुणा का तेरे द्वार पे, सदा खुला द्वार
अम्बे जय

हिंगलाज भयहारनी रमा उमा माँ शक्ति
मन मंदिर में बसा के कर लो इन की भक्ति
जय जय अम्बे माँ

तारा माँ जगतारिणी भव सागर से पार
विन्धेश्वरी भुवनेश्वरी सब को बांटे प्यार
हे अम्बे

करे सवारी वृषभ की रुद्राणी मेरी माँ
अपने आँचल की अम्बे , सब को देती छाव
हे माता

पद्मावती , मुक्तेश्वरी, माता बड़ी महान
करती सब की सहाये है , कहे रु

मिले शक्ति निर्बल को जहाँ वो है माँ का धाम
कामधेनु से तुल्य है शिव शक्ति का नाम

त्रिपुर रूपिणी भगवती जिन का खजाना ज्ञान
मैया मेरी वरदानी है देती है वरदान
जय दुर्गे जय माँ

कामना पूरी करे कामाक्षी , देती है सदा मान
याचक जिस के देवता स्वर्ण मैया क्ष

रोहिणी और सुभद्रा दूर करे अज्ञान
छल कपट ना छोड़ती तोड़े है अभिमान
जय अम्बे

अष्टभुजी मंगलकर्णी पावन जिस का द्वार
महर्षि और संत जपते जिन को बारम्बार

मधु कैटभ और रक्तबीज का तूने किया संहार
धूम्रलोचन का वध कर के हरा भूमि का भार

विम्राम्भा की शरण जो जाते , रखती उन की लाज
सकल पदार्थ वो पाये बन जाए बिगड़े काज

पांचो चोर उन्हें छले , साफ़ रखे ना मन
माँ के चरणो में कर दे तन मन सब अर्पण

कौशकी देवी मझधार से पार लगाये नाव
अम्बिका माँ पूजिए चल के नंगे पाँव

भैरवी देवी का करो मन से तुम वंदन
खुशिओं से महके सदा भक्तो घर आँगन

नंदिनी नारायणी , महादेवी कहलाये
हर संकट से मुक्त हो इन का जो ध्यान लगाये

मनमोहिनी माँ मूर्ति करती प्रेम बरसात
करुणा सब पे करती है दुर्गा भोली मात

मीठी लोरी ममता की गूंजे आठो याम
अमृत बरसो vaani में , माँ को जो आये नाम

कन कन अंदर माँ बेस , जगह ना खाली कोई
सारे ही ब्रह्माण्ड में जिन का उज्जला होए

करुणा करे करुणामयी माता करुणानिधान
सृष्टि की पालन हार उन की उच्ची शान

जीवन मृत्यु यश अपयश सब है माँ के हाथ
वो कैसे घबरायेगा माँ हो जिस के साथ

तेरी शरण में आ गया यह संजय मेहता
ऐसा वार मोहे दीजिये करता राहु गुणगान












हनुमानजी भीमसेनजी : Sanjay mehta Ludhiana









एक बार हनुमानजी गन्धमादन के एक भाग में अपनी पूँछ फैलाकर स्वच्छन्द पड़े थे। उसी समय बलगर्वित भीमसेन को आते देख वे मन में हँसते हुए उनसे बोलते - 'अनघ ! बुढ़ापे के कारण मै स्वयं उठने में असमर्थ हूँ , कृपया आप ही मेरी इस पूँछ को हटाकर आगे बढ़ जाइए ' भीमसेन अवज्ञा के साथ हँसते हुए बायें हाथ से उन महाकपि की पूँछ हटाने लगे , पर वह टस-से-मस न हुई. तब वे अपने दोनों हाथो से जोर लगाने लगे, फिर भी इंदरधनुष के समान उठी हुई वह पूँछ उनके द्वारा टस-से-मस न हुई। इस अनपेक्षित पराभव के कारण भीमसेन ने उन्हें पहचानकर लज्जावंत-मुख हो उन कपिशार्दूल से क्षमा मांगी
अब कहिये जय श्री हनुमान जय श्री राम जय माता दी जी








गुरुवार, 10 जुलाई 2014

सबकुछ परमात्मा ही करता है (कहानी): Sanjay Mehta Ludhiana









सबकुछ परमात्मा ही करता है (कहानी)



काशी में बस जाने के बाद कबीर साहिब ने वहां सत्संग करना शुरू किया , उनका उपदेश था की मनुष्य को अपने अंदर ही परमात्मा की तलाश करनी चाहिये। उनकी यह शिक्षा कटटर पंडितो और मौलवियों , दोनों के विचारो से बहुत भिन्न थी। इसलिए दोनों उनके कटटर विरोधी हो गए , परन्तु कबीर साहिब ने उनकी और ध्यान नहीं दिया। जो जिज्ञासु सत्य की खोज में उनके पास आते , उन्हें वे बेखटके अपना उपदेश सुनाते। धीरे धीरे उनके शिष्यों की गिनती बढ़ती गई और कबीर का नाम दूर -दूर तक फ़ैल गया

जब पंडितों और मौलवीओ ने देखा की उनके विरोध का कबीर पर कुछ असर नहीं हुआ है तो उन्हों ने कबीर जी को नीचे दिखने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने काशी और उसके आसपास यह खबर फैला दी के कबीर जी बहुत धनवान है और अमुक दिन एक धार्मिक पर्व पर बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे है जिसमे भोज का भी आयोजन है। जो भी उसमे शामिल होना चाहे उनका स्वागत है

जब कथित भोज का दिन पास आया तो क्या गरीब और क्या अमीर, हजारों लोग कबीर की कुटिया की और चल पड़े। एक मामूली जुलाहे के पास इतने लोगों को भोजन कराने के लिए ना तो धन था और ना खाने का समान। इस मुश्किल से बचने के लिए कबीर साहिब शहर से बाहर बहुत दूर चले गए और एक पेड़ की छाया में चुपचाप बैठ गए

परन्तु जैसे ही कबीर जी घर से निकले , स्वयं परमात्मा ने कबीर जी के रूप में प्रकट होकर भोजन की व्यवस्था की और हजारों लोगों को स्वयं भोजन कराया। भोज के लिए आनेवाला हर एक व्यक्ति यह कहते हुए लौटा , "धन्य है कबीर जी , धन्य है कबीर जी "

जैसे ही साँझ ढली और अँधेरा छाने लगा , कबीर अपने घर को लौटे। जो कुछ दिन में घटा था उसका हाल सुना. ख़ुशी से भर कबीर जी कह उठे

"ना कछु किया ना करि सका, ना करने जोग सरीर।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर।।
जय माता दी जी










मंगलवार, 1 जुलाई 2014

ईश्वर की तरफ से शिकायत: Ishwar ki Taraf Se Shikayat








मेरे प्रिय...

सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात करोगे।
तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे। लेकिन तुम
फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!

फिर मैंने सोचा कि तुम नहा के मुझे याद करोगे। पर तुम इस उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!! फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर
दौड़ रहे थे...तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।

मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात ही नहीं की...एक मौका ऐसा भी आया जब तुम बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया। दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर- उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये। जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे। तुमनें अपनी पत्नी, बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर सो गये।

मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं... तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताऊँ...तुम्हारी कुछ सुनूं...तुम्हे कुछ सुनाऊँ। कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।

मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ। हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद करोगे। पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ।

खैर कोई बात नहीं...हो सकता है कल तुम्हें मेरी याद आ जाये!!! ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम में आस्था है।
आखिरकार मेरा दूसरा नाम...प्यार और विश्वास ही तो है।
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.
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तुम्हारा
इश्वर








सोमवार, 30 जून 2014

Bhakt or Bhagwan : Sanjay Mehta Ludhiana









एक भक्त था वह बिहारी जी को बहुत मानता था,बड़े प्रेम और भाव से
उनकी सेवा किया करता था.

एक दिन भगवान से कहने लगा – में आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझे
आपकी अनुभूति नहीं हुई.
मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये
की मुझे ये अनुभव हो की आप हो.

भगवान ने कहा ठीक है.
तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो,जब तुम रेत पर चलोगे
तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देगे, दो तुम्हारे पैर होगे और
दो पैरो के निशान मेरे होगे.इस तरह तुम्हे मेरी अनुभूति होगी.
अगले दिन वह सैर पर गया,जब वह रे़त पर चलने लगा तो उसे अपने
पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ,अब रोज ऐसा होने लगा.

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया, वह सड़क पर आ
गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया.
देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत मे सब साथ छोड देते है.
अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये.उसे
बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त मे भगवन ने साथ छोड दिया.धीरे-धीरे
सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसके पास वापस आने लगे.
एक दिन जब वह सैर पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई देने
लगे.उससे अब रहा नही गया, वह बोला-

भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर मुझे
इस बात का गम नहीं था क्योकि इस दुनिया में ऐसा ही होता है, पर आप ने
भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था, ऐसा क्यों किया?

भगवान ने कहा – तुमने ये कैसे सोच लिया की में तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा,
तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वे तुम्हारे
पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे,

उस समय में तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब
तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है. इसलिए
तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे है.










माँ (परमगुरु, परब्रम्ह, परमात्मा, ब्रह्माण्डस्वरूपी ) : Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










पानी के बिना नदी ,
अतिथि के बिना आँगन ,
स्नेह के बिना सम्बन्धी ,
पैसे के बिना ज़ेब , """"""और"""""
माँ (परमगुरु, परब्रम्ह, परमात्मा, ब्रह्माण्डस्वरूपी) के बिना जीवन बेकार है !
मां की याद ऐसे आती है जैसे आती है महक बाग के किसी कोने से

कोने में खिले किसी फूल से जैसे आती है माटी-गंध
आषाढ़ की पहली बारिश में आंगन की भीगी हुई काली मिट्टी से- ठीक ऐसे ही आती है मां की याद

कभी कभी जब कुछ भी नहीं होता करने को सोचता हूं कितने सपने लगते होंगे एक ताजमहल बनाने के लिये....लोग कहते हैं जिनके पास जितने सपने हैं उतने ही सपनों से बनाया जा सकता है ताजमहल...लोग तो यहां तक कहते हैं सिर्फ एक ही सपना काफी है ताजमहल बनाने के लिये !

मां के पास सपने ढेरों थे मगर दुर्भाग्य ताजमहल एक भी नहीं ऐसा क्यों ! ?
माँ तो बस माँ ही होती है .
बच्चो को भरपेट खिलाती खुद भूखी ही सोती है
बच्चों की चंचल अठखेली देख देख खुश होती है
बचपन के हर सुन्दर पल को बना याद संजोती है
देख तरक्की बच्चों की वो आस के मोती पोती है
बच्चों की खुशहाली में वो अपना जीवन खोती है
बच्चों की बदली नज़रों से नहीं शिकायत होती है
जब-जब झुकता सर होठों पर कोई दुआ ही होती है

धूप कड़ी सहकर भी माँ तुम, कभी न हारी यौवन में,
धरम तुम्हारा खूब निभाया, तुमने अपने जीवन में !
सहम रही ममता पलकों में, नज़र तुम्हारी झुकी-झुकी,
तड़प रही है धड़कन भी अब, साँस तुम्हारी रुकी-रुकी ।
न्योता दिया बुढ़ापे ने अब तुमको अपने आँगन में !

गूँज रही कानों में मेरे वही तुम्हारी मुक्त हँसी,
आज कराहों में भी तो है छुपी हुई मुस्कान बसी !
हाय जिंदगी सजी-सजाई, बीती कितनी उलझन में !

टूट गए कुछ सपने तो क्या, रात अभी भी बाकी है,
और नए कुछ सज जाएँगे, प्रात अभी भी बाकी है ।
ढलती संध्या में भर लो तुम जोश नया अपने तन में !

पूछता है जब कोई कि
इस दुनिआ में मोहब्बत है कहाँ..?
मुस्कुरा देता हूँ मै,
और याद आ जाती है माँ










प्यारी माँ : Pyari Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










प्यारी माँ


तू कैसी है ?क्या मुझको याद करती है
तूने पूछा था कैसा हूँ मै ..मै अच्छा हूँ

तेरी ही सोच के जैसा हूँ
यहा सब सो गए हैं मै अकेला बैठा हूँ
सोचता हूँ क्या करती होगी तू
काम करते करते बालों का जूडा बनाती होगी या फिर
बिखरे समान को समेटती होगी
पर माँ अब समान फैलाता होगा कौन
मै तो यंहा बैठा हूँ मौन

सुनो माँ तुमने सिखाया था सच बोलो सदा
आज जो सच बोला तो क्लास के बाहर खड़ा था
तुमने जैसा कहा है वैसा ही करता हूँ
ख़ुद से पहले ध्यान दूसरों का रखता हूँ
पर देखो न माँ सब से पीछे रह गया हूँ
सब कुछ आता है मुझको फ़िर भी
टीचर की निगाह से गिर गया हूँ

किसी पे हाथ न उठाना तुम ने कहा था
पर जानती हो माँ आज उन्होंने बहुत मारा है मुझे
जवाब मै भी दे सकता था पर मारना तो बुरी बात है न माँ
यंहा सभी मुझे बुजदिल समझते हैं
मै कमजोर नही हूँ मै तो तेरा बहादुर बेटा हूँ न माँ

अब तुम ही कहो क्या मै कुछ ग़लत कर रहा हूँ
तेरा कहा ही तो कर रहा हूँ, तू तो ग़लत हो सकती नही
फिर सब कुछ क्यों ग़लत हो रहा है बताओ न माँ
क्या इनको ये बातें मालूम नही

माँ एक बार यहां आओ न
जो कुछ मुझे बताया इन्हे भी समझाओ न

एक बात बताओ क्या आज भी तू कहेगी कि तुझे मुझपे गर्व है
माँ बोलो न..क्या मै तेरी सोच के जैसा हूँ और तेरा राजा बेटा हूं









माँ : Maa : Sanjay Mehta Ludhiana










घर में अकेली माँ ही बस सबसे बड़ी पाठशाला है।
जिसने जगत को पहले-पल ज्ञान का दिया उजाला है।

माँ से हमने जीना सीखा, माँ में हमको ईश्वर दीखा,
हम तो हैं माला के मनके, माँ मनकों की माला है।

माँ आँखों का मीठा सपना, माँ साँसों में बहता झरना,
माँ है एक बरगद की छाया जिसने हमको पाला है।

माँ कितनी तकलीफ़ें झेल, बाँटे सुख, सबके दुख ले ले।
दया-धर्म सब रूप हैं माँ के, और हर रूप निराला है।









रविवार, 22 जून 2014

मालिनी सुखिया और कृष्णा जी : संजय मेहता










मालिन रोज परमात्मा को मनाती रहती थी, नाथ, दर्शन दीजिये . तीन वर्ष पुरे हो गए। अब तो कृष्ण विरह असहाए हो गया है। उसका मन भी शुद्ध हो गया है। आज उसने निश्चय किया है , जब तक कन्हैया का दर्शन ना कर पाऊँ , तब तक नंदबाबा के आँगन से नहीं हटूंगी जीव जब वियोगाग्नि में छटपटाने लगता है , भगवान आ मिलते है

कटि पर सोने की करधनी, ह्रदय में बाजूबंद , गले में कंठी , पग में पैजनिया और मस्तक पर मोरपंख से विभूषित मेरा कन्हैया छुमक- छुमक करता हुआ आँगन में आया (कितने सुन्दर लग रहे है संजय के प्रभु )

दर्शनातुर मालिन के सामने आकर, हाथ फैला कर लाला फल मांगने लगा. बालकन्हैया से मालिन भी बाते करने के लिए आतुर थी

मालिनी ने सोचा की यदि लाला के हाथ में फल रख देगी तो तुरंत ही वह भीतर लौट जायेगा . सो वह उसको बातो से रोकने लगी , मै फल देने नहीं , बेचने आई हु लला , फल ले और मुझे अनाज दे। फिर उसे दुःख भी हुआ की अनाज माँगा ही क्यों . कन्हैया बड़ा दयालु और प्रेमी है। वह मेरी गोद में आएगा तो मै उसे प्यार करुँगी

बाल कृष्ण दौड़ता हुआ तो मुठी भर चावल ले आया और मालिन की टोकरी में रख दिए . अब तो फल दो मालिन ने कहा , मेरी गोद में तो बैठ बेटा, मै तुमसे दुःख सुख की बाते करना चाहती हु, तो कन्हैया उछल कर उसकी गोद में जा बैठा। मालिन की इच्छा परिपूर्ण हुई ब्रह्मसम्बन्ध सम्पन्न हुआ , हजारो वर्षो का विरही जीव आज ईश्वर से जा मिला जय हो।

फल मिलते है लाला भागा हुआ घर में चला गया , मालिन ने प्रभु से प्राथना की की कही अपने कन्हैया को अपनी ही नजर ना लग जायें। अपनी टोकरी लेकर सुखिया घर वापस आई , टोकरी सर से उतारी तो देखा की वह तो रत्नो से भरी पड़ी है। उसे सुख आश्चर्य हुआ , सोचने लगी कि मेरे जन्म - जन्मांतर का द्ररिद्रया दूर हो गया। ईश्वर को फल दोगे तो तुम्हे रत्न देंगे। परमात्मा जब देते है तो छप्पर फाड़ कर देते है। मनुष्या देते समय कुछ संकोच रखता है , किन्तु प्रभु तो कई गुना बढ़ाकर देते है। अब कहिये जय श्री कृष्णा। जय माता दी जी










शुक्रवार, 6 जून 2014

सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ : Sab Se Sunder hai hmari jai ambe maa : Sanjay Mehta Ludhiana








सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !
जय अम्बे माँ -2 !



नदिया है सुन्दर, समंदर है सुन्दर
धरती के ऊपर का अम्बर है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

चंदा है सुन्दर सितारे है सुन्दर
बागो में खिलाती बहारें है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

हार है सुन्दर, सिंगर है सुन्दर
बारह महीनो के तैयोहार है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

गीत है सुन्दर संगीत है सुन्दर
‘’लाटा की मैया से प्रीत है सुन्दर
सब से, सब से, सब से सुन्दर है हमारी जय अम्बे माँ !

जय अम्बे माँ, जय अम्बे माँ


http://youtu.be/y8c2zHU4vpY














बुधवार, 4 जून 2014

मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती: Man Mera Mandir Aankhe diya Baati : Sanjay Mehta Ludhiana








मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती,
होंठो की हैं थालिया, बोल फूल पाती।
रोम रोम जीभा तेरा नाम पुकारती,
आरती ओ मैया तेरी आरती,
ज्योतां वालिये माँ तेरी आरती॥

हे महालक्ष्मी हे गौरी, तू अपने आप है चोहरी,
तेरी कीमत तू ही जाने, तू बुरा भला पहचाने।
यह कहते दिन और राती, तेरी लिखीं ना जाए बातें,
कोई माने जा ना माने हम भक्त तेरे दीवाने,
तेरे पाँव सारी दुनिया पखारती॥

हे गुणवंती सतवंती, हे पत्त्वंती रसवंती,
मेरी सुनना यह विनंती, मेरी चोला रंग बसंती।
हे दुःख भंजन सुख दाती, हमें सुख देना दिन राती,
जो तेरी महिमा गाये, मुहं मांगी मुरादे पाए,
हर आँख तेरी और निहारती॥

हे महाकाल महाशक्ति, हमें देदे ऐसी भक्ति,
हे जगजननी महामाया, है तू ही धुप और छाया।
तू अमर अजर अविनाशी, तू अनमिट पूरनमाशी,
सब करके दूर अँधेरे हमें बक्शो नए सवेरे।
तू तो भक्तो की बिगड़ी संवारती॥












सोमवार, 19 मई 2014

माता जी का विराट स्वरूप कैसा है ? Mata G Ka Viraat Swroop Kaisa Hai ? : Sanjay Mehta Ludhiana







माता जी का विराट स्वरूप कैसा है ?



आँखे मूंदकर मनन कीजिये कि हजारों कमल - पुष्प एकदम खिल उठे ! सोचिये कि एक हजार सूर्य एक ही आकाश - मंडल में एक साथ उदय हो गए !! ऐसा ही उसका रूप , ऐसा ही उसका तेज। सूर्य और चन्द्र उसके दोनों नेत्र है। नक्षत्र आभूषण है , हरी - भरी धरा का सिंहासन और नीला आकाश उस पर छत्र छाया है , सिन्दूरी लाल सुए रंग के फूलें में उसका रूप झलकता है। अस्ताचल को जाते हुए रक्तवर्ण सूर्य में भी वही दीप्तिमान है। हिमपात के कारण सफेद चादर से ढके हुए पर्वतो में विराजमान है। श्वेत हंस वाहन पर श्वेत -वस्त्र धारण किये सरस्वती के रूप में शोभायमान है। स्त्रियों की लज्जा में , योद्धाओं के आक्रोश में और विकराल काल-ज्वाला की लपटों रूपी जिह्वा में दमक रही है। अम्बा के रूप में माँ का स्नेह उड़ेल देती है। त्रिपुर सुंदरी के रूप में अद्विदित्य सम्मोहन है और महाकाली के रूप में नरमुण्डों की माला पहने भयानक नृत्य करती है। यध्यपि वह निर्गुण है तथापि समय - समय पर दुष्टो के नाश के लिए अवतार धारण करती है। संजय मेहता का जीवन बस जय माता दी जय माता दी कहते हुए बीते यह मैया जी से आशीर्वाद चाहिए। अब कहिये जय माता दी